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झारखंड: तीन दिनों तक चला 63 जान बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन, नहीं बचाई जा सकीं तीन जिंदगियां

त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे 63 लोगों को बचाने के लिए तीन दिनों तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला. इस दौरान 60 लोगों का रेस्क्यू किया गया, जबकि तीन लोगों की जान बचाई नहीं जा सकी. इस बचाव अभियान में सेना, आईटीबीपी के जवान, एनडीआरएफ की टीम और स्थानीय प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण रही.

तीन दिनों तक चला 63 जान बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन
तीन दिनों तक चला 63 जान बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन
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Published : Apr 12, 2022, 4:16 PM IST

Updated : Apr 12, 2022, 5:13 PM IST

देवघर: झारखंड में त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे लोगों को निकालने के लिए तीन दिनों तक ऑपरेशन चलाया गया. इस दौरान करीब 60 लोग सुरक्षित निकाले गए, जबकि तीन लोगों की जान बचाई नहीं जा सकी. सेना ने दो दिनों में 34 लोगों को रेस्क्यू किया, इस दौरान दो लोगों की मौत हुई, जिसमें एक महिला और एक पुरुष शामिल हैं. 11 अप्रैल को सुबह से एनडीआरएफ की टीम ने 11 जिंदगियां बचाईं, जिसमें एक छोटी बच्ची भी शामिल थी. इससे पहले हादसे के दिन 10 अप्रैल को रोपवे का मेंटिनेंस करने वाले पन्ना लाल ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से 15 लोगों को बचाया था, जबकि एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

मंगलवार को 6 घंटे चला ऑपरेशन: मंगलवार सुबह सेना का ऑपरेशन शुरू हुआ जो दोपहर एक बजे तक चला. इस दौरान सेना के जवानों ने मुश्किल परिस्थितियों में 13 लोगों की जान बचाई जबकि एक महिला की मौत हो गई. रेस्क्यू ऑपरेशन जब फाइनल दौर में था उसी वक्त एक दुखद घटना घटी, देवघर की रहने वाली एक साठ साल की महिला को एयरलिफ्ट किया जा रहा था. उसी वक्त रोपवे में रस्सी फंस गई, जिसकी वजह से चौपर खतरे में आ गया. पायलट ने जर्क देकर रस्सी को सीधा करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और इसी दौरान रस्सी टूट गई और महिला खाई में जा गिरी. बता दें कि उस महिला की बेटी और दामाद दो दिन से यहीं पर जमे हुए थे. हादसे के बाद अर्चना नाम की महिला की बेटी रोते हुए यहां की व्यवस्था को कोसती रही.

सोमवार को 11 घंटे चला ऑपरेशन: सोमवार सुबह से एनडीआरएफ की टीम रेस्क्यू ऑपरेशन में जुट गई. सेना के जवानों के पहुंचने से पहले एनडीआरएफ की टीम ने फंसे 11 लोगों को सफलतापूर्वक निकाला. उसके बाद शाम तक चले ऑपरेशन में सेना के जवानों ने 21 लोगों को रोपवे से निकाला. वहीं, इस दौरान ट्रॉली से जब व्यक्ति को निकालकर सेना के हेलीकॉफ्टर पर लाया जा रहा था उस वक्त उसका सेफ्टी बेल्ट खुल गया और वह नीचे गिर गया. जिसके बाद उसकी मौत हो गई.

कब और कैसे हुआ हादसा: 10 अप्रैल रामनवमी के दिन बड़ी संख्या में लोग रोपवे के सहारे त्रिकूट पर्वत का भ्रमण करने पहुंचे थे. इसी बीच शाम के वक्त त्रिकूट पर्वत के टॉप प्लेटफार्म पर रोपवे का एक्सेल टूट गया. इसकी वजह से रोपवे ढीला पड़ गया और सभी 24 ट्रॉली का मूवमेंट रुक गया. रोपवे के ढीला पड़ने की वजह से दो ट्रॉलियां या तो आपस में या चट्टान से टकरा गईं. रोपवे का मेंटिनेंस करने वाले पन्ना लाल ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से 15 लोगों को बचाया, जबकि एक व्यक्ति की उनके सामने ही मौत हो गई.

क्या कहते हैं मंत्री और अधिकारी: देवघर के डीसी मंजूनाथ भजंत्री से जब पूछा गया कि दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड के साथ किस टर्म एंड कंडीशन पर करार हुआ है, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है. दूसरी तरफ पर्यटन मंत्री हफीजुल हसन ने बताया कि साल 2007 में दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड ने ही रोपवे सिस्टम को स्थापित किया था, दो साल तक रोपवे का संचालन झारखंड टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने किया, लेकिन अच्छे से मेंटिनेंस नहीं होने के कारण पर्यटन विभाग ने रोपवे के संचालन की जिम्मेदारी दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड को दे दी थी. जब उनसे पूछा गया कि क्या समझौते की अवधि खत्म हो गई थी तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि समय समय पर एग्रीमेंट का रिन्युअल होता रहता है. किसी तरह का एग्रीमेंट लैप्स नहीं हुआ है.

