रायपुर: 26 जुलाई का दिन कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. 26 जुलाई 1999 को भारत ने पाकिस्तान से कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की थी. देश में जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र होता है. तब उन शहीदों का जिक्र जरूर होता है. जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी. ऐसे कई वीर योद्धा हैं जिन्होंने कारगिल के युद्ध में अपना योगदान दिया. उन्हीं में से एक नायक दीपचंद भी शामिल हैं.कारगिल युद्ध में नायक दीपचंद ने अपने महत्वपूर्ण अंग गंवाने के बावजूद भी लड़ाई में अपनी वीरता का परिचय दिया. कारगिल विजय दिवस की वीं वर्षगांठ पर ईटीवी भारत ने नायक दीपचंद से खास बातचीत की, जानिए उन्होंने क्या कहा ?
सवाल: आज कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. इस मौके पर आप क्या कहेंगे ?
जवाब- पूरे देशवासियों को मैं कारगिल विजय दिवस की शुभकामनाएं देता हूं. आज हमारा पूरा देश कारगिल विजय दिवस का जश्न मनाएगा. लेकिन जो युद्ध के दौरान शहीद हुए हैं उनके परिवारों को असल मायने में जश्न मनाने का मौका मिलना चाहिए. जो दिव्यांग सैनिक हैं उन्हें विजय दिवस मनाने का मौका मिलना चाहिए. हम गलियों नुक्कड़ कार्यक्रम और कई बड़े बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर कारगिल विजय दिवस मना रहे हैं. यह बहुत अच्छी बात है. लेकिन मेरी खुद की आस रहती है कि जवानों का दिल से सम्मान होना चाहिए. सैनिकों का परिवार बहुत सारी समस्याओं से जूझता रहता है और उनकी उस तरह से सहायता नहीं हो पाती. बहुत से शहीद परिवार हैं और कई परिवारों को सरकार पेंशन भी देती है लेकिन सरकार के साथ-साथ समाज का भी दायित्व बनता है. कारगिल युद्ध में बहुत सारे जवान शहीद हुए लेकिन आज बहुत कम लोगों के ही नाम लोगों को याद हैं. इसके लिए लोगों को जागरूकता भी होनी चाहिए और वास्तव में कारगिल दिवस उस दिन मनाया जाएगा जब देश के सैनिकों का सम्मान होगा.
कारगिल युद्ध में जो शहादत हुई है उसमें मेरे मित्र मुकेश कुमार भी शहीद हुए, मेरे बहुत सारे साथी थे जो शहीद हो गए. जितने भी साथी शहीद हुए मैं उन्हें दंडवत प्रणाम करता हूं. शहीदों के नाम कार्यक्रम होते हैं लेकिन युद्ध में जिन लोगों ने अपने हाथ-पैर गवाएं हैं जो दिव्यांग हो गए हैं. उनको लेकर कोई कार्यक्रम नहीं होता. यह भी एक पीड़ा है. बहुत सारे साथियों ने युद्ध के बाद भी अपने जीवन में जंग लड़ी है. हम 1 दिन के लिए जय हिंद और वंदे मातरम बोलते हैं लेकिन बाकी दिन यह सारी चीजें भूल जाते हैं.
कई बार मैं ट्रेन में सफर करता हूं तो कुछ लोग 2 से 3 घंटे के लिए नीचे की सीट भी नहीं देते हैं. हम कौन से कारगिल विजय दिवस की बात कर रहे हैं. आज के समय में युवाओं के दिमाग में क्या चल रहा है. उस बात को लेकर कोई नहीं सोचता. मेरा लोगों से आग्रह है कि देश के सैनिकों का दिल से सम्मान करिए. सैनिक उस ऑक्सीजन के समान है जो 2 मिनट के लिए भी अगर देश की सीमा से हट जाए तो दोबारा हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ जाएगा. आज के समय में देश में जो गंदी राजनीति हो रही है. उससे एक ना एक दिन हमारा देश हार जाएगा. लेकिन सैनिक हमेशा देश को जिताने का ही काम करते हैं. राजनीति गंदी नहीं है लेकिन आज के समय में राजनीति के नाम पर जो लोग भ्रष्ट हो रहे हैं उन्हें सुधारने की आवश्यकता है. हमेशा देश सर्वप्रथम होना चाहिए. आज के समय में जातिवाद ,क्षेत्रवाद और मैं पन का भाव बढ़ गया है .लेकिन हम भारतीय कब होंगे. भारतीयता कब लोगों में झलकेगी यह एक बड़ा सवाल है.
