नई दिल्ली : पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के अलावा अब किसानों का गुट भी सक्रिय दिख रहा है. विशेषकर पश्चिम बंगाल के चुनाव में किसान नेताओं की एंट्री ने एक बार फिर से किसान आंदोलन पर राजनीतिक होने के आरोपों को हवा दे दी है. किसान नेता राकेश टिकैत ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को शेरनी बताते हुए लोगों से भाजपा को वोट न देने की अपील की है. इतना ही नहीं टिकैत ने तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक पंचलाइन 'खेला होबे' को भी मंच से दोहराया है.
इससे यह सवाल खड़े हुए की क्या टिकैत ने दीदी के पक्ष में जनता को इशारा किया? दूसरी तरफ संयुक्त किसान मोर्चा के किसान महापंचायत में सीपीएम के नेता मंच साझा करते दिखे. किसान नेता टिकैत से तृणमूल सांसद डोला सेन ने एयरपोर्ट पर मुलाकात की. जिसके बाद बीजेपी को किसानों के कार्यक्रम को राजनीतिक बताने का एक और मौका मिल गया. किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि किसानों के आंदोलन को राजनीतिक बताने वालों को यह समझना चाहिए कि इस सरकार को किसानों का दर्द नहीं दिख रहा.
भाजपा को करेंगे सत्ता से दूर
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को केवल वोट और सत्ता की भाषा समझ आती है. इसलिए किसानों को चुनावी राज्यों में जाना पड़ा है. अब जिन-जिन राज्यों में चुनाव होंगे वहां किसान नेता पहुंचेंगे और लोगों से अपील करेंगे कि बीजेपी को वोट न दें. इस तरह से भाजपा सत्ता से दूर होती चली जाएगी. तब जाकर शायद सरकार को किसानों की मांग समझ आए. पुष्पेंद्र सिंह ने आगे कहा कि किसानों ने व्यापक स्तर पर इस सरकार को बदलने की तैयारी शुरू भी कर दी है.
भाजपा के लोग भी किसानों के साथ
चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि अलग-अलग राज्यों ने किसान महापंचायतों और जन जागरण के माध्यम से अब किसान आंदोलन एक बड़ा रूप लेता जा रहा है और लोगों में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है. यदि समय रहते सरकार ने किसानों की मांग स्वीकार नहीं की, तो उन्हें इसका खामियाजा सत्ता खो कर भुगतना पड़ेगा. पुष्पेंद्र सिंह ने दावा किया है कि खुद भाजपा के बहुत सारे सांसद और विधायक चाहते हैं कि ये तीन कृषि कानून रद्द किए जाएं और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल के खरीद की गारंटी किसानों को मिले.
जाम किया जाएगा बाॅर्डर
गाजीपुर आंदोलन स्थल से किसान नेता राकेश टिकैत ने एक बार फिर संसद घेरने और दिल्ली यूपी एक्सप्रेसवे को पूरी तरह जाम करने की बात कही है. लेकिन बॉर्डर जाम होने के कारण हजारों लोगों को असुविधा का सामना भी करना पड़ता है. ऐसे में अब लोगों के बीच आंदोलन को लेकर नकारात्मकता फैलनी शुरू हो चुकी है. सैकड़ों लोगों के व्यवसाय हाईवे के दोनों तरफ प्रभावित हो रहे हैं. ये लोग किसान आंदोलन को ही इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं. ऐसे में जब गांव-गांव तक आंदोलन की तैयारी चल रही है, तो क्या किसान मोर्चा को बॉर्डर खाली कर देना चाहिये?
जारी रहेगा आंदोलन व पंचायत
इस सवाल पर पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि लोगों को असुविधा होने के लिए सीधे तौर पर सरकार जिम्मेदार है. किसान, तो दिल्ली के रामलीला मैदान पहुंचना चाहते थे, लेकिन उन्हें बॉर्डर पर रोक दिया गया. अब जब किसान बॉर्डर पर कब्जा जमा चुके हैं, तो उनका यहां बने रहना जरूरी है. सरकार बिना दबाव बनाए किसानो की मांग नहीं मान सकती. ऐसे में किसानों को दोनों तरफ से आंदोलन जारी रखना है. दिल्ली के बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन जारी रहेंगे और गांव, तहसील व जिला स्तर पर किसान पंचायतों का आयोजन भी चलता रहेगा.
सरकार असंवेदनशील बन चुकी है
संयुक्त किसान मोर्चा ने मंगलवार को जारी व्यक्तव्य में कहा है कि वह हमेशा से बातचीत के पक्ष में रहे हैं. सरकार को विभिन्न रुकावटों को दूर कर के बातचीत का रास्ता खोलना चाहिए. आंदोलन को अब डेढ़ महीने से ज्यादा का समय हो चुका है. ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा ने आज सरकार पर असंवेदनशील होने का आरोप लगाते हुए कहा कि राजनैतिक राय से परे सरकार सामान्य व्यवहार भी नहीं निभा रही है.
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आंदोलन में अब तक करीब 300 लोगों की मौत हो चुकी है. किसान नेता उनके परिवारों के लिए मुआवजे और सरकारी नौकरी की मांग भी कर रहे हैं.