बता दें कि 2020-2021 के बीच कोरोना की वजह से रोपवे का संचालन नहीं हो रहा था. यह पूछे जाने पर कि इतना बड़ा हादसा होने पर अब तक प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं हुई तो इसके जवाब में मंत्री और डीसी ने कहा कि सरकार की पहली प्राथमिकता लोगों को सुरक्षित बचाने की थी. इस दिशा में कवायद की जाएगी.

कब स्थापित हुआ था रोपवे सिस्टम: त्रिकूट पर्वत पर रोपवे सिस्टम की स्थापना साल 2009 में हुई थी. यह झारखंड का इकलौता और सबसे अनोखा रोपवे सिस्टम है. जमीन से पहाड़ी पर जाने के लिए 760 मीटर का सफर रोपवे के जरिये महज 5 से 10 मिनट में पूरा किया जाता है. कुल 24 ट्रालियां हैं. एक ट्रॉली में ज्यादा से ज्यादा 4 लोग बैठ सकते हैं. एक सीट के लिए 150 रुपये देने पड़ते हैं और एक केबिन बुक करने पर 500 रुपये लगता है. इसकी देखरेख दामोदर रोपवे एंड इंफ्रा लिमिटेड, कोलकाता की कंपनी करती है. यही कंपनी फिलहाल वैष्णो देवी, हीराकुंड और चित्रकूट में रोपवे का संचालन कर रही है. कंपनी के जनरल मैनेजर कॉमर्शियल महेश मेहता ने बताया कि कंपनी भी अपने स्तर से पूरे मामले की जांच कर रही है.

पढ़ें: त्रिकूट रोपवे हादसा पर झारखंड हाई कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान, सरकार से कई सवालों का मांगा जवाब

जानें त्रिकूट पर्वत के बारे में: झारखंड के देवघर जिला को दो वजहों से जाना जाता है. एक है रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग और दूसरा त्रिकूट पर्वत पर बना रोपवे सिस्टम. इस पर्वत से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि रामायण काल में रावण भी इस जगह पर रूका करते थे. इसी पर्वत पर बैठकर रावण रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग को आरती दिखाया करता था. इस पर्वत पर शंकर भगवान का मंदिर भी है. जहां नियमित रूप से पूजा भी की जाती है. इस रोपवे सिस्टम की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी चल रही है.

देवघर: झारखंड में त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे लोगों को निकालने के लिए तीन दिनों तक ऑपरेशन चलाया गया. इस दौरान करीब 60 लोग सुरक्षित निकाले गए, जबकि तीन लोगों की जान बचाई नहीं जा सकी. सेना ने दो दिनों में 34 लोगों को रेस्क्यू किया, इस दौरान दो लोगों की मौत हुई, जिसमें एक महिला और एक पुरुष शामिल हैं. 11 अप्रैल को सुबह से एनडीआरएफ की टीम ने 11 जिंदगियां बचाईं, जिसमें एक छोटी बच्ची भी शामिल थी. इससे पहले हादसे के दिन 10 अप्रैल को रोपवे का मेंटिनेंस करने वाले पन्ना लाल ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से 15 लोगों को बचाया था, जबकि एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

मंगलवार को 6 घंटे चला ऑपरेशन: मंगलवार सुबह सेना का ऑपरेशन शुरू हुआ जो दोपहर एक बजे तक चला. इस दौरान सेना के जवानों ने मुश्किल परिस्थितियों में 13 लोगों की जान बचाई जबकि एक महिला की मौत हो गई. रेस्क्यू ऑपरेशन जब फाइनल दौर में था उसी वक्त एक दुखद घटना घटी, देवघर की रहने वाली एक साठ साल की महिला को एयरलिफ्ट किया जा रहा था. उसी वक्त रोपवे में रस्सी फंस गई, जिसकी वजह से चौपर खतरे में आ गया. पायलट ने जर्क देकर रस्सी को सीधा करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और इसी दौरान रस्सी टूट गई और महिला खाई में जा गिरी. बता दें कि उस महिला की बेटी और दामाद दो दिन से यहीं पर जमे हुए थे. हादसे के बाद अर्चना नाम की महिला की बेटी रोते हुए यहां की व्यवस्था को कोसती रही.

