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वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए विवाह को मान्यता देने की संभावना की हाईकोर्ट कर रहा समीक्षा

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) इस बात की समीक्षा कर रहा है कि क्या वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए विवाह को विशेष विवाह कानून (Special Marriage Act) (एसएमए) के तहत मान्यता दी जा सकती है या नहीं

केरल हाईकोर्ट
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Published : Aug 12, 2021, 5:57 PM IST

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) इस बात की समीक्षा कर रहा है कि क्या वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए विवाह को विशेष विवाह कानून (Special Marriage Act) (एसएमए) के तहत मान्यता दी जा सकती है या नहीं और उसने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

न्यायमूर्ति पी बी सुरेश कुमार ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत ऑनलाइन विवाहों को मान्यता देने के विपक्ष में दी गईं राज्य सरकार की दलीलें सुनीं, जबकि कई याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि कानून के तहत विवाह करने के लिए दूल्हे और दुल्हन की शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य नहीं है.

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि एसएमए के तहत पंजीकृत करने से पहले विवाह सम्पन्न करना अनिवार्य है और इसलिए विवाह अधिकारी के समक्ष दोनों पक्षों और गवाहों की उपस्थिति आवश्यक है. उसने कहा कि यदि ऑनलाइन माध्यम से विवाह की अनुमति दी जाती है, तो विवाहों के इलेक्ट्रॉनिक रजिस्टर बनाना और ऑनलाइन माध्यम से भुगतान की व्यवस्था करना अनिवार्य हो जाएगा और यह व्यवस्था वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं.

सरकार ने कहा कि विवाह करने के लिए एक और अनिवार्यता यह है कि अभीष्ट विवाह का नोटिस जारी किए जाने से पहले दोनों पक्षों में से कम से कम एक पक्ष न्यूनतम 30 दिन विवाह अधिकारी की क्षेत्रीय सीमा में आने वाले इलाके का निवासी हो, इसलिए यदि विदेश में रहने वाले दो व्यक्ति निवास की अनिवार्यता को पूरा नहीं करते हैं, तो उनका विवाह ऑनलाइन नहीं हो सकता.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि जब विशेष विवाह कानून के तहत विवाहों को ऑनलाइन पंजीकृत किया जा सकता है, तो विवाह करते समय पक्षों की शारीरिक उपब्धित अनिवार्य नहीं है. उन्होंने दावा किया कि कई निर्णयों में कहा गया है कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होना शारीरिक उपस्थिति के समान है और इसमें एकमात्र अंतर यह है कि पक्षों को छुआ नहीं जा सकता.

यह भी पढ़ें- 'वैवाहिक बलात्कार' तलाक के लिए पर्याप्त आधार : केरल हाईकोर्ट

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एसएमए के तहत यदि दोनों पक्ष घोषणा करते हैं कि वे एक-दूसरे को कानूनी रूप से विवाहित पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं, तो मालाओं का आदान-प्रदान करने या हाथ मिलाने जैसे किसी भी माध्यम से से विवाह किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि हस्ताक्षर डिजिटल प्रारूप के माध्यम से जमा किए जा सकते हैं और इसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत मान्यता दी गई थी.

सभी हितधारकों की पर्याप्त दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने एसएमए के तहत ऑनलाइन विवाह के मामले संबंधी सभी याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया.

(पीटीआई भाषा)

कोच्चि : केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) इस बात की समीक्षा कर रहा है कि क्या वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए विवाह को विशेष विवाह कानून (Special Marriage Act) (एसएमए) के तहत मान्यता दी जा सकती है या नहीं और उसने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

न्यायमूर्ति पी बी सुरेश कुमार ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत ऑनलाइन विवाहों को मान्यता देने के विपक्ष में दी गईं राज्य सरकार की दलीलें सुनीं, जबकि कई याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि कानून के तहत विवाह करने के लिए दूल्हे और दुल्हन की शारीरिक उपस्थिति अनिवार्य नहीं है.

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि एसएमए के तहत पंजीकृत करने से पहले विवाह सम्पन्न करना अनिवार्य है और इसलिए विवाह अधिकारी के समक्ष दोनों पक्षों और गवाहों की उपस्थिति आवश्यक है. उसने कहा कि यदि ऑनलाइन माध्यम से विवाह की अनुमति दी जाती है, तो विवाहों के इलेक्ट्रॉनिक रजिस्टर बनाना और ऑनलाइन माध्यम से भुगतान की व्यवस्था करना अनिवार्य हो जाएगा और यह व्यवस्था वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं.

सरकार ने कहा कि विवाह करने के लिए एक और अनिवार्यता यह है कि अभीष्ट विवाह का नोटिस जारी किए जाने से पहले दोनों पक्षों में से कम से कम एक पक्ष न्यूनतम 30 दिन विवाह अधिकारी की क्षेत्रीय सीमा में आने वाले इलाके का निवासी हो, इसलिए यदि विदेश में रहने वाले दो व्यक्ति निवास की अनिवार्यता को पूरा नहीं करते हैं, तो उनका विवाह ऑनलाइन नहीं हो सकता.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि जब विशेष विवाह कानून के तहत विवाहों को ऑनलाइन पंजीकृत किया जा सकता है, तो विवाह करते समय पक्षों की शारीरिक उपब्धित अनिवार्य नहीं है. उन्होंने दावा किया कि कई निर्णयों में कहा गया है कि वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होना शारीरिक उपस्थिति के समान है और इसमें एकमात्र अंतर यह है कि पक्षों को छुआ नहीं जा सकता.

यह भी पढ़ें- 'वैवाहिक बलात्कार' तलाक के लिए पर्याप्त आधार : केरल हाईकोर्ट

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एसएमए के तहत यदि दोनों पक्ष घोषणा करते हैं कि वे एक-दूसरे को कानूनी रूप से विवाहित पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं, तो मालाओं का आदान-प्रदान करने या हाथ मिलाने जैसे किसी भी माध्यम से से विवाह किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि हस्ताक्षर डिजिटल प्रारूप के माध्यम से जमा किए जा सकते हैं और इसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत मान्यता दी गई थी.

सभी हितधारकों की पर्याप्त दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने एसएमए के तहत ऑनलाइन विवाह के मामले संबंधी सभी याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया.

(पीटीआई भाषा)

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