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Karnataka Assembly Election 2023 : बिहार और यूपी वाले 'फॉर्मूले' से कर्नाटक फतह करने की भाजपा की कोशिश - bjp obc karnataka kuruba

बिहार और यूपी में भाजपा ने जिस तरीके से पार्टी को सफलता दिलाई, उसी रास्ते से कर्नाटक को फतह करने की रणनीति पर विचार किया जा रहा है. पार्टी की कोशिश है कि वह माइनस कुरुबा और मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकें, ताकि उसकी जीत में कोई कठिनाई न हो. वैसे, पार्टी कहती है कि वह समाज के हर वर्ग का समर्थन चाहती है.

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Published : Apr 11, 2023, 5:33 PM IST

बेंगलुरु : भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए बिहार और यूपी वाला फॉर्मूला अपना सकती है. बिहार और यूपी में ऐसा माना जाता है कि पार्टी ने मुस्लिम और यादव के कॉम्बिनेशन की काट खोज ली थी. वहां पर भाजपा ने नॉन यादव सभी ओबीसी को अपने पाले में करने की कोशिश की थी. दलितों में भी इसी तरह से पार्टी ने अपनी पैठ बनाई. दूसरे दलों के मुकाबले भाजपा को वहां पर उच्च जातियों का भी समर्थन मिलता रहा है. अब भाजपा यही फॉर्मूला कर्नाटक में भी अपना सकती है.

पार्टी की कोशिश है कि वह मुस्लिम और कुरुबा को छोड़कर बाकी सभी जातियों को गोलबंद कर सके. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से हैं. मुस्लिम समाज भाजपा से कथित तौर पर पहले से ही नाराज है. उनके लिए जिस तरीके से चार फीसदी आरक्षण की व्यवस्था को खत्म किया गया, पूरे राज्य में इसकी गूंज सुनी जा सकती है. एक समय में कांग्रेस को अहिंदा का पूरा समर्थन मिला करता था. अहिंदा- मतलब- अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग हिंदू और दलित.

इस बार भाजपा लिंगायत, वोक्कालिगा, दलित और ओबीसी (माइनस कुरुबा) को अपने पक्ष में लाने की कोशिश में है. वैसे, लिगांयत भाजपा की समर्थक मानी जाती है. ओबीसी की आबादी में 33 फीसदी कुरुबा हैं. मुस्लिम 12 फीसदी हैं. लिंगायत 80 विधानसभा में संक्रेंद्रित हैं. हालांकि, दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी उनकी उपस्थिति है. इसी तरह से वोक्कालिगा मुख्य रूप से 75 सीटों पर ज्यादा केंद्रित हैं, वह भी मुख्य रूप से दक्षिणी हिस्से में.

आबादी के लिहाज से देखें तो कुरुबा और मुस्लिमों ने एक होकर वोट किया, तो वहां पर किसी भी दूसरे उम्मीदवारों के जीतने की गुंजाइश कम हो जाती है. सिद्दारमैया में वह राजनीतिक क्षमता है, जो वे इन दोनों समुदायों को एक कर सकते हैं. भाजपा इसे बखूबी समझ रही है. यही वजह है कि भाजपा अलग-अलग रैलियों में सिद्दारमैया पर हमले कर रही है. पहले भी कई रैलियों में उनके लिए 'सिद्दारमुल्लाह' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा चुका है. भाजपा यह भी आरोप लगाती रही है कि सिद्दारमैया सिर्फ कुरुबा के लिए ही काम करते हैं. भाजपा ने उन पर दलित लेफ्ट ग्रुप के खिलाफ काम करने का भी आरोप लगाया है. मुख्यमंत्री बोम्मई ने भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच कहा कि सिद्दारमैया ने एससी और एसटी समुदाय में आरक्षण व्यवस्था को ठीक करने के लिए कुछ भी काम नहीं किया.

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी कहा कि कांग्रेस ने केएच मुनियप्पा और जी परमेश्वर जैसे दलित नेताओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. उन्होंने कहा कि जब अखंड श्रीनिवास मूर्ति पर हमले हुए, तो कांग्रेस ने कुछ नहीं किया. उनके अनुसार कांग्रेस ने मलिल्कार्जुन खड़गे जैसे नेता को सीएम नहीं बनने दिया. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो 2013 में सिद्दारमैया की वजह से ही जी परमेश्वर चुनाव हार गए थे. जी परमेश्वर भी सीएम के कैंडिडेट माने जाते थे. वह एससी राइट समुदाय से आते हैं. जिस सीट से परमेश्वर हारे, वहां पर कुरुबा समुदाय की संख्या ठीक ठाक है. 2019 के लोकसभा चुनाव में मुनियप्पा हार गए थे. भाजपा इसे भी गाहे-बगाहे मुद्दा बना देती है.

एससी लेफ्ट एससी की आबादी में से छह फीसदी हैं. 7 फीसदी एसटी हैं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 80 सीटें मिली थीं. भाजपा को 104 सीटें मिली थीं और जेडीएस को 37 सीटें मिली थीं. कर्नाटक में 17 फीसदी लिंगायत, 12-15 फीसदी वोक्कालिगा, 12 फीसदी मुस्लिम, 17 फीसदी एससी, 7 फीसदी एसटी, 33 फीसदी ओबीसी हैं. (ओबीसी के भीतर छह फीसदी कुरुबा, 5 फीसदी इडिगा हैं).

