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फर्जी टीकाकरण : अलग-अलग अपराधों का अध्ययन करता था देबंजन देब

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Published : Jun 29, 2021, 6:29 PM IST

फर्जी वैक्सीनेशन (Fake vaciination) के मुख्य आरोपी देबंजन देब (Debanjan Deb) से पूछताछ और लैपटॉप और अन्य गैजेट्स की बरामदगी से अधिकारियों को पता चला है कि वह किसी भी कीमत पर सुर्खियों में रहने का प्रयास करता था और रात-रात भर विभिन्न- विभिन्न प्रकार के क्राइम के बारे में अध्ययन करता था.

देबंजन देब
देबंजन देब

कोलकाता : फर्जी वैक्सीनेशन (Fake vaciination) के मुख्य आरोपी देबंजन देब (Debanjan Deb) से पूछताछ और लैपटॉप और अन्य गैजेट्स की बरामदगी से अधिकारियों को पता चला है कि नकली-आईएएस अधिकारी (fake-IAS officer) व्हाइट कॉलर क्राइम (white-collar crimes) के विभिन्न तरीकों और पैटर्न का रात भर अध्ययन करता था.

जैसे-जैसे जांच अधिकारी (probe officials) देब से गहराई से पूछताछ कर रहे हैं, नए और आश्चर्यजनक खुलासे सामने आ रहे हैं. कट्टर अपराधी प्रवृत्ति (hardcore criminal) के होने के साथ-साथ उसके मन में कुछ विचित्र मनोवैज्ञानिक समस्याएं (psychological issue) भी थीं.

वह हमेशा सुर्खियों में रहना चाहते थे और खुद को दूसरों से बहतर पेश करना चाहते थे. एक भारतीय प्रशासनिक सेवा ( Indian Administrative Service) अधिकारी के रूप में उनका फर्जीवाड़ा शायद इसी मनोविज्ञान के कारण था, जिसने उन्हें किसी भी कीमत पर सुर्खियों में रहने के लिए मजबूर कर दिया.

मनोवैज्ञानिकों का मानना ​​है कि जहां एक और खुद को औसत से ऊपर पेश करने का प्रयास कड़ी मेहनत (hard work) और समर्पण के माध्यम से उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है, वहीं देबंजन जैसे कुछ लोगों के लिए वही मनोविज्ञान उन्हें अनैतिक, अनुचित और अवैध तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करता है.

जैसा कि ईटीवी भारत ने पहले बताया था कि अपने सनकी स्वभाव (whimsical nature ) के कारण देब ने अच्छा छात्र होने के बावजूद अपने अकादमिक करियर (academic career ) में बहुत कुछ हासिल नहीं किया. हालांकि, उसके द्वारा पुलिस को दिए गए कबूलनामे के मुताबिक, वह इंटरनेट पर बिना सोए पढ़ाई करता था.

इसके अलावा उसके मनोविज्ञान का एक और विचित्र पक्ष यह है कि उसके ऑनलाइन अध्ययन (online studies) का विषय अपराधों के विभिन्न पैटर्न थे जैसे कि जाली दस्तावेज और नकली रबर-स्टैम्प (न) कैसे तैयार किए जाते हैं. साथ ही उसने कुछ ऐसे ही आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से भी जानकारी हासिल करने के लिए संपर्क किया. वह इंटरनेट पर भी प्रतिष्ठित धोखेबाजों के केस-स्टडी और उनके संचालन की शैली का अध्ययन किया करता था.

उसी समय उसके दिमाग में एक फर्जी आईएएस अधिकारी (Fake IAS officer) बनने का विचार आया, तो उन्होंने सबसे पहले देश के प्रतिष्ठित नौकरशाहों के जीवन, लोगों और राजनीतिक नेताओं के साथ उनकी बातचीत के तरीके का अध्ययन किया.

जब्त किया गया उसके लैपटॉप का सर्च इंजन (search engine ) उसके द्वारा इस्तेमाल की गईसाइटों को दिखाता है जहां उसने घंटों बिताए.वास्तव में उसने विभिन्न नौकरशाहों के तौर-तरीकों का पूर्वाभ्यास किया और इसे अपने निजी जीवन में लागू किया.

एक जांच अधिकारी ने नाम न छापने की सख्त शर्त पर कहा, पता चला है कि देबंजन हॉलीवुड (Hollywood) और बॉलीवुड (Bollywood ) की अलग-अलग क्राइम थ्रिलर फिल्में (crime thriller movies) भी देखा करते थे.

