हैदराबाद : हिमंत बिस्व सरमा या सर्बानंद सोनोवाल, भारतीय जनता पार्टी के लिए यह फैसला लेना इतना आसान नहीं था. एक तरफ सालों से पार्टी के लिए काम करने वाले प्रतिबद्ध कार्यकर्ता तो दूसरी ओर पार्टी को चमत्कारिक सफलता दिलाने वाले नेता. एक सीटिंग सीएम तो दूसरा लक्ष्य भेदने में 'अर्जुन' जैसा दक्ष. लेकिन फैसला तो लेना ही था. आखिरकार पार्टी ने अपने 'अर्जुन' हिमंत बिस्व सरमा को राज्य की कमान थमा दी.
हिमंत ने 2015 में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी. 2016 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले. तब तक वह कांग्रेस में थे. पार्टी छोड़ने से पहले उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी. लेकिन हिमंत के अनुसार राहुल ने उनके बजाए अपने 'पिड्डी' में ज्यादा रूचि दिखाई. उसके बाद सरमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने भाजपा के लिए दिन-रात एक कर दिया. सरमा की रणनीति की बदौलत भाजपा ने पूर्वोत्तर के हर इलाके में अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी. एक नजर उनके करियर पर.
कानून के अच्छे जानकार हैं हेमंत
एक फरवरी 1969 को जन्मे हेमंत बिस्वा सरमा ने गुवाहटी के कामरूप अकादमी स्कूल और कॉटन कॉलेज से पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने गुवाहटी हाई कोर्ट में लॉ की प्रेक्टिस की. पढ़ाई के दौरान 1991 से 1992 तक वह कॉटेन कॉलेज की स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेट्री भी रहे. साल 1996 में ही उन्होंने कांग्रेस में पैर जमाने शुरू कर दिए थे.
2001 में शुरू की राजनीतिक पारी
धीरे-धीरे सरमा की मेहनत रंग लाई और उन्होंने साल 2001 में पहली बार कांग्रेस की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ा और झलूकबरी विधानसभा सीट से जीत कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी. इस सीट पर उन्होंने भृगु कुमार फुकन को हराया था. साल 2011 में राज्य में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत का श्रेय भी हिमंत सरमा को जाता है. साल 2011 के चुनाव में कांग्रेस ने सरमा की बदौलत ही राज्य की 126 सीटों में से 79 सीटों पर जीत हासिल की थी.
कांग्रेस से थी नाराजगी
सरमा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के करीबी रहे हैं, लेकिन पार्टी में कद और सम्मान ने मिलने के चलते उन्होंने बीजेपी में जाने का मन बनाया. साल 2015 में सरमा ने बीजेपी ज्वॉइन कर पार्टी में राजनीतिक विकल्प तलाशने शुरू कर दिए. बीजेपी में उनके सात साल के योगदान ने आज उन्हें मुख्यमंत्री पद तक पहुंचा दिया.
कांग्रेस का तोड़ा घमंड
बीजेपी में शामिल होने के बाद से ही सरमा ने असम में साल 2016 के विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस ली थी. 2016 के असम विधानसभा चुनाव में सरमा का सपना कांग्रेस का घमंड तोड़ने का था. सरमा का सपना सच हुआ और उन्होंने बीजेपी को पहली बार उत्तरी-पूर्वी राज्य से बड़ी जीत दिलाई. इधर, इस जीत से उत्तरी-पूर्वी राज्यों में बीजेपी की उम्मीदें भी बलवान होने लगी थी. 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट और असम गण परिषद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. चुनाव में इस गठबंधन ने 86 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
बीजेपी में मिला बड़ा कद
इस जीत के साथ ही पार्टी में हेमंत बिस्वा सरमा का कद और भी बढ़ा हो गया, जिस सम्मान की उम्मीद वह कांग्रेस से कर रहे थे वो उन्हें बीजेपी के साथ जुड़कर मिल गया. सर्बानंद सोनोवल की सरकार में हिमंत बिस्व सरमा को वित्त, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मंत्रालय सौंपे गए. साथ ही उन्हें नॉर्थ ईस्ट डेवलेपमेंट एलायंस (NEDA) का संयोजक भी बनाया गया.
अपनी सीट पर बरकरार रखी जीत
उत्तरी-पूर्वी राज्यों में बीजेपी के विकास का श्रेय हिमंत के काम और उनकी राजनीतिक रणनीतियों को दिया जाता है. हिमंत की उत्तरी-पूर्वी राज्यों के लोगों और उनकी समस्याओं पर नजर साफ है और चुनावी अभियानों में हिमंत ने ऑल इंडिया यूनाटेड फ्रंट और कांग्रेस के गंठबंधन पर जमकर निशाना साधकर असम की जनता को अपने विश्वास में लिया. यही कारण है कि राज्य में बीजेपी को दूसरी बार सत्ता संभालने का मौका मिला. सरमा झलुकबारी से विधायक चुने गए हैं.