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कृषि कानून बनने से लेकर, दिल्ली घेराव, भारत बंद, ट्रैक्टर रैली और लाठीचार्ज तक, जानें कब क्या-क्या हुआ ? - farm law timeline

पीएम मोदी ने कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया है. बीते करीब 14 महीने से किसान कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे. बीते करीब 14 महीने में कृषि कानूनों को लेकर सड़क से संसद तक क्या-क्या हुआ ? जानने के लिए क्लिक करें

किसान आंदोलन
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Published : Nov 19, 2021, 2:28 PM IST

Updated : Nov 19, 2021, 4:09 PM IST

हैदराबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है. पीएम मोदी ने कहा कि आगामी संसद सत्र में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी. भले कुछ लोग इसे किसान आंदोलन की हैप्पी एंडिंग मान रहे हों लेकिन बीते 14 महीने के दौरान इस आंदोलन में बहुत कुछ हुआ है.

ऐसे हुई थी शुरुआत

14 सितंबर 2020, यही वो दिन था जिस दिन केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों से जुड़ा अध्यादेश संसद में पेश किया. 17 सितंबर को ये अध्यादेश लोकसभा और 20 सितंबर को ये बिल राज्यसभा से पारित हो गया. तब तक कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लामबंद होना शुरू हो गए थे, खासकर पंजाब के किसानों ने बिल के संसद से पारित होने के बाद 3 दिवसीय रेल रोको आंदोलन की शुरुआत की थी. इसी बीच 27 सितंबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कृषि कानून देशभर में लागू हो गए.

बीते 14 महीनों में कब-कब, क्या-क्या हुआ

कब क्या-क्या हुआ ?
कब क्या-क्या हुआ ?

क्या हैं वो तीन कृषि कानून ?

1) कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020- इसके तहत किसान कृषि उपज को सरकारी मंडियों के बाहर भी बेच सकते हैं. सरकार के मुताबिक किसान किसी निजी खरीददार को भी ऊंचे दाम पर अपनी फसल बेच सकते हैं. सरकार के मुताबिक इससे किसानों की उपज बेचने के विकल्प बढ़ेंगे.

2) कृषि (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020- ये कानून अनुबंध खेती या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देता है. इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है.

3) आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020- इसके तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया. इनकी जमाखोरी और कालाबाजारी को सीमित करने और इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने जैसे प्रतिबंध हटा दिए गए हैं.

कब क्या-क्या हुआ ?
कब क्या-क्या हुआ ?

सरकार और किसानों के बीच नहीं बनी बात

इस पूरे मसले पर किसान और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई लेकिन बात नहीं बन पाई. किसान नेताओं के प्रतिनिधिमंडल और सरकार के बीच 11 मुलाकातें हुईं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. इन बैठकों में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हुए लेकिन किसान और सरकार अपने-अपने पाले में डटे रहे. किसान कानून वापस लेने की मांग पर अड़े रहे और सरकार अपने फैसले पर कायम रही. तीनों कृषि कानूनों के संसद से पास होने के बाद से ही किसान इनके विरोध में उतर आए थे. 27 सितंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद किसान सड़कों पर उतर आए थे. जिसके बाद 14 अक्टूबर 2020 को पहली और 22 जनवरी 2021 को आखिरी बैठक किसानों और सरका के बीच हुई लेकिन इस दौरान हुई 11 बैठकों में कोई बात नहीं बनी.

कृषि कानूनों के खिलाफ अड़े रहे किसान
कृषि कानूनों के खिलाफ अड़े रहे किसान

किसान-सरकार के बीच क्यों नहीं बनी बात ?

किसान इन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे. किसानों के मुताबिक इससे किसान बंधुआ मजदूर हो जाएगा और कृषि पूंजीपतियों के हाथ चली जाएगी. किसानों के मुताबिक इन कानूनों में उनके हित नहीं हैं बल्कि निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं. MSP को लेकर भी सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं.

सरकार बताती रही कि ये कृषि कानून किसानों के लिए हितकारी हैं और इससे किसानों की आय बढ़ेगी. सरकार बार-बार कहती रही कि वो कृषि कानून वापस नहीं लेगी. हालांकि सरकार ने कहा कि MSP खत्म नहीं होगी लेकिन इस पर कानून या लिखित में देने की किसानों की मांग को सरकार दरकिनार करती रही.

