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जबलपुर में लगा कश्मीरी शॉलों का मेला, 1 साल में एक कलाकार बनाता है जामा शॉल, कीमत उड़ा देगी होश

Kashmir Shawl Story: एमपी के जबलपुर में केंद्र के वस्त्र मंत्रालय की ओर से मेला लगाया गया है. जिसमें कई कश्मीरी यहां पर ऊनी कपड़ों और शॉल की दुकान लगाए हैं. आज की इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे जम्मू कश्मीर के जामा और पशमीना शॉल के बारे में. पढ़िए जबलपुर से विश्वजीत सिंह की यह रिपोर्ट...

Kashmir Shawl Story
कश्मीरी जामा शॉल की कहानी
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 27, 2023, 9:09 PM IST

Updated : Dec 27, 2023, 9:20 PM IST

जबलपुर में लगा कश्मीरी शॉलों का मेला

जबलपुर। एमपी की संस्कारधानी जबलपुर में कश्मीर से आए हुए बुनकरों ने कला का अद्भुत नमूना पेश किया है. इसे जामा शॉल के रूप में जाना जाता है. जामा शॉल के बारे में बताते हुए कलाकारों ने बताया कि इसको बनाने में लगभग एक कलाकार को डेढ़ साल लगते हैं. इसलिए यह दुनिया के सबसे महंगे शालों में शुमार करता है. जबलपुर में इसकी कीमत 75000 बताई जा रही है. बुनकरों ने बताया कि अब इस कला को जिंदा रखने वाले लोग बहुत कम बचे हैं.

कश्मीर का जामा शॉल: जबलपुर के बाजार में कश्मीर से आए हुए व्यापारी एक अनोखा शॉल लेकर आए हैं. यह ठंड मिटाने के कपड़े से ज्यादा कलाकारी का अद्भुत नमूना है. कश्मीर से आए कलाकार इस्माइल का कहना है कि इस शॉल की कीमत 75000 है. इसकी इतनी अधिक कीमत के पीछे की वजह जब हमने इस्माइल से जानी तो इस्माइल ने बताया कि दरअसल पशमीना के कपड़े पर इस शॉल को बनाने में एक कलाकार को एक से डेढ़ साल लग जाता है. इसका एक-एक धागा बारीक सुई से बुना जाता है और इसकी कसीदाकारी इतनी बारीक होती है कि इसे लेंस वर्क भी कहा जाता है.

Kashmir Shawl Story
जबलपुर में लगा वस्त्र मंत्रालय की ओर से मेला

शॉल को बनाने वाले कलाकार होते हैं सम्मानित: स्माइल ने बताया कि किसी जमाने में कश्मीर में इसे बनाने वाले बहुत से कलाकार थे, लेकिन अब इस कला के माहिर चुनिंदा लोग ही रह गए हैं और इसमें भी ज्यादातर बुजुर्ग हैं, क्योंकि यह बहुत धैर्य से करने वाला काम है. इसमें हर कलाकार अपने मन से डिजाइन बनाते हैं. हर बूटी में अलग-अलग किस्म की कलाकारी देखने को मिलती है. आजकल के युवाओं में इतना धैर्य नहीं है कि वह इतनी बारीक कलाकारी सालों तक करें. इसलिए इस शॉल को बनाने वाले कलाकारों को सम्मानित किया जाता है. यह शॉल केवल ठंड मिटाने का नहीं बल्कि कलाकार के सम्मान में दी हुई राशि होती है. इस्माइल का कहना है की जो लोग इस कला को जानते हैं, वे इस शॉल को बिल्कुल उसी तरीके से सहेज कर रखते हैं. जैसे लोग सोने और चांदी को सहेजते हैं. कला के जानने वाले लोगों के लिए जामा शॉल एक अद्भुत कृति है.

