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कर्नाटक HC ने बलात्कारी पिता की 10 साल कैद की सजा बरकरार रखी - 10-year jail term for rapist father

कर्नाटक के एक ट्रायल कोर्ट ने रेप के दोषी पिता को आईपीसी की धारा 376, पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया और उसे 16 सितंबर, 2016 को 10 साल कैद की सजा सुनाई थी. उच्च न्यायालय (Karnataka HC) ने निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार (HC upheld a yr 2016 rape case judgement of a lower court) रखा.

कर्नाटक हाईकोर्ट
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Published : Feb 28, 2022, 5:12 PM IST

बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka HC) ने निचली अदालत के 2016 के उस फैसले को बरकरार (HC upheld a yr 2016 rape case judgement of a lower court) रखा, जिसमें एक पिता को उसकी 13 वर्षीय बेटी का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में 10 साल कैद की सजा (imprisonment to a rapist father of karnataka) सुनाई गई थी. कोर्ट ने दोषी पिता की अपील भी खारिज (HC dismissed appeal of rapist father) कर दी है. जस्टिस के.एस. मुदगल ने हाल के एक फैसले में आरोपी पिता के इस तर्क पर विचार नहीं किया कि उनकी बेटी की मौसी द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में कई कमियां और विरोधाभास हैं.

यह देखा गया कि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी अपराध से इंकार नहीं करती है. अपराध के समय पीड़िता की मां पूरी तरह से बिस्तर पर थी और दादी की भी मृत्यु हो गई थी. परिवार एक गरीब पृष्ठभूमि से आता है और पिता खुद भी दुर्व्यवहार करता था. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए बेंच ने फैसला सुनाया. घटना 27 सितंबर 2014 को एचएएल थाना क्षेत्र की है. इस संबंध में पीड़िता की मौसी ने 29 सितंबर 2014 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी.

आरोपी के खिलाफ चार्जशीट पेश की गई और एक ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 376, पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया और उसे 16 सितंबर, 2016 को 10 साल कैद की सजा सुनाई. आरोपी ने निचली अदालत के फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी. उसने दावा किया कि शिकायत दर्ज करने में दो दिन की देरी हुई है जो कि अनुचित है. पिता के मुताबिक, पीड़िता के बयान और मजिस्ट्रेट और जांच अधिकारी के समक्ष जारी गवाहों के बयान विरोधाभासी थे. आरोपी का यह भी दावा था कि घर पर मौजूद मां और दादी से घटना के संबंध में जांच कार्यालय ने पूछताछ नहीं की. उन्होंने तर्क दिया कि प्राथमिकी में मामले की बारीकियों का अभाव है.

पढ़ें : कर्नाटक हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी की मौत की सजा रद्द की

पीड़िता की ओर से पेश वकील ने कहा कि लड़की ने अपने पिता के बारे में बात की थी. पीड़िता की मौसी और मामा ने भी उसके सबूतों और बयानों की पुष्टि की है. मेडिकल रिपोर्ट भी आरोपी के खिलाफ है. शिकायत दर्ज कराने के नौवें दिन पीड़िता की मां की मौत हो गई. ऐसे मामलों में, देरी से मामला खत्म नहीं होगा. पीठ ने कहा कि अभियुक्तों के कृत्यों के विवरण के अभाव में मामले को गलत नहीं ठहराया जा सकता है. मां की मौत के बाद पीड़िता ने जल्द ही अपनी दादी को खो दिया. मामले में मुख्य आरोपी पिता है. अत: प्राथमिकी दर्ज करने में देरी का तर्क अस्वीकार्य है.

बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka HC) ने निचली अदालत के 2016 के उस फैसले को बरकरार (HC upheld a yr 2016 rape case judgement of a lower court) रखा, जिसमें एक पिता को उसकी 13 वर्षीय बेटी का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में 10 साल कैद की सजा (imprisonment to a rapist father of karnataka) सुनाई गई थी. कोर्ट ने दोषी पिता की अपील भी खारिज (HC dismissed appeal of rapist father) कर दी है. जस्टिस के.एस. मुदगल ने हाल के एक फैसले में आरोपी पिता के इस तर्क पर विचार नहीं किया कि उनकी बेटी की मौसी द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में कई कमियां और विरोधाभास हैं.

यह देखा गया कि प्राथमिकी दर्ज करने में देरी अपराध से इंकार नहीं करती है. अपराध के समय पीड़िता की मां पूरी तरह से बिस्तर पर थी और दादी की भी मृत्यु हो गई थी. परिवार एक गरीब पृष्ठभूमि से आता है और पिता खुद भी दुर्व्यवहार करता था. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए बेंच ने फैसला सुनाया. घटना 27 सितंबर 2014 को एचएएल थाना क्षेत्र की है. इस संबंध में पीड़िता की मौसी ने 29 सितंबर 2014 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी.

आरोपी के खिलाफ चार्जशीट पेश की गई और एक ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 376, पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराया और उसे 16 सितंबर, 2016 को 10 साल कैद की सजा सुनाई. आरोपी ने निचली अदालत के फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी. उसने दावा किया कि शिकायत दर्ज करने में दो दिन की देरी हुई है जो कि अनुचित है. पिता के मुताबिक, पीड़िता के बयान और मजिस्ट्रेट और जांच अधिकारी के समक्ष जारी गवाहों के बयान विरोधाभासी थे. आरोपी का यह भी दावा था कि घर पर मौजूद मां और दादी से घटना के संबंध में जांच कार्यालय ने पूछताछ नहीं की. उन्होंने तर्क दिया कि प्राथमिकी में मामले की बारीकियों का अभाव है.

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पीड़िता की ओर से पेश वकील ने कहा कि लड़की ने अपने पिता के बारे में बात की थी. पीड़िता की मौसी और मामा ने भी उसके सबूतों और बयानों की पुष्टि की है. मेडिकल रिपोर्ट भी आरोपी के खिलाफ है. शिकायत दर्ज कराने के नौवें दिन पीड़िता की मां की मौत हो गई. ऐसे मामलों में, देरी से मामला खत्म नहीं होगा. पीठ ने कहा कि अभियुक्तों के कृत्यों के विवरण के अभाव में मामले को गलत नहीं ठहराया जा सकता है. मां की मौत के बाद पीड़िता ने जल्द ही अपनी दादी को खो दिया. मामले में मुख्य आरोपी पिता है. अत: प्राथमिकी दर्ज करने में देरी का तर्क अस्वीकार्य है.

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