चेन्नई : तमिलनाडु की दिवंगत सीएम जे. जयललिता की मौत (J. Jayalalithaa's death) की परिस्थितियों की जांच के लिए गठित जस्टिस अरुमुघस्वामी आयोग (Justice Arumughaswamy Commission) ने शनिवार को अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी. जस्टिस अरुमुघस्वामी ने बाद में पत्रकारों से कहा कि लगभग 150 गवाहों को सुनने के बाद अंग्रेजी में 500 पन्नों और तमिल में 600 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई है. उन्होंने कहा, "केवल सरकार ही रिपोर्ट प्रकाशित करने का फैसला कर सकती है. रिपोर्ट में सभी संबंधित पहलुओं का उल्लेख किया गया है."
जस्टिस अरुमुघस्वामी ने कहा कि यह जांच उनके लिए संतोषजनक थी और कई लोगों ने महसूस किया कि आयोग ने अदालत की तरह काम किया. आयोग के समक्ष बयान देने वालों में अन्नाद्रमुक के शीर्ष नेता ओ. पनीरसेल्वम, जयललिता की भतीजी दीपा और भतीजे दीपक, डॉक्टर, शीर्ष अधिकारी व ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) के सी विजयभास्कर (पूर्व स्वास्थ्य मंत्री), एम थंबी दुरई, सी पोन्नइयन और मनोज पांडियन शामिल हैं. दीपा और दीपक ने अपनी मौसी की मौत की परिस्थितियों पर संदेह जताया था. दिवंगत मुख्यमंत्री की विश्वासपात्र वी. के. शशिकला ने 2018 में अपने वकील के माध्यम से एक हलफनामा दायर किया था.
पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा गठित अरुमुघस्वामी जांच आयोग ने 22 नवंबर 2017 को मामले की तफ्तीश शुरू की थी. जस्टिस अरुमुघस्वामी मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं. शशिकला का हलफनामा अन्य बातों के अलावा जयललिता के अस्पताल में भर्ती होने की परिस्थितियों से संबंधित था. दिवंगत मुख्यमंत्री पांच दिसंबर 2016 को मृत्यु से पहले 75 दिनों तक अपोलो अस्पताल में भर्ती थीं.
हाल की कार्रवाई के दौरान अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के विशेषज्ञों के एक चिकित्सकीय बोर्ड को जयललिता को दिए गए उपचार के बारे में जानकारी दी. एम्स की समिति ने उच्चतम न्यायालय के निर्देश के तहत चिकित्सा पहलुओं को समझने में आयोग की मदद करने के लिए वर्चुअल माध्यम से कार्यवाही में हिस्सा लिया.