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प्रतिनियुक्ति पर केंद्र और राज्य आमने-सामने, जानें क्या कहते हैं नियम

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Published : May 31, 2021, 7:39 PM IST

Updated : May 31, 2021, 9:31 PM IST

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय ने सोमवार को रिटायरमेंट की घोषणा कर दी. इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर दिया. केंद्र सरकार ने अलपन को आज दिल्ली रिपोर्ट करने को कहा था. लेकिन इसके बाद भी विवाद थमेगा, ऐसा लग नहीं रहा है. ममता ने पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को स्टालिन की तरह व्यवहार करने वाला बताया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या केंद्र के पास राज्य के अधिकारियों को बुलाने का अधिकार है या नहीं. और दूसरा कि क्या इससे पहले भी इस तरह के मामले सामने आए हैं. आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

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डिजाइन फोटो

हैदराबाद : पश्चिम बंगाल मुख्य सचिव विवाद में सोमवार को उस समय बड़ा मोड़ आ गया, जब अलपन बंद्योपाध्याय ने खुद ही रिटायरमेंट की घोषणा कर दी. मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें तुरंत ही अपना मुख्य सलाहकार बना दिया. दो दिन पहले केंद्र सरकार ने अलपन को दिल्ली रिपोर्टिंग करने को कहा था. केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर यह कोई पहला विवाद नहीं है. राज्य सरकारें अपने-अपने हिसाब से इसका विरोध करती रहीं हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इस तरह के मामलों में नियम क्या कहते हैं और क्या इस तरह के विवाद पहले भी हुए हैं. एक नजर.

अलपन बंद्योपाध्याय विवाद

25 मई को ममता बनर्जी ने केंद्र की मंजूरी का हवाला देकर अलपन बंद्योपाध्याय को तीन महीने के लिए सेवा विस्तार प्रदान कर दिया था. 28 मई को पीएम मोदी प.बंगाल पहुंचे थे. चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों की मदद के लिए बैठक में अलपन और सीएम आधे घंटे की देरी से पहुंचे थे. देर शाम तक केंद्र ने अलपन को 31 मई तक दिल्ली रिपोर्ट करने को कहा. लेकिन आज उन्होंने रिटायरमेंट ले ली. ममता ने उन्हें अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर दिया.

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अलपन बंद्योपाध्याय

आईपीएस आधिकारियों का विवाद

इससे पहले प. बंगाल के तीन आईपीएस अधिकारियों का मामला अब तक लंबित है. भोलानाथ पांडे, प्रवीण त्रिपाठी और राजीव मिश्रा का. भोलानाथ पांडे को बीपीआरडी, प्रवीण त्रिपाठी को एसएसबी और राजीव मिश्रा को आईटीबीपी में प्रतिनियुक्ति का आदेश दिया गया था. यह आदेश तब आया था जब विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ था.

तमिलनाडु के आईपीएस अधिकारियों को बुलाया गया था वापस

2001 में केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के तीन आईपीएस अधिकारियों को समन किया था. ये थे चेन्नई के तत्कालीन पुलिस आयुक्त एम मुथुकारुप्पन, संयुक्त आयुक्त एस जॉर्ज और उपायुक्त क्रिस्टॉफर नेल्सन. कथित तौर पर ये तीनों अधिकारी डीएमके के तत्कालीन प्रमुख एम करुणानिधि के खिलाफ हुए रेड में शामिल थे. राज्य सरकार ने तीनों अधिकारियों को रिलीव नहीं किया.

दिल्ली मुख्य सचिव विवाद

दिल्ली में दिसंबर 2017 में केंद्र सरकार ने अंशु प्रकाश को मुख्य सचिव बना दिया था. इस पर अरविंद केजरीवाल ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि बिना राज्य सरकार से परामर्श किए ही केंद्र ऐसा नहीं कर सकती है. हालांकि, दिल्ली में अधिकारों को लेकर खींचतान चलती रहती है. यह विवाद उससे ही जुड़ा था.

क्या हैं नियम

भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम 1954 के नियम 6(1) के अनुसार राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सहमति से किसी भी अधिकारी की प्रतिनियुक्ति किसी भी जगह पर की जा सकती है. जब राज्य और केंद्र के बीच सहमति न बने, तो केंद्र की राय को प्राथमिकता दी जाएगी.