शहर स्थित मनोचिकित्सक (psychiatrist ) और केपीसी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (KPC Medical College) के एक फैकल्टी तीर्थंकर गुहा ठाकुरता (Dr Tirthankar Guha Thakurta) ने ईटीवी भारत को बताया कि ऐसे सिंड्रोम को साइकोपैथिकल लाइंग (psychopathical lying) कहा जाता है, जहां झूठ बोलना मजबूरी होती है.

पढ़ें - फर्जी टीकाकरण मामला: गिरफ्तार देबांजन देव के आवास पर पुलिस की रेड

डॉ गुहा ने कहा कि सकता है कि देबंजन के मामले में ऐसा ने हो, लेकिन इस तरह के साइकोपैथिकल लाइंग मनोरोगी अक्सर बिना किसी खास मकसद के झूठ बोलते हैं. वे इस आदत से बाहर नहीं आ पाते हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां वे एक ही घटना को अलग-अलग स्वरूपों में अलग-अलग समय पर प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इस विशेष मामले में सिंड्रोम ने आपराधिक रूप ले लिया है. हालांकि, इसकी जड़ साइकोपैथिकल लाइंग है. ऐसे लोगों को बहुत प्रारंभिक अवस्था में इलाज की आवश्यकता होती है.

इस बीच कोलकाता पुलिस के जासूसी विभाग (detective department of Kolkata Police ) के जांच अधिकारी पहले ही देबंजन के कई रिश्तेदारों और बचपन के दोस्तों से बात कर चुके हैं और पता चला है कि साइकोपैथिकल लाइंग का यह सिंड्रोम उसमें बहुत कम उम्र से ही मौजूद था.

एक जांच अधिकारी ने कहा कि उसके दोस्तों का दावा है कि अक्सर देबंजन उन्हें बताते थे कि उनकी पहुंच मुंबई और पश्चिम बंगाल के शीर्ष फिल्म-सितारों और फिल्म-निर्देशकों तक है.

उसने यह भी दावा किया कि उन्हें कान्स फिल्म समारोह (Cannes Film Festival) में एक पुरस्कार मिला है. वह अपने कमरे को ट्राफियों, स्मृति चिन्हों और विभिन्न प्रतिष्ठित फिल्म-सितारों के साथ अपने स्वयं के फोटो-शॉप किए गए चित्रों से सजाते था. ये सब उसने सिर्फ लोगों का विश्वास जीतने के लिए किया.

कोलकाता : फर्जी वैक्सीनेशन (Fake vaciination) के मुख्य आरोपी देबंजन देब (Debanjan Deb) से पूछताछ और लैपटॉप और अन्य गैजेट्स की बरामदगी से अधिकारियों को पता चला है कि नकली-आईएएस अधिकारी (fake-IAS officer) व्हाइट कॉलर क्राइम (white-collar crimes) के विभिन्न तरीकों और पैटर्न का रात भर अध्ययन करता था.

जैसे-जैसे जांच अधिकारी (probe officials) देब से गहराई से पूछताछ कर रहे हैं, नए और आश्चर्यजनक खुलासे सामने आ रहे हैं. कट्टर अपराधी प्रवृत्ति (hardcore criminal) के होने के साथ-साथ उसके मन में कुछ विचित्र मनोवैज्ञानिक समस्याएं (psychological issue) भी थीं.

वह हमेशा सुर्खियों में रहना चाहते थे और खुद को दूसरों से बहतर पेश करना चाहते थे. एक भारतीय प्रशासनिक सेवा ( Indian Administrative Service) अधिकारी के रूप में उनका फर्जीवाड़ा शायद इसी मनोविज्ञान के कारण था, जिसने उन्हें किसी भी कीमत पर सुर्खियों में रहने के लिए मजबूर कर दिया.

मनोवैज्ञानिकों का मानना ​​है कि जहां एक और खुद को औसत से ऊपर पेश करने का प्रयास कड़ी मेहनत (hard work) और समर्पण के माध्यम से उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है, वहीं देबंजन जैसे कुछ लोगों के लिए वही मनोविज्ञान उन्हें अनैतिक, अनुचित और अवैध तरीके अपनाने के लिए प्रेरित करता है.

