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watch : यहां के लोग 200 सालों से नहीं मनाते दीपावली, जानें क्या है वजह - दीपावली त्योहार

रोशनी की त्योहार दीपावली कर्नाटक में दावणगेरे जिले के लोकिकेरे गांव दो सदियों से नहीं मनाते हैं. इस दिन यहां पर सन्नाटा रहता है. जानिए इस त्योहार नहीं मनाने की क्या है वजह... (Lokikere villagers, not celebrated Diwali festival, two centuries, karnataka Davangere Lokikere Villagers)

Lokikere have not celebrated Diwali for two centuries
लोकिकेरे गांव के लोग दो सदियों से नहीं मनाते दीपावली
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 3, 2023, 6:48 PM IST

Updated : Nov 3, 2023, 7:28 PM IST

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दावणगेरे (कर्नाटक) : रोशनी की त्योहार दीपावली पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोगों के द्वारा नए कपड़े पहनकर और पटाखे फोड़कर त्योहार मनाने की प्रथा है. इससे इतर जिले के लोकिकेरे के ग्रामीणों द्वारा इस त्योहार को नहीं मनाया जाता है. बताया जाता है कि पिछले कुछ सदियों से इस शहर के लोगों ने दीपावली को मनाना बंद कर दिया है. कहा जाता है कि अतीत में त्योहार के दिन होने वाली बुराई की वजह से दीपावली के त्योहार को मनाना छोड़ दिया गया था.

वहीं ग्रामीणों का कहना है कि त्योहार के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करने की पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही परंपरा चली आ रही है. अनुसूचित समुदाय के कई लोगों के अलावा नेताओं और चरवाहों की आबादी वाले इस गांव में दीपावली नहीं मनाई जाती है. यह व्यवस्था गांव के बुजुर्गों द्वारा दो सौ वर्षों से भी अधिक समय से चलायी जा रही है. हालांकि अधिक ग्रामीण विजयादशमी और महालया अमावस्या के दिन ज्येष्ठ उत्सव करते हैं. उस समय उनके द्वारा दीपावली की तरह जश्न मनाया जाता है. इसके अलावा ग्रामीणों का मानना है कि कि अगर दीपावली के दिन त्योहार मनाया गया तो ज्यादा अशुभ होगा. दीपावली के त्योहार के दौरान वे उत्सव मनाना छोड़ देते हैं और दूसरे शहरों में बसे अपने रिश्तेदारों के घर चले जाते हैं और भोजन और दावत करते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि दीपावली केवल लोकिकेरे गांव में ही नहीं मनाई जाती है.

यह त्योहार नहीं मनाने की क्या है वजह : दो शताब्दी पहले लोकिकेरे गांव के कुछ बुजुर्ग त्योहार मनाने के लिए काशी घास लाने के लिए जंगल में गए थे. लेकिन घास लाने गया कोई भी वापस नहीं आया. ग्रामीणों द्वारा हर जगह तलाश करने पर भी उनका कोई पता नहीं चल सका. इसके बाद गांव के बुर्जुर्गों ने गांव में दीपावली उत्सव नहीं मनाने का निर्णय लिया. ग्रामीणों का मानना है कि अगर गांव में यह त्योहार मनाया गया तो अशुभ होगा. ऐसे भी उदाहरण हैं कि जब वे गांव में त्योहार मनाने की कोशिश करते हैं तो कुछ बुरा घटित होता है.

गांव के वरिष्ठ रामास्वामी और ओबलप्पा ने कहा कि लोकिकेरे गांव में दीपावली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. जो लोग काशी घास और फूल लाने गए थे, वे वापस नहीं लौटे हैं. हमने अपने पूर्वजों के बाद से इस विश्वास के कारण त्योहार का जश्न मनाना छोड़ दिया है. हम रामनवमी पर बुजुर्गों के लिए एक उत्सव मनाएंगे और एक विशेष त्योहार मनाएंगे.

ये भी पढ़ें - दीपावली पर फिर उत्तराखंड आ सकते हैं पीएम मोदी! प्रधान सचिव के दौरे ने दिए संकेत, राष्ट्रपति के आने की भी संभावना

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दावणगेरे (कर्नाटक) : रोशनी की त्योहार दीपावली पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोगों के द्वारा नए कपड़े पहनकर और पटाखे फोड़कर त्योहार मनाने की प्रथा है. इससे इतर जिले के लोकिकेरे के ग्रामीणों द्वारा इस त्योहार को नहीं मनाया जाता है. बताया जाता है कि पिछले कुछ सदियों से इस शहर के लोगों ने दीपावली को मनाना बंद कर दिया है. कहा जाता है कि अतीत में त्योहार के दिन होने वाली बुराई की वजह से दीपावली के त्योहार को मनाना छोड़ दिया गया था.

वहीं ग्रामीणों का कहना है कि त्योहार के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करने की पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही परंपरा चली आ रही है. अनुसूचित समुदाय के कई लोगों के अलावा नेताओं और चरवाहों की आबादी वाले इस गांव में दीपावली नहीं मनाई जाती है. यह व्यवस्था गांव के बुजुर्गों द्वारा दो सौ वर्षों से भी अधिक समय से चलायी जा रही है. हालांकि अधिक ग्रामीण विजयादशमी और महालया अमावस्या के दिन ज्येष्ठ उत्सव करते हैं. उस समय उनके द्वारा दीपावली की तरह जश्न मनाया जाता है. इसके अलावा ग्रामीणों का मानना है कि कि अगर दीपावली के दिन त्योहार मनाया गया तो ज्यादा अशुभ होगा. दीपावली के त्योहार के दौरान वे उत्सव मनाना छोड़ देते हैं और दूसरे शहरों में बसे अपने रिश्तेदारों के घर चले जाते हैं और भोजन और दावत करते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि दीपावली केवल लोकिकेरे गांव में ही नहीं मनाई जाती है.

यह त्योहार नहीं मनाने की क्या है वजह : दो शताब्दी पहले लोकिकेरे गांव के कुछ बुजुर्ग त्योहार मनाने के लिए काशी घास लाने के लिए जंगल में गए थे. लेकिन घास लाने गया कोई भी वापस नहीं आया. ग्रामीणों द्वारा हर जगह तलाश करने पर भी उनका कोई पता नहीं चल सका. इसके बाद गांव के बुर्जुर्गों ने गांव में दीपावली उत्सव नहीं मनाने का निर्णय लिया. ग्रामीणों का मानना है कि अगर गांव में यह त्योहार मनाया गया तो अशुभ होगा. ऐसे भी उदाहरण हैं कि जब वे गांव में त्योहार मनाने की कोशिश करते हैं तो कुछ बुरा घटित होता है.

गांव के वरिष्ठ रामास्वामी और ओबलप्पा ने कहा कि लोकिकेरे गांव में दीपावली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. जो लोग काशी घास और फूल लाने गए थे, वे वापस नहीं लौटे हैं. हमने अपने पूर्वजों के बाद से इस विश्वास के कारण त्योहार का जश्न मनाना छोड़ दिया है. हम रामनवमी पर बुजुर्गों के लिए एक उत्सव मनाएंगे और एक विशेष त्योहार मनाएंगे.

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Last Updated : Nov 3, 2023, 7:28 PM IST
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