केंद्र के पास अधिकार रहने के बावजूद उसके कार्यान्वयन में दिक्कत आती है. यदि किसी विशेष स्थिति में उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने की स्थिति पहुंचती है, तो भी केंद्र और राज्य दोनों की सहमति आवश्यक है.

ये भी पढ़ें : अलपन बंद्योपाध्याय बने मुख्य सलाहकार, एचके द्विवेदी अगले मुख्य सचिव

ये भी पढ़ें : ममता और मोदी के बीच पुरानी है जंग की कहानी

केंद्र के पास सीमित अधिकार

इस मामले के जानकार बताते हैं कि किसी भी अधिकारी की इच्छा के विरुद्ध प्रतिनियुक्ति की परंपरा नहीं है. हालांकि, केंद्र सरकार कारण बताओ नोटिस जारी कर सकती है.

केंद्रीय प्रतिनियुक्ति

किसी भी राज्य में तैनात आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की संख्या के आधार पर राज्य का सेंट्रल डेप्युटेशन रिजर्व, सीडीआर, तय किया जाता है. आम तौर पर यह एक चौथाई होता है. यानी इतने अधिकारियों को राज्य को केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए भेजा जाना होता है.

आइएएस अधिकारियों से जुड़े अन्य विवाद

तब वाराणसी के डीएम ने मोदी को नहीं दी थी रैली की इजाजत

मई 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की बनारस में रैली होनी थी. लेकिन वहां के डीएम प्रांजल यादव ने इसकी इजाजत नहीं दी थी. इस खबर के बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में काफी गुस्सा था. वे डीएम को हटाने की मांग करने लगे. प्रांजल समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव के रिश्तेदार बताए जाते हैं. भाजपा ने तब कहा था कि सबकुछ समाजवादी पार्टी की सरकार के इशारे पर हो रहा है.

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प्रांजल यादव

हालांकि, बाद में जब मोदी वहां के सांसद बने और उसके बाद पीएम, तो प्रांजल ने उनके अनुरूप ही सांसद निधि में मिलने वाली राशि से विकास कार्य करवाया था. तब प्रांजल ने मीडिया को बताया था कि पीएम मोदी ने पांच विधानसभा क्षेत्रों में यह राशि बराबर-बराबर हिस्सों में बांट दी है. उनके अनुसार सोलर लाइट, हैडपंप और रोड पर जोर देने को कहा गया.

इतना ही नहीं, प्रांजल यादव उस प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल थे, जो क्योटो यह स्टडी करने गया था कि कैसे किसी प्राचीन शहर की विरासत को सुरक्षित रखा जा सकता है.

वैसे जुलाई 2015 में अखिलेश यादव सरकार ने उन्हें जिलाधिकारी वाराणसी के पद से हटाकर मुख्यमंत्री सचिवालय में बुला लिया. वह अखिलेश यादव के विशेष सचिव के रूप में बने रहे. लेकिन 2017 में भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी तो उन्हें मुख्यमंत्री सचिवालय से हटाकर विशेष सचिव स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन के पद पर भेज दिया गया. तब से लेकर अब तक वह कभी मिशन निदेशक कौशल विकास योजना सहित सचिवालय के अन्य विभागों में विशेष सचिव के रूप में तैनाती पाते रहे हैं. फिलहाल वह विशेष सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के पद पर तैनात हैं.

काला चश्मा पहनकर पहुंचे थे पीएम का स्वागत करने

मई 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ प्रवास पर थे. वहां पर जगदलपुर में पीएम मोदी का स्वागत करने तत्कालीन डीएम अमित कटारिया काला चश्मा में पहुंचे थे. पीएम मोदी ने उन्हें दबंग डीएम कहकर संबोधित किया था. लेकिन पीएम के जाने के बाद राज्य सरकार ने डीएम को चेतवानी दी थी. उनसे कहा गया कि अखिल भारतीय सेवा अधिकारी की गरिमा के अनुरूप ही आप लोग व्यवहार करें. दंतेवाड़ा के डीएम केसी देवसेनापति की भी पोशाक प्रोटोकॉल के अनुरूप नहीं था. अभी वह केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर हैं.