सोमवार को 11 घंटे चला ऑपरेशन: सोमवार सुबह से एनडीआरएफ की टीम रेस्क्यू ऑपरेशन में जुट गई. सेना के जवानों के पहुंचने से पहले एनडीआरएफ की टीम ने फंसे 11 लोगों को सफलतापूर्वक निकाला. उसके बाद शाम तक चले ऑपरेशन में सेना के जवानों ने 21 लोगों को रोपवे से निकाला. वहीं, इस दौरान ट्रॉली से जब व्यक्ति को निकालकर सेना के हेलीकॉफ्टर पर लाया जा रहा था उस वक्त उसका सेफ्टी बेल्ट खुल गया और वह नीचे गिर गया. जिसके बाद उसकी मौत हो गई.

कब और कैसे हुआ हादसा: 10 अप्रैल रामनवमी के दिन बड़ी संख्या में लोग रोपवे के सहारे त्रिकूट पर्वत का भ्रमण करने पहुंचे थे. इसी बीच शाम के वक्त त्रिकूट पर्वत के टॉप प्लेटफार्म पर रोपवे का एक्सेल टूट गया. इसकी वजह से रोपवे ढीला पड़ गया और सभी 24 ट्रॉली का मूवमेंट रुक गया. रोपवे के ढीला पड़ने की वजह से दो ट्रॉलियां या तो आपस में या चट्टान से टकरा गईं. रोपवे का मेंटिनेंस करने वाले पन्ना लाल ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से 15 लोगों को बचाया, जबकि एक व्यक्ति की उनके सामने ही मौत हो गई.

क्या कहते हैं मंत्री और अधिकारी: देवघर के डीसी मंजूनाथ भजंत्री से जब पूछा गया कि दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड के साथ किस टर्म एंड कंडीशन पर करार हुआ है, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है. दूसरी तरफ पर्यटन मंत्री हफीजुल हसन ने बताया कि साल 2007 में दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड ने ही रोपवे सिस्टम को स्थापित किया था, दो साल तक रोपवे का संचालन झारखंड टूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने किया, लेकिन अच्छे से मेंटिनेंस नहीं होने के कारण पर्यटन विभाग ने रोपवे के संचालन की जिम्मेदारी दामोदर रोपवे इंफ्रा लिमिटेड को दे दी थी. जब उनसे पूछा गया कि क्या समझौते की अवधि खत्म हो गई थी तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि समय समय पर एग्रीमेंट का रिन्युअल होता रहता है. किसी तरह का एग्रीमेंट लैप्स नहीं हुआ है.

बता दें कि 2020-2021 के बीच कोरोना की वजह से रोपवे का संचालन नहीं हो रहा था. यह पूछे जाने पर कि इतना बड़ा हादसा होने पर अब तक प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं हुई तो इसके जवाब में मंत्री और डीसी ने कहा कि सरकार की पहली प्राथमिकता लोगों को सुरक्षित बचाने की थी. इस दिशा में कवायद की जाएगी.

कब स्थापित हुआ था रोपवे सिस्टम: त्रिकूट पर्वत पर रोपवे सिस्टम की स्थापना साल 2009 में हुई थी. यह झारखंड का इकलौता और सबसे अनोखा रोपवे सिस्टम है. जमीन से पहाड़ी पर जाने के लिए 760 मीटर का सफर रोपवे के जरिये महज 5 से 10 मिनट में पूरा किया जाता है. कुल 24 ट्रालियां हैं. एक ट्रॉली में ज्यादा से ज्यादा 4 लोग बैठ सकते हैं. एक सीट के लिए 150 रुपये देने पड़ते हैं और एक केबिन बुक करने पर 500 रुपये लगता है. इसकी देखरेख दामोदर रोपवे एंड इंफ्रा लिमिटेड, कोलकाता की कंपनी करती है. यही कंपनी फिलहाल वैष्णो देवी, हीराकुंड और चित्रकूट में रोपवे का संचालन कर रही है. कंपनी के जनरल मैनेजर कॉमर्शियल महेश मेहता ने बताया कि कंपनी भी अपने स्तर से पूरे मामले की जांच कर रही है.

पढ़ें: त्रिकूट रोपवे हादसा पर झारखंड हाई कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान, सरकार से कई सवालों का मांगा जवाब

जानें त्रिकूट पर्वत के बारे में: झारखंड के देवघर जिला को दो वजहों से जाना जाता है. एक है रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग और दूसरा त्रिकूट पर्वत पर बना रोपवे सिस्टम. इस पर्वत से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि रामायण काल में रावण भी इस जगह पर रूका करते थे. इसी पर्वत पर बैठकर रावण रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग को आरती दिखाया करता था. इस पर्वत पर शंकर भगवान का मंदिर भी है. जहां नियमित रूप से पूजा भी की जाती है. इस रोपवे सिस्टम की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी चल रही है.

Last Updated : Apr 12, 2022, 5:13 PM IST
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