कई दौर की बैठक के बाद भी सराकर और किसानों में नहीं बनी बात
कई दौर की बैठक के बाद भी सराकर और किसानों में नहीं बनी बात

26 जनवरी के बाद सब बदल गया था

26 जनवरी 2021 को जब देश गणतंत्र दिवस का जश्न मना रहा था तो देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र को ठेंगा दिखाया जा रहा था. दरअसल किसानों ने गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में ट्रैक्टर रैली की अनुमति मांगी थी जिसे दिल्ली पुलिस ने मान भी लिया था. ट्रैक्टर रैली की आड़ में प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली में जो तांडव मचाया उसे पूरी दुनिया ने देखा. ट्रैक्टर सवार प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दी और लाल किले की प्राचीर तक पहुंच गए. जहां प्रदर्शनकारियों ने देश के राष्ट्रीय ध्वज को हटाकर एक धार्मिक झंडा फहरा दिया. इस उपद्रव के दौरान दिल्ली पुलिस के कई जवान भी घायल हुए. इस पूरे मामले पर सियासत भी जमकर हुई लेकिन नुकसान पूरी तरह से किसान आंदोलन को हुआ. क्योंकि इससे पहले आंदोलन को लोगों का समर्थन भी मिल रहा था और सरकार भी एक तरह से बैकफुट पर थी लेकिन 26 जनवरी के बाद किसानों ने जनसमर्थन भी खोया और इसके बाद सरकार ने किसानों से बातचीत की पहल भी नहीं की.

26 जनवरी 2021 की तस्वीरें
26 जनवरी 2021 की तस्वीरें

भूख हड़ताल, लाठीचार्ज, हिंसा

किसान आंदोलन के दौरान किसानों भूख हड़ताल से लेकर चक्का जाम तक किया. बीते करीब एक साल से किसान दिल्ली का घेराव किए बैठे हैं. किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत और अन्य किसान संगठनों के लोग इस आंदोलन को भले शांति से किया गया बता रहे हों लेकिन कई बार किसानों का ये आंदोलन हिंसक होने के कारण सुर्खियों में रहा. 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के दौरान जो कुछ भी हुआ, उसने दुनियाभर की मीडिया की सुर्खियां बटोंरी. इसके अलावा करनाल समेत कई स्थानों पर पुलिस और किसानों के बीच हुई जड़प हो या फिर दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर किसान आंदोलन की जगह पर हाथ काटकर युवक की हत्या का मामला, आंदोलन इन बातों को लेकर सुर्खियाों में रहा.

लखीमपुर खीरी हिंसा
लखीमपुर खीरी हिंसा

लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा भी किसान आंदोलन के दामन पर एक और खूनी दाग छोड़ गी. जहां यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के कार्यक्रम का विरोध करने के लिए इकट्ठे हुए प्रदर्शनकारियों के एक समूह को एक कार ने कुचल दिया, जिसमें चार किसानों समेत 8 लोगों की मौत हो गई. बताया गया कि केंद्रीय मंत्री का बेटा कार चला रहा था, जो फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में है.

देश-विदेश के सेलिब्रिटी की एंट्री

किसान आंदोलन देश-विदेश की मीडिया में सुर्खियां बटोरता रहा. आंदोलन में पंजाब के किसानों की बहुतायत के कारण पंजाब के सिंगर, एक्टर समेत कई कलाकार किसानों के समर्थन में उतर आए, कुछ बॉलीवुड स्टार भी किसानों के समर्थन में उतरे लेकिन ज्यादातर को दूरी बनाने के कारण किसानों का विरोध भी झेलना पड़ा. इस आंदोलन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तब और पहचान मिल गई जब अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना ने ट्वीट करके किसानों को समर्थन दे दिया, इसके अलावा पूर्व पॉर्न स्टार मिया खलीफा और ग्रेटा थनबर्ग ने भी किसानों के समर्थन में ट्वीट किया. फरवरी की शुरुआत में आए इन ट्वीट के बाद टूलकिट की भी एंट्री आंदोलन से होते हुए सियासत तक में हो गई.

रिहाना, मिया खलीफा और ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट
रिहाना, मिया खलीफा और ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट

इस बीच बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत कृषि कानूनों के समर्थन में रहीं और कृषि कानूनों के खिलाफ खड़े प्रदर्शनकारियों से लेकर सेलिब्रिटी और पंजाबी कलाकारों तक पर सोशल मीडिया के जरिये निशाने साधती रही. वैसे इस मामले में अपने बयानों को लेकर सोशल मीडिया पर कंगना को भी विरोध झेलना पड़ा था.