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पीएम का स्वागत करते अमित कटारिया

क्या हैं नियम

आपको बता दें कि ऑल इंडिया सर्विस (कंडक्ट) रुल्स 1968 के मुताबिक ड्रेस कोड तय किया गया है. गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपाल के आगमन के समय क्या पहनना है, इस पर दिशानिर्देश दिए गए हैं.

हैदराबाद : पश्चिम बंगाल मुख्य सचिव विवाद में सोमवार को उस समय बड़ा मोड़ आ गया, जब अलपन बंद्योपाध्याय ने खुद ही रिटायरमेंट की घोषणा कर दी. मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें तुरंत ही अपना मुख्य सलाहकार बना दिया. दो दिन पहले केंद्र सरकार ने अलपन को दिल्ली रिपोर्टिंग करने को कहा था. केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर यह कोई पहला विवाद नहीं है. राज्य सरकारें अपने-अपने हिसाब से इसका विरोध करती रहीं हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इस तरह के मामलों में नियम क्या कहते हैं और क्या इस तरह के विवाद पहले भी हुए हैं. एक नजर.

अलपन बंद्योपाध्याय विवाद

25 मई को ममता बनर्जी ने केंद्र की मंजूरी का हवाला देकर अलपन बंद्योपाध्याय को तीन महीने के लिए सेवा विस्तार प्रदान कर दिया था. 28 मई को पीएम मोदी प.बंगाल पहुंचे थे. चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों की मदद के लिए बैठक में अलपन और सीएम आधे घंटे की देरी से पहुंचे थे. देर शाम तक केंद्र ने अलपन को 31 मई तक दिल्ली रिपोर्ट करने को कहा. लेकिन आज उन्होंने रिटायरमेंट ले ली. ममता ने उन्हें अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर दिया.

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अलपन बंद्योपाध्याय

आईपीएस आधिकारियों का विवाद

इससे पहले प. बंगाल के तीन आईपीएस अधिकारियों का मामला अब तक लंबित है. भोलानाथ पांडे, प्रवीण त्रिपाठी और राजीव मिश्रा का. भोलानाथ पांडे को बीपीआरडी, प्रवीण त्रिपाठी को एसएसबी और राजीव मिश्रा को आईटीबीपी में प्रतिनियुक्ति का आदेश दिया गया था. यह आदेश तब आया था जब विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ था.

तमिलनाडु के आईपीएस अधिकारियों को बुलाया गया था वापस

2001 में केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के तीन आईपीएस अधिकारियों को समन किया था. ये थे चेन्नई के तत्कालीन पुलिस आयुक्त एम मुथुकारुप्पन, संयुक्त आयुक्त एस जॉर्ज और उपायुक्त क्रिस्टॉफर नेल्सन. कथित तौर पर ये तीनों अधिकारी डीएमके के तत्कालीन प्रमुख एम करुणानिधि के खिलाफ हुए रेड में शामिल थे. राज्य सरकार ने तीनों अधिकारियों को रिलीव नहीं किया.

दिल्ली मुख्य सचिव विवाद

दिल्ली में दिसंबर 2017 में केंद्र सरकार ने अंशु प्रकाश को मुख्य सचिव बना दिया था. इस पर अरविंद केजरीवाल ने विवाद खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि बिना राज्य सरकार से परामर्श किए ही केंद्र ऐसा नहीं कर सकती है. हालांकि, दिल्ली में अधिकारों को लेकर खींचतान चलती रहती है. यह विवाद उससे ही जुड़ा था.

क्या हैं नियम

भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम 1954 के नियम 6(1) के अनुसार राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सहमति से किसी भी अधिकारी की प्रतिनियुक्ति किसी भी जगह पर की जा सकती है. जब राज्य और केंद्र के बीच सहमति न बने, तो केंद्र की राय को प्राथमिकता दी जाएगी.

केंद्र के पास अधिकार रहने के बावजूद उसके कार्यान्वयन में दिक्कत आती है. यदि किसी विशेष स्थिति में उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने की स्थिति पहुंचती है, तो भी केंद्र और राज्य दोनों की सहमति आवश्यक है.