ईरान से आई थी कला: इस्माइल ने हमें बताया कि कश्मीर में सन 1400 ईसवी के आसपास ईरान से आए एक सूफी शाय हमदान ने कश्मीर के लोगों को बुनाई की कला सिखाई थी. जिसमें धीरे-धीरे विकास होते-होते आज वह दुनिया की कुछ सबसे बेहतरीन कलाकारियों में से एक बन गई है. स्माइल उन कलाकारों से सामान खरीदते हैं और इसे देश भर में बेचते हैं.

Kashmir Shawl Story
कश्मीरी शॉल

पशमीना शॉल: यहां पशमीना शॉल भी मौजूद हैं. जिन्हें दोर कहा जाता है. जिस तरीके से जामा शॉल पर पूरे शॉल पर ही कसीदाकारी की जाती है. इसी तरीके से दोर साल पर केवल बॉर्डर पर कढ़ाई की जाती है, लेकिन यह कढ़ाई भी बहुत खूबसूरत होती है. इसका एक-एक रेशा बड़ी बारीकी से बुना हुआ होता है. इसी शॉल में किसी जमाने में सोने के रेशे भी कढ़ाई की जाती थी. हालांकि अब उनकी जगह गोल्डन रेशे ने ले ली है, लेकिन यह भी कला का अद्भुत नमूना है इसके अलावा भी यहां कलाकारों ने हमें कई किस्म की शॉल बताएं.

यहां पढ़ें...

खास भेड़ की दाढ़ी के बाल पशमीना शॉल में होते हैं इस्तेमाल: पशमीना शॉल के बारे में बताते हुए इस्माइल ने बताया कि दरअसल हिमालय में ऊंचाई पर पाए जाने वाली एक भेड़ के दाढ़ी के बाल पशमीना शॉल बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं. इनका रेशा बहुत नरम होता है. इसलिए यह बहुत नाजुक एहसास देता है. इसके साथ ही इसमें बहुत अधिक गर्मी होती है, लेकिन यह ऊन बहुत कम मिलता है. इसलिए इन शॉलों की कीमत ज्यादा होती है. जबलपुर में कुछ ऐसे ही उम्दा कलाकार देश भर से आए हुए हैं. इसमें केवल शॉल ही नहीं बल्कि रेशम हथकरघा से जुड़े हुए कलाकार आए हैं. केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की ओर से यह मेले जबलपुर के गोल बाजार में लगाया गया है.

जबलपुर में लगा कश्मीरी शॉलों का मेला

जबलपुर। एमपी की संस्कारधानी जबलपुर में कश्मीर से आए हुए बुनकरों ने कला का अद्भुत नमूना पेश किया है. इसे जामा शॉल के रूप में जाना जाता है. जामा शॉल के बारे में बताते हुए कलाकारों ने बताया कि इसको बनाने में लगभग एक कलाकार को डेढ़ साल लगते हैं. इसलिए यह दुनिया के सबसे महंगे शालों में शुमार करता है. जबलपुर में इसकी कीमत 75000 बताई जा रही है. बुनकरों ने बताया कि अब इस कला को जिंदा रखने वाले लोग बहुत कम बचे हैं.

कश्मीर का जामा शॉल: जबलपुर के बाजार में कश्मीर से आए हुए व्यापारी एक अनोखा शॉल लेकर आए हैं. यह ठंड मिटाने के कपड़े से ज्यादा कलाकारी का अद्भुत नमूना है. कश्मीर से आए कलाकार इस्माइल का कहना है कि इस शॉल की कीमत 75000 है. इसकी इतनी अधिक कीमत के पीछे की वजह जब हमने इस्माइल से जानी तो इस्माइल ने बताया कि दरअसल पशमीना के कपड़े पर इस शॉल को बनाने में एक कलाकार को एक से डेढ़ साल लग जाता है. इसका एक-एक धागा बारीक सुई से बुना जाता है और इसकी कसीदाकारी इतनी बारीक होती है कि इसे लेंस वर्क भी कहा जाता है.

