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गोरखा शौर्य की निशानी है देहरादून का खलंगा स्मारक, अंग्रेजों ने करवाया था निर्माण

जंग के मैदान में गोरखा सैनिकों ने हमेशा शौर्य गाथा लिखी है. जिसकी सबसे बड़ी मिसाल देहरादून के खलंगा युद्ध को माना जाता है. अंग्रेजों के खिलाफ गोरखा सैनिकों की बहादुरी को याद दिलाता ये स्‍मारक आज 200 साल बाद भी याद दिला रहा है.

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Published : Aug 15, 2022, 7:30 AM IST

देहरादून: भारत के इतिहास में कई युद्ध ऐसे हैं, जिनकी शौर्य और वीरता की गाथा आज भी लोगों की जुबान पर है. ऐसी ही एक वीरता और शौर्य की मिशाल और उदाहरण का स्मारक आज भी देहरादून में स्थित है. यह स्मारक नालपानी खलंगा स्मारक है, जो गोरखा सैनिकों की बहादुरी का प्रतीक है. कहते हैं कि ब्रिटिश सेना इस युद्ध को आज से करीब 200 वर्ष पूर्व 1814 में जीत गई थी, लेकिन गोर्खालियों की वीरता देख अंग्रेज इतने प्रभावित हुए की उन्होंने वहां शत्रु सेना का स्मारक बनाया. उसके बाद गोरखा रेजिमेंट की स्थापना भी की.

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि खलंगा का युद्ध गोरखा सैनिकों के वीरता और साहस सहित पराक्रम का प्रतीक है. यह गोरखा शासन से गढ़वाल की मुक्ति का समय भी था. रावत बताते हैं कि देहरादून शहर से कुछ दुरी पर नालापानी के जंगलों में स्थित खंलगा के किले में गोरखा सैनिक कमाडर बलभद्र सिंह थापा अपने सैनिकों और उनके परिवार के साथ रह रहे थे. जिसके बाद अंग्रेजों ने खलंगा किले को जीतने के लिए उन पर हमला कर दिया. इस युद्ध में गोरखा सैनिक अंग्रेजों की बंदूकों के सामने खुंखरियों से लड़े.

गोरखा शौर्य की निशानी है देहरादून का खलंगा स्मारक.

पढे़ं- 38 साल पहले ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुए थे चंद्रशेखर, सियाचीन में मिला पार्थिव शरीर, कल होगा अंतिम संस्कार

इस युद्ध में अंग्रेजों के मेजर जनरल गीलेशपी मारे गए. जिसके बाद अंग्रेजों ने दिल्ली से तोप मंगवाकर खलंगा किले पर हमला किया. जिसके बाद किले के जलस्रोत तबाह कर दिए गये. इसके बाद बलभद्र सिंह थापा ने देखा की सैनिकों के साथ उनके बच्चे और महिलाएं मुसीबत में हैं. उन्होंने उस समय हार का ऐलान करते हुए युद्ध रोकने की घोषणा की. वहां से कांगड़ा हिमाचल प्रदेश और अपने काफ़िले के साथ निकल पड़े.

पढे़ं- खलंगा युद्ध के वीर-वीरांगनाओं को किया गया याद, ब्रितानी फौज भी थी बहादुरी की कायल

इस हार के बाद गोरखा सैनिक अंग्रेजों का दिल जीत गए. अंग्रेजों ने उनके पराक्रम की मिशाल के रूप में स्मारक बनवाया. आज भी लोग इस स्मारक को देखने पहुंचते हैं. यहां पर समिति की ओर से हर वर्ष मेले का आयोजन भी किया जाता है. साथ ही स्मारक से कुछ दूरी पर चन्द्रयानी माता की पूजा अर्चना की जाती है. इस मंदिर की विशेषता है की इसके ऊपर छत बनाना प्रतिबंधित है. मंदिर का निर्माण खुले में किया गया है.

देहरादून: भारत के इतिहास में कई युद्ध ऐसे हैं, जिनकी शौर्य और वीरता की गाथा आज भी लोगों की जुबान पर है. ऐसी ही एक वीरता और शौर्य की मिशाल और उदाहरण का स्मारक आज भी देहरादून में स्थित है. यह स्मारक नालपानी खलंगा स्मारक है, जो गोरखा सैनिकों की बहादुरी का प्रतीक है. कहते हैं कि ब्रिटिश सेना इस युद्ध को आज से करीब 200 वर्ष पूर्व 1814 में जीत गई थी, लेकिन गोर्खालियों की वीरता देख अंग्रेज इतने प्रभावित हुए की उन्होंने वहां शत्रु सेना का स्मारक बनाया. उसके बाद गोरखा रेजिमेंट की स्थापना भी की.

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि खलंगा का युद्ध गोरखा सैनिकों के वीरता और साहस सहित पराक्रम का प्रतीक है. यह गोरखा शासन से गढ़वाल की मुक्ति का समय भी था. रावत बताते हैं कि देहरादून शहर से कुछ दुरी पर नालापानी के जंगलों में स्थित खंलगा के किले में गोरखा सैनिक कमाडर बलभद्र सिंह थापा अपने सैनिकों और उनके परिवार के साथ रह रहे थे. जिसके बाद अंग्रेजों ने खलंगा किले को जीतने के लिए उन पर हमला कर दिया. इस युद्ध में गोरखा सैनिक अंग्रेजों की बंदूकों के सामने खुंखरियों से लड़े.

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इस हार के बाद गोरखा सैनिक अंग्रेजों का दिल जीत गए. अंग्रेजों ने उनके पराक्रम की मिशाल के रूप में स्मारक बनवाया. आज भी लोग इस स्मारक को देखने पहुंचते हैं. यहां पर समिति की ओर से हर वर्ष मेले का आयोजन भी किया जाता है. साथ ही स्मारक से कुछ दूरी पर चन्द्रयानी माता की पूजा अर्चना की जाती है. इस मंदिर की विशेषता है की इसके ऊपर छत बनाना प्रतिबंधित है. मंदिर का निर्माण खुले में किया गया है.

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