ये भी पढ़ें : अलपन बंद्योपाध्याय बने मुख्य सलाहकार, एचके द्विवेदी अगले मुख्य सचिव

ये भी पढ़ें : ममता और मोदी के बीच पुरानी है जंग की कहानी

केंद्र के पास सीमित अधिकार

इस मामले के जानकार बताते हैं कि किसी भी अधिकारी की इच्छा के विरुद्ध प्रतिनियुक्ति की परंपरा नहीं है. हालांकि, केंद्र सरकार कारण बताओ नोटिस जारी कर सकती है.

केंद्रीय प्रतिनियुक्ति

किसी भी राज्य में तैनात आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की संख्या के आधार पर राज्य का सेंट्रल डेप्युटेशन रिजर्व, सीडीआर, तय किया जाता है. आम तौर पर यह एक चौथाई होता है. यानी इतने अधिकारियों को राज्य को केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए भेजा जाना होता है.

आइएएस अधिकारियों से जुड़े अन्य विवाद

तब वाराणसी के डीएम ने मोदी को नहीं दी थी रैली की इजाजत

मई 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी की बनारस में रैली होनी थी. लेकिन वहां के डीएम प्रांजल यादव ने इसकी इजाजत नहीं दी थी. इस खबर के बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में काफी गुस्सा था. वे डीएम को हटाने की मांग करने लगे. प्रांजल समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव के रिश्तेदार बताए जाते हैं. भाजपा ने तब कहा था कि सबकुछ समाजवादी पार्टी की सरकार के इशारे पर हो रहा है.

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प्रांजल यादव

हालांकि, बाद में जब मोदी वहां के सांसद बने और उसके बाद पीएम, तो प्रांजल ने उनके अनुरूप ही सांसद निधि में मिलने वाली राशि से विकास कार्य करवाया था. तब प्रांजल ने मीडिया को बताया था कि पीएम मोदी ने पांच विधानसभा क्षेत्रों में यह राशि बराबर-बराबर हिस्सों में बांट दी है. उनके अनुसार सोलर लाइट, हैडपंप और रोड पर जोर देने को कहा गया.

इतना ही नहीं, प्रांजल यादव उस प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल थे, जो क्योटो यह स्टडी करने गया था कि कैसे किसी प्राचीन शहर की विरासत को सुरक्षित रखा जा सकता है.

वैसे जुलाई 2015 में अखिलेश यादव सरकार ने उन्हें जिलाधिकारी वाराणसी के पद से हटाकर मुख्यमंत्री सचिवालय में बुला लिया. वह अखिलेश यादव के विशेष सचिव के रूप में बने रहे. लेकिन 2017 में भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी तो उन्हें मुख्यमंत्री सचिवालय से हटाकर विशेष सचिव स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन के पद पर भेज दिया गया. तब से लेकर अब तक वह कभी मिशन निदेशक कौशल विकास योजना सहित सचिवालय के अन्य विभागों में विशेष सचिव के रूप में तैनाती पाते रहे हैं. फिलहाल वह विशेष सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के पद पर तैनात हैं.

काला चश्मा पहनकर पहुंचे थे पीएम का स्वागत करने

मई 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ प्रवास पर थे. वहां पर जगदलपुर में पीएम मोदी का स्वागत करने तत्कालीन डीएम अमित कटारिया काला चश्मा में पहुंचे थे. पीएम मोदी ने उन्हें दबंग डीएम कहकर संबोधित किया था. लेकिन पीएम के जाने के बाद राज्य सरकार ने डीएम को चेतवानी दी थी. उनसे कहा गया कि अखिल भारतीय सेवा अधिकारी की गरिमा के अनुरूप ही आप लोग व्यवहार करें. दंतेवाड़ा के डीएम केसी देवसेनापति की भी पोशाक प्रोटोकॉल के अनुरूप नहीं था. अभी वह केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर हैं.

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पीएम का स्वागत करते अमित कटारिया

क्या हैं नियम

आपको बता दें कि ऑल इंडिया सर्विस (कंडक्ट) रुल्स 1968 के मुताबिक ड्रेस कोड तय किया गया है. गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपाल के आगमन के समय क्या पहनना है, इस पर दिशानिर्देश दिए गए हैं.

Last Updated : May 31, 2021, 9:31 PM IST
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