बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार राज्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू नहीं करने का फैसला लिया है. सरकार का कहना है कि इसे राज्यों के मशविरे के बगैर तैयार किया गया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा, 'शिक्षा नीति का निर्माण राज्य का मामला है. इस संदर्भ में राज्य में नई शिक्षा नीति बनाने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा.' उन्होंने यह बात विधानसभा में शिक्षा नीति पर आयोजित एक बैठक में कही.
सिद्धारमैया ने कहा, 'केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति नहीं बना सकती क्योंकि यह राज्य का मामला है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना बनाई गई है. केंद्र सरकार राज्य सरकार पर शिक्षा नीति नहीं थोप सकती. विविधता वाले देश में एक समान शिक्षा व्यवस्था नहीं बनाई जा सकती. इसलिए पुरानी शिक्षा व्यवस्था को जारी रखने और एनईपी की जगह नई शिक्षा नीति बनाने के लिए एक समिति बनाई जाएगी.
हम शिक्षा विशेषज्ञों की एक समिति बनाएंगे और बच्चों की अगली पीढ़ी की समृद्धि के लिए कर्नाटक शिक्षा नीति तैयार करेंगे. हम अपने घोषणापत्र में किए गए वादे के अनुसार नागपुर शिक्षा नीति (एनईपी) को रद्द कर देंगे.' कर्नाटक उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा, 'हमारे दो मंत्री शिक्षा विशेषज्ञों की एक समिति के गठन का प्रस्ताव रखेंगे.
नई पीढ़ी के विकास के अनुरूप कर्नाटक शिक्षा नीति बहुत जल्द तैयार की जाएगी. हमने अपने घोषणापत्र में इसका उल्लेख किया है और हम अपने वादों पर कायम रहेंगे. हमारे पास नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए उचित बुनियादी ढांचा नहीं है, लेकिन भाजपा सरकार इसे 2021 में जल्दबाजी में लागू किया. एनईपी को राज्य में लागू नहीं किया जाएगा.'
शिवकुमार ने कहा, 'एनईपी को गुजरात और उत्तर प्रदेश सहित किसी भी भाजपा शासित राज्य में लागू नहीं किया गया है तो हमें अपने राज्य में इसकी आवश्यकता क्यों है? हमारे बच्चों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा होना चाहिए. हमारे बच्चों को पुराने जमाने की शिक्षा की आवश्यकता नहीं है. कोई भी शिक्षा नीति को प्राथमिक स्तर से लागू किया जाना चाहिए, तभी इसके फायदे और नुकसान का पता चलेगा.
2013- 18 सिद्धारमैया की सरकार के दौरान, कर्नाटक शिक्षा नीति को ज्ञान आयोग के रूप में तैयार किया गया था. अब इसके पहलुओं पर विचार किया जाएगा.' बैठक में उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. एम.सी. सुधाकर, प्राथमिक शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा, वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. बारागुरु रामचन्द्रप्पा और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी उपस्थित थे.