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सवाल: कारगिल युद्ध के दौरान आपने अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवाए, फिर भी आप लड़ते रहे. इसके बारे में बताइए
जवाब: स्टोर सेटिंग के दौरान बक्सा फूटने के कारण बम फट गया था. जिससे मेरा हाथ टूट चुका था. टांगें मेरी अस्पताल में काटी गई. मैं उस दौरान बातें कर रहा था और मेरे दोस्त रो रहे थे. मेरे पेट से अतड़ियां बाहर आ गई थी. डॉक्टर ने कहा था कि यह अंतिम वक्त है. डॉक्टर ने बचने के 5% चांस होने की बात कही थी. उस दौरान मेरे सीओ ने डॉक्टर से पूछा कि इनके बचने के क्या चांस हैं. तब डॉक्टर ने कहा था कि अगर इनके दोनों पैर काट दिए जाएं तो इनके 5% बचने के चांस है. बाकी भगवान चाहे तो इनकी जान बचा सकता है. उस दौरान 17 बोतल खून मुझे चढ़ाए गए. मेरी जान बचाने के लिए पूजा पाठ शुरू हो गई थी. 3 दिन तक बटालियन में किसी ने खाना नहीं खाया था. वह कहते हैं कि जाको राखे साइयां मार सके ना कोई. 12 घंटे बाद जब मेरी आंखें खुली तो मुझे होश आया. उस दौरान मेरी हालत देखकर लोगों ने कहा था कि मैं बच जाऊंगा और यही हुआ और मुझे नया जीवन मिल गया..
सवाल:ऑपरेशन के बाद जब आप के अंगों को काट दिया गया उस दौरान क्या स्थितियां थी?
जवाब- समस्याएं आती रहती है और उस दौरान मुझे भी थोड़ी समस्याएं आई. लेकिन मैंने राष्ट्र को सर्वप्रथम माना है. हम अपने उद्देश्य को सर्वोपरि मानते हैं. हमारा देश पहले आता है उसके बाद परिवार आता है. उस दौरान मुझे ख्याल आया, अगर मेरी आंखें चली जाती तो क्या होता. सब चीजें मैंने भगवान के ऊपर छोड़ दी और इसी कंडीशन पर मैंने यह ठान लिया कि ऐसे ही मुझे जीवन यापन करना है. आज मैं सभी काम करता हूं और मन में भी एक विश्वास रहता है और एक प्राउडनेस है जो हमने भारतीय वर्दी पहन रखी है. यह वर्दी नहीं अंतरात्मा है. 135 करोड़ भारतवासियों का आशीर्वाद मुझ पर है और यह बात मुझे प्रेरणा देती है आगे पढ़ने की.
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सवाल: अग्निवीर को लेकर लगातार विरोध हो रहा है इसे लेकर आपका क्या मानना है?
जवाब: मुझे लगता है अग्निवीर का एक बैच निकलकर सामने आए. तब सही और गलत का पता चल पाएगा. एक बैच तैयार हो जाए तो क्या कमियां रहेंगी क्या अच्छाइयां रहेंगी यह पता चल पाएगा. इस विषय पर अच्छाई या बुराई बोलने के लिए एक भर्ती होना जरूरी है. तब सारी चीजें स्पष्ट हो पाएंगी.
सवाल: युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे ?
जवाब: आप सोशल मीडिया को छोड़कर असलियत वास्तविकता में आइए. आज के समय में युवाओं को चश्मे लगने शुरू हो गए हैं. 8 से 10 घंटे युवा मोबाइल में समय बिता देते हैं. मेरा युवाओं से कहना है कि वे देश के बारे में सोचे. आज के युवा छोटी छोटी चीजों को लेकर मायूस हो जाते हैं. उन्हें मायूस नहीं होना है उन्हें आत्महत्या करने की जरूरत नहीं है. जीवन बहुमूल्य है, समस्याएं बहुत आती हैं. लेकिन इस जीवन को जी कर दिखाइए. परीक्षा में युवा फेल हो जाते हैं और नंबरों में अपने आप को आंकते हैं. ऐसा काम मत करिए. युवा पहले एक अच्छा इंसान बने. जब आप एक अच्छे इंसान बन जाएंगे तो देश के लिए आप कुछ कर सकते हैं.