नई दिल्ली: बतौर प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के पहले महीने में दूरगामी प्रभाव वाले कई महत्वपूर्ण न्यायिक और प्रशासनिक फैसले लिए हैं. इनमें समलैंगिक जोड़ों के विवाह के अधिकार पर गौर करने का निर्णय लेना, वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में उस क्षेत्र की सुरक्षा का आदेश देना शामिल हैं जहां 'शिवलिंग' मिलने का दावा किया गया था. इसके साथ ही न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को न्यायपालिका के डिजिटलीकरण के लिए कदम उठाने का श्रेय भी है. उन्होंने ऑनलाइन आरटीआई (सूचना का अधिकार) पोर्टल के संचालन और उच्चतम न्यायालय मोबाइल एप्लिकेशन के एक अद्यतन संस्करण के लिए भी मंजूरी दी है.
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न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जमानत याचिकाओं और 'वैवाहिक स्थानांतरण' मामलों को प्रधानता देकर उन्हें सूचीबद्ध करने पर जोर दिया है. इसके साथ ही उन्होंने निर्णय लिया कि सर्वोच्च अदालत की प्रत्येक पीठ नियमित कार्यवाही शुरू करने से पहले ऐसी 10 याचिकाओं की सुनवाई करेगी. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आपराधिक अपील, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर और भूमि अधिग्रहण मामलों तथा मोटर दुर्घटना दावा मामलों की सुनवाई के लिए चार विशेष पीठ स्थापित करने का भी निर्णय लिया है.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने नौ नवंबर को प्रधान न्यायाधीश का कार्यभाल संभाला था. वह कई संविधान पीठों और ऐतिहासिक फैसलों में शामिल रहे हैं जिनमें अयोध्या मुद्दे पर फैसला भी शामिल है, जिससे उत्तर प्रदेश में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता प्रशस्त हुआ. उनके कार्यकाल का पहला महीना काफी घटनापूर्ण रहा और उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति की 'कॉलेजियम' प्रणाली का पक्ष लिया और उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों से 'औपनिवेशिक मानसिकता' छोड़ने तथा जिला न्यायपालिका को सम्मान देने का भी आह्वान किया.