बेंगलुरु: कर्नाटक में एक खुले नाले में गिरकर बच्चे की मौत के मामले में पीड़ित परिवार को मुआवजा प्रदान करने में देरी करने पर हाईकोर्ट ने सिटी नगर परिषद पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. यह घटना 2013 में विजयनगर जिले के होसपेटे में हुई थी. इस मामले में छह वर्षीय बच्चे के पिता को मुआवजा देने में 10 वर्ष का समय लगा.
पीड़ित के पिता करण सिंह एस राजपुरोहित द्वारा दायर याचिका के लंबित रहने के दौरान अधिकारियों ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत 5 लाख रुपये का मुआवजा दिया था. हालांकि, यह देखते हुए कि राजपुरोहित को पिछले 10 में तीन याचिकाओं के साथ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा. हाईकोर्ट ने अधिकारियों को उनकी उदासीनता के लिए दंडित करते हुए जुर्माना लगाया.
न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने अपने हालिया फैसले में कहा,'याचिकाकर्ता को मुआवजा पाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा. एक बार नहीं, दो बार इस मामले को लेकर अदालत के दरवाजे को खटखटाना पड़ा.' हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि जब राजपुरोहित ने अधिकारियों की लापरवाही के लिए मुआवजे की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप उनके बेटे की मौत हो गई तो उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था.
हाईकोर्ट ने कहा,'यह रिकार्ड की बात है कि याचिकाकर्ता के बेटे की मृत्यु 15-07-2013 को हो गई थी. याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 176 के तहत एक जानबूझकर अपराध दर्ज किया गया. इसे बढ़ाया भी नहीं जा सका और इसे रद्द किया जाना चाहिए.' खुले नाले के कारण बच्चे की मौत के लिए अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि नागरिकों के हित नगर निगम अधिकारियों की जिम्मेदारी हैं. उन्होंने इस मामले में लापरवाही बरती.
यह सिर्फ एक जीवन नहीं है, यह एक जीवन भी है. अधिकारियों के लापरवाहीपूर्ण कार्य के कारण एक बहुमूल्य जीवन खत्म हो गया. एक लाख रुपये के जुर्माने के अलावा, उच्च न्यायालय ने देय मुआवजे पर छह प्रतिशत ब्याज का भुगतान करने का आदेश दिया. अदालत ने यह भी चेतावनी दी कि यदि यह (मुआवजा) छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता के दरवाजे तक नहीं पहुंचता है, तो वह उस तारीख से 12 प्रतिशत की दर से ब्याज का हकदार हो जाएगा जब तक कि इसका भुगतान नहीं किया जाता है.
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हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार देरी के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है और उनसे जुर्माना राशि वसूल सकती है. कोर्ट ने आगे कहा कि यह राज्य के लिए खुला है कि वह याचिकाकर्ता के दावे की ऐसी कठोर अनदेखी पर जवाबदेही तय करे और दोषी कर्मियों से कानून द्वारा ज्ञात तरीके से ब्याज और लागत वसूल करे.