नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र (monsoon session of parliament) 19 जुलाई से शुरू होने जा रहा है. इससे पहले आज किसान मोर्चा (Farmer union) ने सर्वदलीय बैठक बुलाई गई जिसमें कृषि कानूनों (Farm Laws) के विरुद्ध में एक्शन प्लान तैयार किया गया. अब किसानों का आंदोलन संसद पर भी असर डालने जा रहा है. बैठक में तय किया गया कि 22 जुलाई से दिल्ली में संसद भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन (Protest) किया जाएगा. मानसून सत्र के दौरान रोजाना 200 किसान संसद का घेराव करेंगे. आज आंदोलन का एलान करने के साथ बताया गया कि आंदोलन को लेकर दिल्ली बोर्डरों पर तैयारियां भी चल रही है.
यहां सबसे बड़ा सवाल है कि दिल्ली सीमा (Delhi Border) पर पर चाकचौबंद सुरक्षा के बावजूद बगैर अनुमति क्या 200 किसान संसद गेट तक पहुंच पाएंगे? एक खबर यह भी आ रही है कि संसद भवन के बाहर प्रदर्शन नहीं कर पाए, तो किसानों का जत्था जंतर-मंतर की तरफ कूच करेगा.
543 सांसदों से मिलेंगे किसान नेता
जानकारी के मुताबिक, संयुक्त किसान मोर्चा (United Kisan Morcha) के मुताबिक जब तक संसद का मानसून सत्र चलेगा तब तक उनका प्रदर्शन भी संसद के बाहर जारी रहेगा. लेकिन इससे पहले किसान नेता सभी 543 सांसदों से मुलाकात करेंगे.
ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हनन मोल्ला ने कार्यक्रम की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि 17 जुलाई को किसान नेता अपने-अपने क्षेत्र के सांसदों से मिलकर उन्हें मांगों का ज्ञापन सौंपेंगे. ज्ञापन में स्पष्ट कर दिया जाएगा कि संसद में उनकी मांगों पर चर्चा हो और सांसद उनकी मांगों का समर्थन करें. अन्यथा अगले चुनाव में इस बात को याद रखा जाएगा कि उन्होंने किसानों की बात नहीं मानी.
पढ़ें : Ghazipur Border: बुजुर्ग किसान शिवचरण का धूमधाम से मनाया गया जन्मदिन
किसानों से फासीवादी सरकार जैसा रवैया
हनन मोल्ला ने आगे कहा कि ये सरकार जनवादी सरकार की तरह नहीं बल्कि फासीवादी सरकार की तरह किसानों के साथ पेश आ रही है. अब तक 600 से ज्यादा किसानों की मौत आंदोलन के दौरान हो चुकी है. सात महीने से ज्यादा वक्त से यह आंदोलन जारी है, लेकिन सरकार है कि किसानों की मांग समझने को तैयार ही नहीं है.
किसान नेताओं के चुनाव लड़ने की बात पर हनन मोल्ला ने कहा कि ऐसी खबरें फैलाने वालों को ये समझ लेना चाहिए कि संयुक्त किसान मोर्चा केवल एक मंच है. इस मंच के माध्यम से पांच सौ किसान संगठन तीन कृषि कानूनों को रद्द करने और MSP (minimum support price) पर खरीद के लिए कानून बनाने की मांग के साथ संघर्ष कर रहे हैं. यह आंदोलन हमेशा से गैर-राजनीतिक रहा है और आगे भी रहेगा. कोई भी किसान संगठन चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन यदि किसान संगठन के नेता किसी पार्टी में शामिल हो जाए या किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े तो वह उसकाी मर्जी है. इसका किसान आंदोलन से कोई संबंध नहीं होगा.
चुनाव न लड़ने पर स्पष्टता के साथ हनन मोल्ला ने यह भी कहा कि जिस तरह हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में किसान मोर्चा ने भाजपा के खिलाफ कैंपेनिंग की वह आगे आने वाले राज्यों के चुनाव में भी जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि ये मोदी सरकार कवक वोट की चोट को समझती है. इसलिए जिन राज्यों में भी चुनाव होंगे, वहां हम जाकर भाजपा के विरोध में प्रचार करेंगे.
उन्होंने कहा कि वोट किसे देना है, यह जनता तय करेगी, क्योंकि किसान नेता किसी पार्टी या उम्मीदवार के पक्ष में नहीं जाएंगे. हमारा मकसद केवल भाजपा को हराना होगा.