नई दिल्ली : जातिगत जनगणना पर फिर से राजनीति शुरू हो गई है. मीडिया रिपोर्ट में कुछ लोगों ने इसे मंडल पार्ट-2 तक की संज्ञा दे डाली है. एक दिन पहले राहुल गांधी ने कर्नाटक की एक चुनावी रैली में जिसकी जितनी आबादी, उसको उतना आरक्षण का मुद्दा छेड़कर खलबली मचा दी है. उनका कहना है कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तक सीमित क्यों है, इसे बढ़ाया जाना चाहिए. भाजपा ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
भाजपा सीधे-सीधे आरक्षण का विरोध तो नहीं कर रही है, लेकिन वह कांग्रेस को उसके पुराने बयान याद दिलाकर हमला जरूर कर रही है. दरअसल, जातीय जनगणना को लेकर बिहार और यूपी में पहले से ही पार्टियां गोलबंद हो रहीं हैं. बिहार के नेताओं ने इसे बढ़-चढ़कर उठाया है. राजद नेता तेजस्वी याद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जल्द से जल्द इस पर काम शुरू होना चाहिए. बिहार सरकार ने सभी जातियों के लिए कोड भी जारी कर दिया है. यूपी में ऐसी ही मांग सपा प्रमुख अखिलेश यादव कर चुके हैं. अब राहुल गांधी ने यह मुद्दा छेड़ दिया है. राहुल ने जितनी आबादी, उतना हक की जैसे ही अपनी बात रखी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर 2011 के जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग कर डाली.
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Rahul Gandhi in Karnataka:
— Social Justice:சமூகநீதி (@Sathyantweets) April 16, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
“Only 7% secretaries in Modi government are from OBC, Dalit, and tribal communities.
This is the reason they should make the caste census done in UPA regime public.”
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“Only 7% secretaries in Modi government are from OBC, Dalit, and tribal communities.
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भाजपा का कहना है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जातिगत जनगणना का विरोध किया था. पार्टी के अनुसार 2010 में पी चिदंबरम ने अपने एक नोट में अपनी ही सरकार को चेताया था कि इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. इतना ही नहीं, तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने भी सदन में एक सवाल के जवाब में जाति जनगणना की मांग को पूरी तरह से नकार दिया था. तब राज्यसभा में जदयू नेता अली अनवर ने इस पर सवाल पूछा था.
भाजपा के अनुसार चिदंबरम और अजय माकन के अलावा आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ मंत्री ने भी इसके खिलाफ अपनी राय दी थी. भाजपा की कर्नाटक ईकाई ने भी दावा किया है कि सिद्दारमैया जब सीएम थे, तब उन्होंने खुद जातिगत जनगणना को लेकर कोई फैसला नहीं लिया था. भाजपा के सूत्र बताते हैं कि बात यहीं तक सीमित नहीं है. बल्कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी इस तरह की मांग का विरोध किया था.
नेहरू के बाद इंदिरा गांधी ने मंडल कमीशन पर कोई कार्रवाई नहीं की थी. उसके बाद राजीव गांधी ने भी इस पर कोई फैसला नहीं लिया था. वीपी सिंह ने इस पर अमल किया था. उस समय राजीव गांधी प्रतिपक्ष के नेता थे. उन्होंने खुलकर इसका विरोध कर दिया था. लेकिन वीपी सिंह के इस फैसले ने पूरे देश में राजनीति की दिशा ही बदल दी. उत्तर भारत में राजनीतिक 'भूकंप' की स्थिति आ गई. उस वक्त जो भी आंदोलन हुए, उनमें ओबीसी प्रमुखता से राजनीतिक पटल पर छा गए. लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार जैसे कई नेताओं ने इस आधार पर जमकर राजनीति की.
ओबीसी की आबादी के बारे में बात करें तो देश में प्रतिशत के हिसाब से सबसे ज्यादा ओबीसी तमिलनाडु में है. तमिलनाडु के अलावा बिहार, यूपी, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल और छत्तीसगढ़ में ओबीसी आबादी सबसे अधिक है. दो साल पहले एनएसओ (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय) ने एक आकंड़ा जारी किया था. इसके अनुसार देश भर में 17.24 करोड़ ग्रामीण परिवारों में 44.4 फीसदी ओबीसी, 21.6 फीसदी एससी और 12.3 फीसदी एसटी हैं. तमिलनाडु में ओबीसी की आबादी 67.7 फीसदी है. बिहार में 58.1 फीसदी, यूपी में 56.3 फीसदी, कर्नाटक में 51.6 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 51.4 फीसदी है. इसी तरह से राजस्थान में 46.8 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 45.8 फीसदी, गुजरात में 45.4 फीसदी आबादी है.
कुछ राजनीतिक विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि अगर राहुल गांधी की इस अपील का असर कर्नाटक चुनाव पर पड़ा, तो सचमुच में राजनीतिक हलचल मच जाएगी. भाजपा बार-बार यह दावा करती है कि उसने देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री दिया है. खुद अमित शाह इसे कई सभाओं में दुहरा चुके हैं. पर, सवाल तो यही है कि ऐसा है, तो भाजपा जातीय जनगणना पर खुलकर अपनी राय क्यों नहीं रख रही है. वैसे, बिहार भाजपा ने प्रदेश स्तर पर हुई सर्वदलीय बैठक में इस पर अपनी सहमति दी थी. विपक्ष के नेताओं का कहना है कि यदि भाजपा ओबीसी पिच पर राजनीति कर सकती है, तो वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं. पर आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा कितना आगे बढ़ता है और क्या देश फिर से मंडल पार्ट-2 का नजारा देखेगा ?
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