सियासत और बयानबाजी भी खूब हुई

कृषि कानून को लेकर पहले दिन से ही बयानबाजी शुरू हो गई थी. कानून के समर्थन और विरोध के धड़ों में जमकर बयानबाजी हुई. किसी ने किसानों को खालिस्तानी बता दिया तो किसी ने किसानों के पिज्जा, बर्गर खाने पर सवाल उठा दिए. कभी आंदोलन को पाकिस्तान और विदेशी फंडिग की बात सामने आई तो कभी इस आंदोलन को शाहीन बाग से भी जोड़ा गया. किसान आंदोलने के अगुवा रहे चेहरे भी सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आए और हर राज्यों में जाकर लोगों को कृषि कानूनों के खिलाफ समर्थन जुटाने लगे. हरियाणा से लेकर बंगाल और उत्तर प्रदेश से लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों तक किसान नेताओं ने ये अभियान छेड़ रखा था.

जंतर मंतर में किसान संसद में पहुंचे विपक्षी दलों के नेता
जंतर मंतर में किसान संसद में पहुंचे विपक्षी दलों के नेता

किसानों के इस आंदोलन में विपक्ष अपनी भलाई देख रहा था, इसलिये कदम-कदम को आंदोलन को विपक्षी दलों का समर्थन मिलता रहा. संसद सत्र के दौरान किसानों ने जंतर-मंतर पर किसान संसद लगाई तो विपक्षी दलों के नेता वहां भी दिखाई दिए. आगामी 5 राज्यों के चुनाव में किसान आंदोलन को भुनाने के लिए भी हर दल अपनी-अपनी कोशिशों में लगा रहा. लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के परिजनों से मिलने के लिए कई नेता पहुंचते रहे और मुआवजे का चेक देते रहे. बीजेपी इसे विपक्षी दलों की मौकापरस्ती कहती रही और विपक्ष सरकार को किसानों के सहारे घेरता रहा.

फिर पीएम ने किया बड़ा ऐलान

19 नवंबर को गुरुपर्व और कार्तिक पूर्णिमा की सुबह पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहता हूं कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई होगी. उन्होंने कहा कि कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए. आज गुरुनानक देव का पवित्र पर्व है. ये समय किसी को दोष देने का समय नहीं है. आज पूरे देश को यह बताने आया हूं कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि इस महीने के अंत में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर देंगे. इसके साथ ही, पीएम मोदी ने आंदोलन पर बैठे लोगों को प्रकाश पर्व पर अपने घर वापस जाने की अपील की. हालांकि राकेश टिकैत ने कहा है कि हम तुरंत आंदोलन वापस नहीं लेंगे, कृषि कानूनों के संसद से वापस लेने का इंतजार करेंगे.

ये भी पढ़ें: तत्काल वापस नहीं होगा किसान आंदोलन : राकेश टिकैत

हैदराबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है. पीएम मोदी ने कहा कि आगामी संसद सत्र में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी. भले कुछ लोग इसे किसान आंदोलन की हैप्पी एंडिंग मान रहे हों लेकिन बीते 14 महीने के दौरान इस आंदोलन में बहुत कुछ हुआ है.

ऐसे हुई थी शुरुआत

14 सितंबर 2020, यही वो दिन था जिस दिन केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों से जुड़ा अध्यादेश संसद में पेश किया. 17 सितंबर को ये अध्यादेश लोकसभा और 20 सितंबर को ये बिल राज्यसभा से पारित हो गया. तब तक कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लामबंद होना शुरू हो गए थे, खासकर पंजाब के किसानों ने बिल के संसद से पारित होने के बाद 3 दिवसीय रेल रोको आंदोलन की शुरुआत की थी. इसी बीच 27 सितंबर को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कृषि कानून देशभर में लागू हो गए.

बीते 14 महीनों में कब-कब, क्या-क्या हुआ

कब क्या-क्या हुआ ?
कब क्या-क्या हुआ ?

क्या हैं वो तीन कृषि कानून ?

1) कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020- इसके तहत किसान कृषि उपज को सरकारी मंडियों के बाहर भी बेच सकते हैं. सरकार के मुताबिक किसान किसी निजी खरीददार को भी ऊंचे दाम पर अपनी फसल बेच सकते हैं. सरकार के मुताबिक इससे किसानों की उपज बेचने के विकल्प बढ़ेंगे.

2) कृषि (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020- ये कानून अनुबंध खेती या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देता है. इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है.

3) आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020- इसके तहत अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया. इनकी जमाखोरी और कालाबाजारी को सीमित करने और इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने जैसे प्रतिबंध हटा दिए गए हैं.

कब क्या-क्या हुआ ?
कब क्या-क्या हुआ ?