जैसा कि ईटीवी भारत ने पहले बताया था कि अपने सनकी स्वभाव (whimsical nature ) के कारण देब ने अच्छा छात्र होने के बावजूद अपने अकादमिक करियर (academic career ) में बहुत कुछ हासिल नहीं किया. हालांकि, उसके द्वारा पुलिस को दिए गए कबूलनामे के मुताबिक, वह इंटरनेट पर बिना सोए पढ़ाई करता था.

इसके अलावा उसके मनोविज्ञान का एक और विचित्र पक्ष यह है कि उसके ऑनलाइन अध्ययन (online studies) का विषय अपराधों के विभिन्न पैटर्न थे जैसे कि जाली दस्तावेज और नकली रबर-स्टैम्प (न) कैसे तैयार किए जाते हैं. साथ ही उसने कुछ ऐसे ही आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से भी जानकारी हासिल करने के लिए संपर्क किया. वह इंटरनेट पर भी प्रतिष्ठित धोखेबाजों के केस-स्टडी और उनके संचालन की शैली का अध्ययन किया करता था.

उसी समय उसके दिमाग में एक फर्जी आईएएस अधिकारी (Fake IAS officer) बनने का विचार आया, तो उन्होंने सबसे पहले देश के प्रतिष्ठित नौकरशाहों के जीवन, लोगों और राजनीतिक नेताओं के साथ उनकी बातचीत के तरीके का अध्ययन किया.

जब्त किया गया उसके लैपटॉप का सर्च इंजन (search engine ) उसके द्वारा इस्तेमाल की गईसाइटों को दिखाता है जहां उसने घंटों बिताए.वास्तव में उसने विभिन्न नौकरशाहों के तौर-तरीकों का पूर्वाभ्यास किया और इसे अपने निजी जीवन में लागू किया.

एक जांच अधिकारी ने नाम न छापने की सख्त शर्त पर कहा, पता चला है कि देबंजन हॉलीवुड (Hollywood) और बॉलीवुड (Bollywood ) की अलग-अलग क्राइम थ्रिलर फिल्में (crime thriller movies) भी देखा करते थे.

शहर स्थित मनोचिकित्सक (psychiatrist ) और केपीसी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (KPC Medical College) के एक फैकल्टी तीर्थंकर गुहा ठाकुरता (Dr Tirthankar Guha Thakurta) ने ईटीवी भारत को बताया कि ऐसे सिंड्रोम को साइकोपैथिकल लाइंग (psychopathical lying) कहा जाता है, जहां झूठ बोलना मजबूरी होती है.

पढ़ें - फर्जी टीकाकरण मामला: गिरफ्तार देबांजन देव के आवास पर पुलिस की रेड

डॉ गुहा ने कहा कि सकता है कि देबंजन के मामले में ऐसा ने हो, लेकिन इस तरह के साइकोपैथिकल लाइंग मनोरोगी अक्सर बिना किसी खास मकसद के झूठ बोलते हैं. वे इस आदत से बाहर नहीं आ पाते हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां वे एक ही घटना को अलग-अलग स्वरूपों में अलग-अलग समय पर प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इस विशेष मामले में सिंड्रोम ने आपराधिक रूप ले लिया है. हालांकि, इसकी जड़ साइकोपैथिकल लाइंग है. ऐसे लोगों को बहुत प्रारंभिक अवस्था में इलाज की आवश्यकता होती है.

इस बीच कोलकाता पुलिस के जासूसी विभाग (detective department of Kolkata Police ) के जांच अधिकारी पहले ही देबंजन के कई रिश्तेदारों और बचपन के दोस्तों से बात कर चुके हैं और पता चला है कि साइकोपैथिकल लाइंग का यह सिंड्रोम उसमें बहुत कम उम्र से ही मौजूद था.

एक जांच अधिकारी ने कहा कि उसके दोस्तों का दावा है कि अक्सर देबंजन उन्हें बताते थे कि उनकी पहुंच मुंबई और पश्चिम बंगाल के शीर्ष फिल्म-सितारों और फिल्म-निर्देशकों तक है.

उसने यह भी दावा किया कि उन्हें कान्स फिल्म समारोह (Cannes Film Festival) में एक पुरस्कार मिला है. वह अपने कमरे को ट्राफियों, स्मृति चिन्हों और विभिन्न प्रतिष्ठित फिल्म-सितारों के साथ अपने स्वयं के फोटो-शॉप किए गए चित्रों से सजाते था. ये सब उसने सिर्फ लोगों का विश्वास जीतने के लिए किया.

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