नई दिल्ली: सीपीआईएम (CPIM) के किसान संगठन अखिल भारतीय किसान सभा का राष्ट्रीय अधिवेशन (National Convention of All India Kisan Sabha) 13 से 16 दिसंबर तक केरल के त्रिशूर में आयोजित होने वाला है. इस अखिल भारतीय राष्ट्रीय अधिवेशन में देश भर से 800 किसान प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे. तीन दिवसीय अधिवेशन में किसानों से जुड़े कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा होगी और आगे एक साल तक के लिये बड़े स्तर पर आंदोलन की रूप रेखा भी तैयार की जाएगी.
दिल्ली स्थित मुख्यालय से कार्यक्रम की जानकारी देते हुए अखिल भारतीय किसान सभा (All India Kisan Sabha) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक धावले ने कहा कि मोदी सरकार ने साल 2016 में कहा था कि 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी की जाएगी, लेकिन दुगनी होने के बजाय देश के कई हिस्सों में किसानों की आमदनी में बड़ी गिरावट आई है. धावले ने इससे जुड़े प्रमाणिक आंकड़े किसान सभा के पास उप्लब्ध होने का दावा भी किया.
अधिवेशन में दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा एमएसपी पर फसल के खरीद की गारंटी का होगा. लंबे समय से किसान संगठन इसकी मांग करते रहे हैं. अशोक धावले (National President of All India Kisan Sabha) ने एक साल से ज्यादा चले किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि किसानों की एकजुटता से तीन कृषि कानून सरकार को वापस लेने पड़े, लेकिन इसके अलावा अन्य मांगों पर सफलता नहीं मिल सकी, जिसमें एमएसपी गारंटी कानून अहम है.
आगे के आन्दोलन में किसान सभा अपने स्तर पर और किसान संगठनों के सामूहिक स्तर पर भी बड़े आंदोलन की योजना तैयार करेगा, जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके. तीसरा मुद्दा किसानों के पूर्ण कर्जा माफी का होगा. धावले ने बताया कि सरकार की उदारवादी नीतियों के कारण देश के किसानों की हालत बदतर होती गई और अब तक चार लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें से एक लाख किसानों ने मोदी सरकार के आठ साल के कार्यकाल के दौरान आत्महत्या की है.
किसानों के आत्महत्या में उनका कर्ज तले दबा होना मुख्य कारण रहा है. इसलिये यह आवश्यक है कि सभी किसानों का पूर्ण कर्जा माफी करने का काम सरकार करे. अशोक धावले ने दावा किया कि मोदी सरकार ने अपने आठ साल के कार्यकाल में बड़े कॉर्पोरेट घरानों के 11 लाख करोड़ के कर्ज को माफ किया है. यदि उनके लिये यह किया जा सकता है, तो किसानों के लिये भी कर्ज माफी किया जाना चाहिये.
किसान सभा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान चौथा बड़ा मुद्दा भूमि अधिकार से संबंधित होगा. किसान सभा के नेता ने दावा किया कि एक योजना के तहत जंगल और आदिवासी क्षेत्रों में बड़े स्तर पर जमीनें प्राइवेट कंपनियों को दी जा रही हैं. इसके बाद कॉर्पोरेट वहां मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करेंगे और मुनाफा कमयेंगे, जबकी इन क्षेत्र में वर्षों से रह रहे आदिवासी और पिछड़े लोगों का इन जमीन पर पहला अधिकार होना चाहिये. अधिवेशन में इस मुद्दे पर अलग आंदोलन की रणनीति तैयार की जाएगी.
किसान सभा ने घोषणा की है कि अपने संगठन के द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन के साथ-साथ वह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के साथ भी समानांतर रूप से काम करेंगे. किसान नेताओं ने माना कि जब भी देश भर के अलग-अलग संगठन एकजुट हुए हैं, तब सरकार को उनकी बात माननी पड़ी है. इसलिये समान मुद्दों पर एकजुट संघर्ष को प्राथमिकता देते रहेंगे.
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अखिल भारतीय किसान सभा की स्थापना 1936 में हुई थी और यह देश के सबसे बड़े किसान संगठनों में शुमार है. संगठन के महासचिव हनन मोल्ला ने बताया कि बीते एक साल में किसान सभा की सदस्यता में 19 लाख की बढ़ोतरी हुई है और आज देश भर में 1 करोड़ 37 लाख किसान इसके सदस्य हैं. राष्ट्रीय अधिवेशन में अलग-अलग राज्यों से आ रहे किसान नेता इनका प्रतिनिधित्व करेंगे.
अखिल भारतीय किसान सभा का यह राष्ट्रीय अधिवेशन पांच साल बाद आयोजित हो रहा है. इससे पहले यह वर्ष 2017 में हरियाणा के हिसार में आयोजित हुआ था. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर विपक्षी दलों के अलग अलग संगठनों ने कई मुद्दों पर आंदोलन की तैयारी शुरु कर दी है. किसान संगठनों की गोलबंदी भी इसी का हिस्सा माना जा रहा है.