सरकार और किसानों के बीच नहीं बनी बात

इस पूरे मसले पर किसान और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई लेकिन बात नहीं बन पाई. किसान नेताओं के प्रतिनिधिमंडल और सरकार के बीच 11 मुलाकातें हुईं लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा. इन बैठकों में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हुए लेकिन किसान और सरकार अपने-अपने पाले में डटे रहे. किसान कानून वापस लेने की मांग पर अड़े रहे और सरकार अपने फैसले पर कायम रही. तीनों कृषि कानूनों के संसद से पास होने के बाद से ही किसान इनके विरोध में उतर आए थे. 27 सितंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद किसान सड़कों पर उतर आए थे. जिसके बाद 14 अक्टूबर 2020 को पहली और 22 जनवरी 2021 को आखिरी बैठक किसानों और सरका के बीच हुई लेकिन इस दौरान हुई 11 बैठकों में कोई बात नहीं बनी.

कृषि कानूनों के खिलाफ अड़े रहे किसान
कृषि कानूनों के खिलाफ अड़े रहे किसान

किसान-सरकार के बीच क्यों नहीं बनी बात ?

किसान इन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे. किसानों के मुताबिक इससे किसान बंधुआ मजदूर हो जाएगा और कृषि पूंजीपतियों के हाथ चली जाएगी. किसानों के मुताबिक इन कानूनों में उनके हित नहीं हैं बल्कि निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं. MSP को लेकर भी सरकार से लिखित आश्वासन चाहते हैं.

सरकार बताती रही कि ये कृषि कानून किसानों के लिए हितकारी हैं और इससे किसानों की आय बढ़ेगी. सरकार बार-बार कहती रही कि वो कृषि कानून वापस नहीं लेगी. हालांकि सरकार ने कहा कि MSP खत्म नहीं होगी लेकिन इस पर कानून या लिखित में देने की किसानों की मांग को सरकार दरकिनार करती रही.

कई दौर की बैठक के बाद भी सराकर और किसानों में नहीं बनी बात
कई दौर की बैठक के बाद भी सराकर और किसानों में नहीं बनी बात

26 जनवरी के बाद सब बदल गया था

26 जनवरी 2021 को जब देश गणतंत्र दिवस का जश्न मना रहा था तो देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र को ठेंगा दिखाया जा रहा था. दरअसल किसानों ने गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली में ट्रैक्टर रैली की अनुमति मांगी थी जिसे दिल्ली पुलिस ने मान भी लिया था. ट्रैक्टर रैली की आड़ में प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली में जो तांडव मचाया उसे पूरी दुनिया ने देखा. ट्रैक्टर सवार प्रदर्शनकारियों ने पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ दी और लाल किले की प्राचीर तक पहुंच गए. जहां प्रदर्शनकारियों ने देश के राष्ट्रीय ध्वज को हटाकर एक धार्मिक झंडा फहरा दिया. इस उपद्रव के दौरान दिल्ली पुलिस के कई जवान भी घायल हुए. इस पूरे मामले पर सियासत भी जमकर हुई लेकिन नुकसान पूरी तरह से किसान आंदोलन को हुआ. क्योंकि इससे पहले आंदोलन को लोगों का समर्थन भी मिल रहा था और सरकार भी एक तरह से बैकफुट पर थी लेकिन 26 जनवरी के बाद किसानों ने जनसमर्थन भी खोया और इसके बाद सरकार ने किसानों से बातचीत की पहल भी नहीं की.

26 जनवरी 2021 की तस्वीरें
26 जनवरी 2021 की तस्वीरें

भूख हड़ताल, लाठीचार्ज, हिंसा

किसान आंदोलन के दौरान किसानों भूख हड़ताल से लेकर चक्का जाम तक किया. बीते करीब एक साल से किसान दिल्ली का घेराव किए बैठे हैं. किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत और अन्य किसान संगठनों के लोग इस आंदोलन को भले शांति से किया गया बता रहे हों लेकिन कई बार किसानों का ये आंदोलन हिंसक होने के कारण सुर्खियों में रहा. 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के दौरान जो कुछ भी हुआ, उसने दुनियाभर की मीडिया की सुर्खियां बटोंरी. इसके अलावा करनाल समेत कई स्थानों पर पुलिस और किसानों के बीच हुई जड़प हो या फिर दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर किसान आंदोलन की जगह पर हाथ काटकर युवक की हत्या का मामला, आंदोलन इन बातों को लेकर सुर्खियाों में रहा.

लखीमपुर खीरी हिंसा
लखीमपुर खीरी हिंसा

लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा भी किसान आंदोलन के दामन पर एक और खूनी दाग छोड़ गी. जहां यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के कार्यक्रम का विरोध करने के लिए इकट्ठे हुए प्रदर्शनकारियों के एक समूह को एक कार ने कुचल दिया, जिसमें चार किसानों समेत 8 लोगों की मौत हो गई. बताया गया कि केंद्रीय मंत्री का बेटा कार चला रहा था, जो फिलहाल पुलिस की गिरफ्त में है.

