देवघरः एक आम शख्स से शख्सियत बनकर उभरे हरेराम पांडे आज सुर्खियों में हैं. टेलीविजन गेम शो कौन बनेगा करोड़पति के सीजन 15 की हॉट सीट और महानायक अमिताभ बच्चन के साथ हुई मुलाकात ने उनकी पहचान को नया आयाम दिया है. देवघर के हरेराम पांडे ना सिर्फ जिले का बल्कि पूरे झारखंड का नाम रोशन किया है. ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से जानिए, कौन हैं हरेराम पांडे और कैसे एक छोटे शहर से केबीसी के हॉट सीट तक का सफर तय किया. पूरी कहानी उन्हीं की जुबानी सुनिए.
नारायण आश्रम के नाम से देवघर में अनाथालय चलने वाले हरेराम पांडे एक साधारण व्यक्ति हैं लेकिन इनकी सोच और उनका ये काम उन्हें असाधारण बनाता है. झाड़ियों, ट्रेन के शौचालय में नौनिहालों को ममता की छांव से बेदखल करने वाली क्रूर घटना के बीच हरेराम पांडे उनके लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं. आज वो ऐसे ही ठुकराए 35 बच्चों को ममता की छांव दे रहे हैं. इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से हरेराम पांडे की कहानी कई प्लेटफॉर्म पर सामने आई. फिल्म अभिनेता और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने इंटरनेट पर ही हरेराम पांडे के बारे में पढ़ा. इसके बाद केबीसी की टीम देवघर पहुंची और हरेराम पांडे के बारे में जानकारियां इकट्ठा की.
जब भावुक हुए अमिताभ बच्चनः सितंबर माह में केबीसी टीम देवघर आई. इसी बीच उन्हें केबीसी में भाग लेने का मौका मिला. यहां से हरेराम पांडे के साथ अनाथ आश्रम के 9 बच्चों को अपने साथ मुंबई ले गयी. जहां शूटिंग के दौरान हरेराम पांडे समेत तमाम बच्चों को सभी सुविधाएं दी गयीं. इस गेम शो में अमिताभ बच्चन ने हरेराम पांडे से उनकी कहानी सुनीं, ये सुनकर सदी के महानायक भी भावुक हो गये. इस दौरान अनाथालय के कई बच्चों से भी मिले. केबीसी के सीजन में 15 में कई सवालों का जवाब देते हुए हरेराम पांडे ने 25 लाख 70 हजार रुपये जीते. इस बीच शो खत्म होने के बाद महानायक अमिताभ बच्चन ने अपनी ओर से उनके अनाथ आश्रम के लिए 21 लाख की राशि प्रदान की.
केबीसी 15 से लौटे हरेराम पांडे आज खुद को बेहतर स्थिति में पाते हैं. उन्होंने ईटीवी भारत के साथ अनुभव साझा करते हुए कहा कि अब उन्हें उन बच्चों को खिलाने पिलाने की चिंता नहीं है. नेशनल टेलीविजन पर आने के बाद कई अन्य लोग भी सहयोग के लिए सामने आ रहे हैं. हरेराम पांडे कहते हैं कि उन्होंने एक छोटे से मकान में दीन अनाथ बच्चों को पालन शुरू किया था. देवघर के नैयाडीह में हरेराम पांडे अपना अनाथालय चलते हैं, उनका पूरा परिवार इसी काम में जुटा है. इनका सिर्फ लालन-पालन किया जा रहा है बल्कि इन बच्चों को बेहतर शिक्षा भी दी जा रही है. हरेराम पांडे को सरकार से भी मदद की उम्मीद है ताकि उनके इस नेक काम को एक बेहतर मंच और आयाम मिल सके.
पुराने दिन याद करते ही छलक उठा दर्दः हरेराम पांडे कहते हैं कि कई वर्षों से वैसे बच्चे जिन्हें झाड़ियां में किसी कारण से फेंक दिया गया था, कुछ बच्चों को ट्रेन के शौचालय से भी बरामद किया गया था. इसके अलावा वैसे बच्चे जिन्हें कोई खास बीमारी है और परिवार इसे छोड़ देते हैं वैसे बच्चों को वो पाल रहे हैं. एक वक्त ऐसा भी गुजरा था जब बच्चों को खिलाने के पैसे नहीं थे. जब उन्हें कोई जानता नहीं था तो किसी ने मदद भी नहीं की. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना नेक काम जारी रखा. हरेराम पांडे ने बच्चों के लिए कई जिलों का भ्रमण भी किया कइयों से मदद भी मांगी. ऐसे में एक दो संस्था या कुछ लोगों की मदद से किसी प्रकार उन्होंने अपने अनाथालय को संभाले रखा.