Kashmir Shawl Story
जबलपुर में लगा वस्त्र मंत्रालय की ओर से मेला

शॉल को बनाने वाले कलाकार होते हैं सम्मानित: स्माइल ने बताया कि किसी जमाने में कश्मीर में इसे बनाने वाले बहुत से कलाकार थे, लेकिन अब इस कला के माहिर चुनिंदा लोग ही रह गए हैं और इसमें भी ज्यादातर बुजुर्ग हैं, क्योंकि यह बहुत धैर्य से करने वाला काम है. इसमें हर कलाकार अपने मन से डिजाइन बनाते हैं. हर बूटी में अलग-अलग किस्म की कलाकारी देखने को मिलती है. आजकल के युवाओं में इतना धैर्य नहीं है कि वह इतनी बारीक कलाकारी सालों तक करें. इसलिए इस शॉल को बनाने वाले कलाकारों को सम्मानित किया जाता है. यह शॉल केवल ठंड मिटाने का नहीं बल्कि कलाकार के सम्मान में दी हुई राशि होती है. इस्माइल का कहना है की जो लोग इस कला को जानते हैं, वे इस शॉल को बिल्कुल उसी तरीके से सहेज कर रखते हैं. जैसे लोग सोने और चांदी को सहेजते हैं. कला के जानने वाले लोगों के लिए जामा शॉल एक अद्भुत कृति है.

ईरान से आई थी कला: इस्माइल ने हमें बताया कि कश्मीर में सन 1400 ईसवी के आसपास ईरान से आए एक सूफी शाय हमदान ने कश्मीर के लोगों को बुनाई की कला सिखाई थी. जिसमें धीरे-धीरे विकास होते-होते आज वह दुनिया की कुछ सबसे बेहतरीन कलाकारियों में से एक बन गई है. स्माइल उन कलाकारों से सामान खरीदते हैं और इसे देश भर में बेचते हैं.

Kashmir Shawl Story
कश्मीरी शॉल

पशमीना शॉल: यहां पशमीना शॉल भी मौजूद हैं. जिन्हें दोर कहा जाता है. जिस तरीके से जामा शॉल पर पूरे शॉल पर ही कसीदाकारी की जाती है. इसी तरीके से दोर साल पर केवल बॉर्डर पर कढ़ाई की जाती है, लेकिन यह कढ़ाई भी बहुत खूबसूरत होती है. इसका एक-एक रेशा बड़ी बारीकी से बुना हुआ होता है. इसी शॉल में किसी जमाने में सोने के रेशे भी कढ़ाई की जाती थी. हालांकि अब उनकी जगह गोल्डन रेशे ने ले ली है, लेकिन यह भी कला का अद्भुत नमूना है इसके अलावा भी यहां कलाकारों ने हमें कई किस्म की शॉल बताएं.

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खास भेड़ की दाढ़ी के बाल पशमीना शॉल में होते हैं इस्तेमाल: पशमीना शॉल के बारे में बताते हुए इस्माइल ने बताया कि दरअसल हिमालय में ऊंचाई पर पाए जाने वाली एक भेड़ के दाढ़ी के बाल पशमीना शॉल बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं. इनका रेशा बहुत नरम होता है. इसलिए यह बहुत नाजुक एहसास देता है. इसके साथ ही इसमें बहुत अधिक गर्मी होती है, लेकिन यह ऊन बहुत कम मिलता है. इसलिए इन शॉलों की कीमत ज्यादा होती है. जबलपुर में कुछ ऐसे ही उम्दा कलाकार देश भर से आए हुए हैं. इसमें केवल शॉल ही नहीं बल्कि रेशम हथकरघा से जुड़े हुए कलाकार आए हैं. केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की ओर से यह मेले जबलपुर के गोल बाजार में लगाया गया है.

Last Updated : Dec 27, 2023, 9:20 PM IST
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