देश-विदेश के सेलिब्रिटी की एंट्री

किसान आंदोलन देश-विदेश की मीडिया में सुर्खियां बटोरता रहा. आंदोलन में पंजाब के किसानों की बहुतायत के कारण पंजाब के सिंगर, एक्टर समेत कई कलाकार किसानों के समर्थन में उतर आए, कुछ बॉलीवुड स्टार भी किसानों के समर्थन में उतरे लेकिन ज्यादातर को दूरी बनाने के कारण किसानों का विरोध भी झेलना पड़ा. इस आंदोलन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तब और पहचान मिल गई जब अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना ने ट्वीट करके किसानों को समर्थन दे दिया, इसके अलावा पूर्व पॉर्न स्टार मिया खलीफा और ग्रेटा थनबर्ग ने भी किसानों के समर्थन में ट्वीट किया. फरवरी की शुरुआत में आए इन ट्वीट के बाद टूलकिट की भी एंट्री आंदोलन से होते हुए सियासत तक में हो गई.

रिहाना, मिया खलीफा और ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट
रिहाना, मिया खलीफा और ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट

इस बीच बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत कृषि कानूनों के समर्थन में रहीं और कृषि कानूनों के खिलाफ खड़े प्रदर्शनकारियों से लेकर सेलिब्रिटी और पंजाबी कलाकारों तक पर सोशल मीडिया के जरिये निशाने साधती रही. वैसे इस मामले में अपने बयानों को लेकर सोशल मीडिया पर कंगना को भी विरोध झेलना पड़ा था.

सियासत और बयानबाजी भी खूब हुई

कृषि कानून को लेकर पहले दिन से ही बयानबाजी शुरू हो गई थी. कानून के समर्थन और विरोध के धड़ों में जमकर बयानबाजी हुई. किसी ने किसानों को खालिस्तानी बता दिया तो किसी ने किसानों के पिज्जा, बर्गर खाने पर सवाल उठा दिए. कभी आंदोलन को पाकिस्तान और विदेशी फंडिग की बात सामने आई तो कभी इस आंदोलन को शाहीन बाग से भी जोड़ा गया. किसान आंदोलने के अगुवा रहे चेहरे भी सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आए और हर राज्यों में जाकर लोगों को कृषि कानूनों के खिलाफ समर्थन जुटाने लगे. हरियाणा से लेकर बंगाल और उत्तर प्रदेश से लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों तक किसान नेताओं ने ये अभियान छेड़ रखा था.

जंतर मंतर में किसान संसद में पहुंचे विपक्षी दलों के नेता
जंतर मंतर में किसान संसद में पहुंचे विपक्षी दलों के नेता

किसानों के इस आंदोलन में विपक्ष अपनी भलाई देख रहा था, इसलिये कदम-कदम को आंदोलन को विपक्षी दलों का समर्थन मिलता रहा. संसद सत्र के दौरान किसानों ने जंतर-मंतर पर किसान संसद लगाई तो विपक्षी दलों के नेता वहां भी दिखाई दिए. आगामी 5 राज्यों के चुनाव में किसान आंदोलन को भुनाने के लिए भी हर दल अपनी-अपनी कोशिशों में लगा रहा. लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के परिजनों से मिलने के लिए कई नेता पहुंचते रहे और मुआवजे का चेक देते रहे. बीजेपी इसे विपक्षी दलों की मौकापरस्ती कहती रही और विपक्ष सरकार को किसानों के सहारे घेरता रहा.

फिर पीएम ने किया बड़ा ऐलान

19 नवंबर को गुरुपर्व और कार्तिक पूर्णिमा की सुबह पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहता हूं कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई होगी. उन्होंने कहा कि कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए. आज गुरुनानक देव का पवित्र पर्व है. ये समय किसी को दोष देने का समय नहीं है. आज पूरे देश को यह बताने आया हूं कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि इस महीने के अंत में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर देंगे. इसके साथ ही, पीएम मोदी ने आंदोलन पर बैठे लोगों को प्रकाश पर्व पर अपने घर वापस जाने की अपील की. हालांकि राकेश टिकैत ने कहा है कि हम तुरंत आंदोलन वापस नहीं लेंगे, कृषि कानूनों के संसद से वापस लेने का इंतजार करेंगे.

ये भी पढ़ें: तत्काल वापस नहीं होगा किसान आंदोलन : राकेश टिकैत

Last Updated : Nov 19, 2021, 4:09 PM IST
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