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न्यायमूर्ति ए.एम खानविलकर की उच्चतम न्यायालय से विदाई, कई अहम फैसलों में रहे शामिल

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जस्टिस ए.एम. खानविलकर (Justice A.M. Khanwilkar) शुक्रवार को रिटायर हो रहे हैं. खानविलकर धन शोधन निवारण अधिनियम, तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी व अन्य को मिली क्लीन चिट को बरकरार रखने जैसे कई अहम मामलों के निर्णय में शामिल रहे. पढ़िए पूरी खबर...

Justice AM Khanwilkar
जस्टिस एएम खानविलकर
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Published : Jul 28, 2022, 10:30 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) से शुक्रवार को सेवानिवृत्त होने जा रहे न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर (Justice A.M. Khanwilkar) आधार मामले और 2002 के गुजरात दंगों में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी एवं 63 अन्य को एसआईटी से मिली क्लीन चिट को बरकरार रखने जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों पर आए फैसलों में शामिल रहे. धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत गिरफ्तारी करने, संपत्ति कुर्क करने, तलाशी लेने और जब्ती कार्रवाई करने की प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को बरकरार करने का फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति खानविलकर शीर्ष अदालत की कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिन्होंने महत्वपूर्ण निर्णय दिए.

एक सितंबर 2018 के एक फैसले में शीर्ष अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को 'तर्कहीन, अनिश्चित और स्पष्ट रूप से मनमानी करार दिया था. इससे पहले, धारा 377 में सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाने को भी अपराध घोषित किया गया था. निजी स्थान पर वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध रखने के मामले पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ ने ब्रिटिश युग के कानून के उस हिस्से को रद्द कर दिया था, जिसमें ऐसे यौन संबंधों को इस आधार पर अपराध घोषित किया गया था कि यह समानता और गरिमा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं.

न्यायमूर्ति खानविलकर उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने केंद्र की प्रमुख आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया था, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था. इन प्रावधानों में आधार को बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में प्रवेश से जोड़ना शामिल था. न्यायमूर्ति खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले महीने दिए गए एक फैसले में 2002 के गुजरात दंगों में मोदी और 63 अन्य को मिली एसआईटी की क्लीन चिट को बरकरार रखा था. पीठ ने कहा कि इस आरोप का समर्थन करने के लिए सबूत नहीं है कि गोधरा की घटना 'पूर्व नियोजित' थी, जिसकी साजिश राज्य में उच्चतम स्तर पर रची गई थी.

मई 2016 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति पाने वाले न्यायमूर्ति खानविलकर उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने व्यभिचार को भारत में अपराध मुक्त घोषित किया था. पीठ ने व्यभिचार के अपराध से निपटने के लिए आईपीसी की धारा 497 और आपराधिक संहिता की धारा 198 को समाप्त कर दिया था. वह पांच-न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ में भी शामिल रहे, जिसने अपने 4:1 के अनुपात से केरल के सबरीमला में अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया था.

तीस जुलाई, 1957 को पुणे में जन्मे न्यायमूर्ति खानविलकर ने मुंबई के एक लॉ कॉलेज से विधि स्नातक की पढाई की थी. उन्हें फरवरी, 1982 में एक वकील के रूप में पंजीकृत किया गया था और बाद में 29 मार्च, 2000 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया. न्यायमूर्ति खानविलकर को चार अप्रैल, 2013 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और बाद में 24 नवंबर, 2013 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. इसके बाद न्यायमूर्ति खानविलकर को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और उन्होंने 13 मई, 2016 को कार्यभार ग्रहण किया था.

ये भी पढ़ें - Supreme Court Collegium : बैठक के एजेंडे की सूचना मांगने वाली याचिका खारिज

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) से शुक्रवार को सेवानिवृत्त होने जा रहे न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर (Justice A.M. Khanwilkar) आधार मामले और 2002 के गुजरात दंगों में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी एवं 63 अन्य को एसआईटी से मिली क्लीन चिट को बरकरार रखने जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों पर आए फैसलों में शामिल रहे. धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत गिरफ्तारी करने, संपत्ति कुर्क करने, तलाशी लेने और जब्ती कार्रवाई करने की प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों को बरकरार करने का फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति खानविलकर शीर्ष अदालत की कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिन्होंने महत्वपूर्ण निर्णय दिए.

एक सितंबर 2018 के एक फैसले में शीर्ष अदालत ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को 'तर्कहीन, अनिश्चित और स्पष्ट रूप से मनमानी करार दिया था. इससे पहले, धारा 377 में सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाने को भी अपराध घोषित किया गया था. निजी स्थान पर वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध रखने के मामले पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ ने ब्रिटिश युग के कानून के उस हिस्से को रद्द कर दिया था, जिसमें ऐसे यौन संबंधों को इस आधार पर अपराध घोषित किया गया था कि यह समानता और गरिमा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं.

न्यायमूर्ति खानविलकर उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने केंद्र की प्रमुख आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया था, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था. इन प्रावधानों में आधार को बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में प्रवेश से जोड़ना शामिल था. न्यायमूर्ति खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले महीने दिए गए एक फैसले में 2002 के गुजरात दंगों में मोदी और 63 अन्य को मिली एसआईटी की क्लीन चिट को बरकरार रखा था. पीठ ने कहा कि इस आरोप का समर्थन करने के लिए सबूत नहीं है कि गोधरा की घटना 'पूर्व नियोजित' थी, जिसकी साजिश राज्य में उच्चतम स्तर पर रची गई थी.

मई 2016 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति पाने वाले न्यायमूर्ति खानविलकर उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने व्यभिचार को भारत में अपराध मुक्त घोषित किया था. पीठ ने व्यभिचार के अपराध से निपटने के लिए आईपीसी की धारा 497 और आपराधिक संहिता की धारा 198 को समाप्त कर दिया था. वह पांच-न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ में भी शामिल रहे, जिसने अपने 4:1 के अनुपात से केरल के सबरीमला में अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया था.

तीस जुलाई, 1957 को पुणे में जन्मे न्यायमूर्ति खानविलकर ने मुंबई के एक लॉ कॉलेज से विधि स्नातक की पढाई की थी. उन्हें फरवरी, 1982 में एक वकील के रूप में पंजीकृत किया गया था और बाद में 29 मार्च, 2000 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया. न्यायमूर्ति खानविलकर को चार अप्रैल, 2013 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और बाद में 24 नवंबर, 2013 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. इसके बाद न्यायमूर्ति खानविलकर को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और उन्होंने 13 मई, 2016 को कार्यभार ग्रहण किया था.

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(पीटीआई-भाषा)

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