मुंबई : महाराष्ट्र के मुंबई की रहने वाली तीरा कामत दुर्लभ बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (SMA) से पीड़ित है. तीरा के इलाज के लिए उसके माता-पिता ने क्राउडफंडिंग के माध्यम से 16 करोड़ रुपये जुटाए हैं.
चूंकि यह बीमारी दुर्लभ है, इसलिए देश में इसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं थी. हालांकि, दंपती को जल्द ही एहसास हो गया कि उन्हें अमेरिकी फार्मा कंपनी से महंगी दवाएं मिल सकती हैं. इस उपचार के लिए आवश्यक इंजेक्शन की लागत 16 करोड़ रुपये है. राशि को बड़ा मानकर क्राउडफंडिंग का विकल्प चुना गया.
साइबर विशेषज्ञ अंकुर पुराणिक ने बताया कि क्राउडफंडिंग किसी खास प्रोजेक्ट, बिजनेस वेंचर या सामाजिक कल्याण के लिए तमाम लोगों से छोटी-छोटी रकम जुटाने की प्रक्रिया है.
इसमें वेब आधारित प्लेटफॉर्म या सोशल नेटवर्किंग का इस्तेमाल किया जाता है. इनके जरिए फंड जुटाने वाला संभावित दानदाताओं या निवेशकों को फंड जुटाने का कारण बताता है. अपने मकसद को वह खुलकर निवेशकों के समक्ष रखता है.
क्राउडफंडिंग से जुड़ी वेबसाइटें अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने के लिए फीस वसूलती हैं. यह फीस सेवाओं के बदले ली जाती है. ये फंड जुटाने में सहूलियत देती हैं. इनकी मदद से बेहद कम समय में काफी फंड जुटा लिया जाता है.
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उन्होंने बताया कि कई बार क्राउडफंडिंग के नाम पर लोगों के साथ धोखाधड़ी भी हो जाती है. सोशल मीडिया पर ऑनलाइन ठग और साइबर अपराधी फर्जी प्रोजेक्ट या सामाजिक कल्याण को ऑनलाइन पेश करते हैं. देखने में यह प्रोजेक्ट या सामाजिक कल्याण का आइडिया अच्छा लगता है, लेकिन जब लोग क्राउडफंडिंग में इनवेस्ट कर देते हैं, तो यह ठग पैसे लेकर फरार हो जाते हैं.
उन्होंने कहा कि क्राउडफंडिंग में पैसे डालते समय सावधानी बरतनी चाहिए. किसी भी प्रोजेक्ट या सामाजिक कल्याण के लिए कि क्राउडफंडिंग करने से पहले उसके काम के बारे में पूरी जानकारी लें, हो सके तो प्रोजेक्ट या सामाजिक कल्याण का काम शुरू करने वाले से बात करें या मिल लें. उसका बैकग्राउंड जान लीजिए.