चंडीगढ़ : पंजाब पुलिस ने खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह के खिलाफ नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत मुकदमा दाखिल कर लिया है. अमृतपाल अब भी फरार है. पुलिस ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में मंगलवार को बताया कि उसकी ओर से तलाशी अभियान जारी है. कोर्ट ने इस पर पुलिस को फटकार भी लगाई. ऐसे में जानते हैं कि एनएसए लगने से स्थिति कितनी बदल जाएगी और क्या है यह एक्ट.
नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (एनएसए) 1980 में लागू किया गया था. एनएसए के तहत स्टेट बिना किसी औपचारिक आरोप और मुकदमे के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है. इस अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति से राज्य की सुरक्षा को खतरा हो, या फिर सार्वजनिक व्यवस्था के बिगड़ने का खतरा होने की आशंका हो, तो भी उसे हिरासत में लिया जा सकता है. इसे प्रशासनिक आदेश से लागू किया जाता है. आम तौर पर डीसी या फिर डीएम इस पर फैसला करते हैं. पुलिस कोई भी विशेष आरोप लगाकर उस पर एनएसए नहीं लगा सकती है.
अगर कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है, तो भी डीएम उस पर एनएसए लगाने का आदेश दे सकते हैं. अगर कोई व्यक्ति जमानत पर है, उसके खिलाफ भी एनएसए लगाया जा सकता है. अगर किसी भी व्यक्ति को बरी कर दिया गया है, उस पर भी एनएसए लगाया जा सकता है. पुलिस हिरासत में रहने पर किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर पास के मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश करना अनिवार्य होता है, लेकिन एनएसए के तहत हिरासत में लेने पर ऐसा नहीं है. इतना ही नहीं, जिस व्यक्ति को एनएसए के तहत हिरासत में लिया जाता है, वह बेल अप्लीकेशन भी मूव नहीं कर सकता है. इस कानून के तहत एक साल तक उसे बिना किसी आरोप के हिरासत में रखा जा सकता है. विशेष परिस्थितियों में 10-12 दिनों तक उस व्यक्ति को यह भी नहीं बताया जाता है, कि उस पर क्या आरोप हैं.
अगर किसी व्यक्ति से देश की सुरक्षा को खतरा हो, या फिर वह किसी विदेशी ताकत के साथ मिलकर देश के खिलाफ षडयंत्र रच रहा हो, तो उस पर एनएसए लगाया जाता है. किसी भी समुदाय के लिए आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के रख रखाव में अगर समस्या आती है, तो भी उसके खिलाफ एनएसए लगाने का प्रावधान है.
वैसे, तो अनुच्छेद 22 ने हर किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ सुरक्षा के अधिकार दिए हैं. लेकिन एनएसए के मामले कुछ अलग होते हैं. अनुच्छेद 22(3) के तहत साफ तौर पर लिखा है कि ये कानून उनके लिए नहीं हैं. उनके लिए 22(5) के तहत विशेष प्रावधान किए गए हैं. उन्हें एक स्वतंत्र एडवायजरी बोर्ड के तहत अपनी बात रखनी होती है. इस बोर्ड के चेयरमैन वही हो सकते हैं, जो किसी हाईकोर्ट के जज हों या फिर रह चुके हों. बोर्ड में तीन सदस्य होते हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने दावा किया है कि उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल 120 मामलों का अध्ययन किया, जिसमें पाया गया है कि बोर्ड ने सभी मामलों में हिरासत को सही ठहराया.
जिस डीएम ने इसे लागू किया है, उसे कानूनी सुरक्षा मिली हुई है. इन फैसलों को लेकर उसके खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में टिप्पणी की है कि एनएसए लागू करने में काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता है. इसे लागू करने से पहले पूरी तरह से पैरामीटर निर्धारित हैं, उसे परख लें, तभी लागू करें.
बहुत सारे लोगों ने एनएसए को लेकर सवाल भी उठाए हैं. उनका तर्क है कि एनएसए हमें उस रोलेट एक्ट की याद दिलाता है, जिसे अंग्रेजों ने 1919 में लागू किया था. उनका मुख्य उद्देश्य यह था कि वे किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकें और वह व्यक्ति इसके खिलाफ अपील भी न कर सके. 1950 में सरकार ने इससे मिलते जुलते प्रावधान को स्वीकार कर लिया. इसे प्रिवेंटिव डिटेंशन नाम दिया गया. इंदिरा गांधी की सरकार ने इसे कानून बना दिया.
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