ये भी पढ़ें : Karnataka Assembly Election 2023 : टिकट बंटवारे में क्यों देरी कर रही भाजपा, येदियुरप्पा भी दिल्ली से लौट गए

बेंगलुरु : भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए बिहार और यूपी वाला फॉर्मूला अपना सकती है. बिहार और यूपी में ऐसा माना जाता है कि पार्टी ने मुस्लिम और यादव के कॉम्बिनेशन की काट खोज ली थी. वहां पर भाजपा ने नॉन यादव सभी ओबीसी को अपने पाले में करने की कोशिश की थी. दलितों में भी इसी तरह से पार्टी ने अपनी पैठ बनाई. दूसरे दलों के मुकाबले भाजपा को वहां पर उच्च जातियों का भी समर्थन मिलता रहा है. अब भाजपा यही फॉर्मूला कर्नाटक में भी अपना सकती है.

पार्टी की कोशिश है कि वह मुस्लिम और कुरुबा को छोड़कर बाकी सभी जातियों को गोलबंद कर सके. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से हैं. मुस्लिम समाज भाजपा से कथित तौर पर पहले से ही नाराज है. उनके लिए जिस तरीके से चार फीसदी आरक्षण की व्यवस्था को खत्म किया गया, पूरे राज्य में इसकी गूंज सुनी जा सकती है. एक समय में कांग्रेस को अहिंदा का पूरा समर्थन मिला करता था. अहिंदा- मतलब- अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग हिंदू और दलित.

इस बार भाजपा लिंगायत, वोक्कालिगा, दलित और ओबीसी (माइनस कुरुबा) को अपने पक्ष में लाने की कोशिश में है. वैसे, लिगांयत भाजपा की समर्थक मानी जाती है. ओबीसी की आबादी में 33 फीसदी कुरुबा हैं. मुस्लिम 12 फीसदी हैं. लिंगायत 80 विधानसभा में संक्रेंद्रित हैं. हालांकि, दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी उनकी उपस्थिति है. इसी तरह से वोक्कालिगा मुख्य रूप से 75 सीटों पर ज्यादा केंद्रित हैं, वह भी मुख्य रूप से दक्षिणी हिस्से में.

आबादी के लिहाज से देखें तो कुरुबा और मुस्लिमों ने एक होकर वोट किया, तो वहां पर किसी भी दूसरे उम्मीदवारों के जीतने की गुंजाइश कम हो जाती है. सिद्दारमैया में वह राजनीतिक क्षमता है, जो वे इन दोनों समुदायों को एक कर सकते हैं. भाजपा इसे बखूबी समझ रही है. यही वजह है कि भाजपा अलग-अलग रैलियों में सिद्दारमैया पर हमले कर रही है. पहले भी कई रैलियों में उनके लिए 'सिद्दारमुल्लाह' जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा चुका है. भाजपा यह भी आरोप लगाती रही है कि सिद्दारमैया सिर्फ कुरुबा के लिए ही काम करते हैं. भाजपा ने उन पर दलित लेफ्ट ग्रुप के खिलाफ काम करने का भी आरोप लगाया है. मुख्यमंत्री बोम्मई ने भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच कहा कि सिद्दारमैया ने एससी और एसटी समुदाय में आरक्षण व्यवस्था को ठीक करने के लिए कुछ भी काम नहीं किया.

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी कहा कि कांग्रेस ने केएच मुनियप्पा और जी परमेश्वर जैसे दलित नेताओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. उन्होंने कहा कि जब अखंड श्रीनिवास मूर्ति पर हमले हुए, तो कांग्रेस ने कुछ नहीं किया. उनके अनुसार कांग्रेस ने मलिल्कार्जुन खड़गे जैसे नेता को सीएम नहीं बनने दिया. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो 2013 में सिद्दारमैया की वजह से ही जी परमेश्वर चुनाव हार गए थे. जी परमेश्वर भी सीएम के कैंडिडेट माने जाते थे. वह एससी राइट समुदाय से आते हैं. जिस सीट से परमेश्वर हारे, वहां पर कुरुबा समुदाय की संख्या ठीक ठाक है. 2019 के लोकसभा चुनाव में मुनियप्पा हार गए थे. भाजपा इसे भी गाहे-बगाहे मुद्दा बना देती है.

एससी लेफ्ट एससी की आबादी में से छह फीसदी हैं. 7 फीसदी एसटी हैं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 80 सीटें मिली थीं. भाजपा को 104 सीटें मिली थीं और जेडीएस को 37 सीटें मिली थीं. कर्नाटक में 17 फीसदी लिंगायत, 12-15 फीसदी वोक्कालिगा, 12 फीसदी मुस्लिम, 17 फीसदी एससी, 7 फीसदी एसटी, 33 फीसदी ओबीसी हैं. (ओबीसी के भीतर छह फीसदी कुरुबा, 5 फीसदी इडिगा हैं).

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