नई दिल्ली: भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई जांच से पता चला है कि खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने और कई मौकों पर भारत विरोधी प्रचार फैलाने के लिए संचार के नवीनतम तरीकों का इस्तेमाल कानून प्रवर्तन एजेंसियों की नजरों से बचकर किया जाता है.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को ईटीवी भारत को बताया कि खालिस्तानी आतंकवादी हाल ही में संचार की दो श्रेणियों का उपयोग कर रहे हैं, जिनमें परिचालन उद्देश्यों के लिए निजी और प्रचार प्रसार के लिए सार्वजनिक शामिल हैं. परिचालन संचार के लिए उपयोग किए जाने वाले मोड एन्क्रिप्टेड चैट ऐप्स, वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) आदि की आसान उपलब्धता का लाभ उठाते हैं.
अधिकारी ने एक खुफिया रिपोर्ट के हवाले से कहा कि 'खालिस्तानी आतंकवादी संगठन वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआईपी) तकनीक को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है, जो नियमित या एनालॉग फोन लाइन के बजाय इंटरनेट नेटवर्क पर आवाज और मल्टीमीडिया संचार की अनुमति देता है.' अधिकारी ने कहा, वीओआईपी संचार करने के लिए कई एप्लिकेशन, सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं, जैसे व्हाट्सएप, स्काइप, फेसबुक मैसेंजर, गूगल टॉक आदि.
अधिकारी ने कहा कि 'ये एप्लिकेशन डेटा एन्क्रिप्शन सुविधाएं प्रदान करते हैं, जिसके कारण संचार की सामग्री को कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कानूनी रूप से बाधित नहीं किया जा सकता है. यह इन चरमपंथियों के लिए संचार का एक सुरक्षित चैनल प्रदान करता है. सिग्नल जैसे ऐप पीयर-टू-पीयर संचार में आईपी पते को छिपाने के लिए रिले सर्वर की सुविधा भी देते हैं.'
आतंकवादी कई एप्लिकेशन का भी उपयोग कर रहे हैं, जो उपयोगकर्ताओं को वर्चुअल फोन नंबर उत्पन्न करने की अनुमति देते हैं, जिनका उपयोग वास्तविक फोन नंबर के रूप में किया जा सकता है, लेकिन भौतिक सिम कार्ड के बिना. अधिकारी ने आगे कहा कि 'ये नंबर उपयोगकर्ता को गुमनामी प्रदान करते हैं और लगभग सभी इंटरनेट कॉलिंग एप्लिकेशन से जुड़े हो सकते हैं.'
अधिकारी ने आगे कहा कि 'चूंकि ये नंबर विनियमित दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा जारी नहीं किए गए हैं, इसलिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए उपयोगकर्ता की पहचान करना और उसका पता लगाना मुश्किल हो जाता है. खालिस्तानी चरमपंथी ऐसे नंबरों का इस्तेमाल परिचालन संचार और अपने लक्ष्यों तक धमकियां पहुंचाने के लिए कर रहे हैं.'