हमारे हिन्दू धर्म में कार्तिक महीने में दीपावली के दौरान पांच त्योहारों की एक लंबी श्रृंखला शुरू होती है. यह त्योहार धनतेरस से लेकर भाई दूज तक चलता है. सर्वप्रथम मनाए जाने वाले त्योहार धनतेरस को लेकर हमारे धर्मशास्त्रों व पुराणों में कई मान्यताएं व परंपराएं हैं, जिनका पालन धनतेरस के दिन अनिवार्य माना जाता है. ईटीवी भारत के जरिए जानने की कोशिश करते हैं कि धनतेरस को लेकर हमारे धर्मशास्त्रों व पुराणों में प्रमुख परंपराएं कौन कौन सी हैं, जिनका पालन लोग आ भी जरूर करते हैं....
पहली परंपरा - स्वास्थ्य लाभ का प्रतीक
हमारे धर्म में ऐसी पौराणिक मान्यता है कि समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. धनवंतरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था. धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अजर अमर बना दिया. धनवंतरी के हाथ में अमृत भरे कलश को आरोग्य सुख अर्थात् स्वास्थ्य लाभ का प्रतीक माना जाता है. इसके प्राप्त होने के बाद हमारे जीवन से कष्ट खत्म हो जाते हैं. स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मन आज के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है. इसीलिए हर कोई आरोग्यता प्राप्त करने के लिए तरह तरह के उपाय करते हैं. भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य कहे जाते हैं. इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख अर्थात् स्वास्थ्य लाभ मिलता है. भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार कहे जाते हैं. संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी के रुप में अवतार लिया था. संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी के रुप में अवतार लेने की तिथि को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. इसीलिए हमारे देश में धनतेरस को हर साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है. आयुर्वेदिक उपचार पांच तत्वों या दोषों को संतुलित करने पर केंद्रित है. दुनिया भर में इस प्राचीन उपचार प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए हमारे देश के केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने 28 अक्टूबर 2016 को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की शुरुआत की.
दूसरी परंपरा-बर्तन खरीदने की परम्परा
हमारे पौराणिक ग्रंथों में मिलने वाली कथा के अनुसार, जब अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और दानवों के द्वारा समुद्र मंथन किया गया था, तो एक-एक करके उससे क्रमशः चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी. इसके बाद सबसे अंत में भगवान धनवंतरी जब पृथ्वी लोक में प्रकट हुए तो वह हाथ में कलश लेकर आए थे. जिस दिन भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी, इसलिए धनतेरस या धनत्रयोदशी के दिन धनवंतरी देव के पूजन का विधान है. इस कलश का एक पात्र अथवा बर्तन माना जाता है. इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा शुरू हुयी है. इस दिन पीतल, तांबा, स्टील के बर्तन खरीदे जाते हैं, लेकिन भूलकर भी इस दिन लोहे के बर्तन नहीं खरीदने चाहिए. इस दिन ऐसी चीजें खरीदते हैं, जिसमें जंग न लगने की संभावना हो. धनतेरस के दिन खरीदे गए बर्तनों में लोग दीपावली के बाद अन्न आदि भरकर रखा करते हैं. मान्यता है कि इससे सदैव अन्न और धन के भंडारे भरे रहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन खरीदी गई चीज में तेरह गुणा वृद्धि होती है.
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तीसरी परंपरा- धन में तेरह गुणा वृद्धि
हमारे हिन्दू धर्म की लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि धनतेरस के दिन धन अथवा कीमती वस्तु खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है. इस अवसर पर लोग बर्तन के अलावा सोने व चांदी के आभूषण या उससे बने अन्य सामान खरीदते हैं. धनतेरस के दिन हर एक धार्मिक व्यक्ति सोना या चांदी खरीदकर अपने घर में लाने की कोशिश करता है. जो लोग सोने के कीमती सामान नहीं खरीद पाते हैं वह चांदी के बने सिक्के या बर्तन खरीदते हैं. कुछ लोग दीपावली के दिन पूजा के लिए चांदी की लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा खरीद लेते हैं. इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि चांदी चन्द्रमा का प्रतीक है. चंद्रमा शीतलता प्रदान करता है और इससे मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है. सन्तोष को हमारे धर्म में सबसे बड़ा धन कहा गया है. जिसके पास सन्तोष धन होता है. वही स्वस्थ और सुखी कहा जाता है.
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चौथी परंपरा - धनिया का बीज खरीदना
धनतेरस पर धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखने की परंपरा है. धनिया जिस तरह से स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होने के साथ साथ अपनी खुशबू को आसपास में फैलाने के लिए हर घर में उपयोगी माना जाता है. कहा जाता है कि जिस जगह पर धनिया का उपयोग किया जाता है, उसका स्वाद व लुक भी बदल जाता है. धनतेरस के दिन लोग धनिया खरीदने के बाद इसे घर में संभालकर रखा जाता है और कई लोग दीपावली के बाद इन बीजों को अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं और उससे लाभान्वित होने की कोशिश करते हैं.
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पांचवीं परंपरा - यमराज के निमित्त दीपदान
हमारे शास्त्रों में धनतेरस की पूजा के बारे में कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती. इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता हैं. इस दीप को 'जम का दिया' अर्थात 'यमराज का दीपक' कहा जाता है. रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं. दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखते हुए जलाती हैं. साथ ही जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं. चूंकि यह दीपक मृत्यु के नियन्त्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, अत: दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन करना चाहिए. साथ ही साथ यह भी प्रार्थना करनी चाहिए कि हे यमदेव आपकी हमारे पूरे परिवार पर दया दृष्टि बनी रहे और हमारे घर परिवार में किसी की अकाल मृत्यु न हो.
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