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अंग्रेजों के जमाने में हुआ था मामला.. 108 साल बाद आया फैसला.. पाकिस्तान में हैं जमीन के मालिक के वंशज - आरा सिविल कोर्ट

आरा सिविल कोर्ट (Arrah Civil Court) से 108 साल बाद आए इस फैसले से जहां रिस्पांडेड पक्ष की चौथी पीढ़ी में काफी खुशी है. वहीं, अपीलार्थी पक्ष इस फैसले को सही नहीं मान रहा है. इस फैसले के बाद भी विवाद जारी है. अपीलार्थी पक्ष के द्वारा फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही गई है. पढ़ें क्या है पूरा मामला...

arrah civil court
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Published : May 18, 2022, 6:48 PM IST

भोजपुरः बिहार के आरा सिविल कोर्ट में ब्रिटिश शासन काल (Case Filed During British Time) में दायर एक संपत्ति विवाद के मामले में 108 साल बाद अहम फैसला सुनाया गया. कोर्ट के एडीजे 7 श्वेता कुमारी सिंह ने 108 साल (Justice After 108 Years In property Dispute) से चल रहे टाइटल सूट का अपना निर्णय सुनाया. जज ने इस मामले में जब्त जमीन को मुक्त करने का फैसला भी दिया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मामले में रिस्पांडेड पक्ष की चौथी पीढ़ी को न्याय मिला है. जिसके बाद उनके परिवार में काफी खुशी है. हालांकि परिवार के एक बुजुर्ग ने निराशा भरे लहजे में कहा कि फैसले से खुशी तो है, लेकिन हमारे देश की न्याय प्रणाली इतनी जटिल है कि जिन्होंने इस केस के लिए न्याय की आस लगाई थी, वो आज इस दुनिया में नहीं हैं.

ये भी पढ़ेंः आरा कोर्ट बम ब्लास्ट मामले में सजा का ऐलान, 1 को फांसी और 7 को उम्रकैद

जमीन के मालिक की 1911 में हुई मौतः मिली जानकारी के अनुसार कोईलवर निवासी नथुनी खान की साल 1911 में मृत्यु हुई थी, जो नौ एकड़ जमीन के मालिक थे. उसके बाद उनकी बीवी जैतुन, बहन बीबी बदलन और बेटी बीबी सलमा के बीच संपत्ति बंटवारे को लेकर झगड़ा शुरू हो गया था. स्थिति ये हुई कि सन 1914 में मामला कोर्ट तक जा पहुंचा था. तब 14 फरवरी 1931 को तत्कालीन कार्यपालक दंडाधिकारी द्वारा 146 के तहत संपत्ति जब्त कर ली गयी. उसके बाद कोर्ट में टाइटल शूट किया गया. उसमें फैसला आने के बाद अपील दायर का दौर शुरू हो गया.

1914 में हिस्सेदारी को लेकर वाद दाखिलः केस के रिस्पांडेड पक्ष के अधिवक्ता सतेंद्र कुमार सिंह के मुताबिक पहले 1914 हिस्सेदारी को लेकर वाद दाखिल किया गया था. जिसके बाद जमीन के एक हिस्सेदार से कोईलवर पठानटोला निवासी स्वर्गीय दरबारी सिंह ने 3 एकड़ जमीन खरीद ली. इधर कोईलवर के ही रहने वाले स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह ने भी स्वर्गीय नथुनी खान के वारिसान से कुछ हिस्से की जमीन खरीदी. जिसके बाद दोनों खरिदारों के बीच खरीदी हुई संपत्ति को लेकर मुकदमा शुरू हो गया. फिर 1927 में भी केस फाइल किया गया था. अंतिम केस फाइल 1970 में किया गया था. जिसमें फैसला आने पर 1992 में अपील दायर की गयी थी. उसमें सुनवाई करते हुये एडीजे 7 श्वेता कुमारी सिंह ने मामले इसी साल 11 मार्च को निपटारा कर दिया साथ ही जब्त संपत्ति को भी मुक्त करने का आदेश दे दिया.

108 सालों के बाद रिस्पांडेड पक्ष में खुशीः लंबे कानूनी दांव पेंच के बाद आए इस फैसले से अपीलार्थी पक्ष यानी स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह के अधिवक्ता राजनाथ सिंह इस फैसले से नाखुश नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि इतने लंबे समय के बाद जो फैसला दिया गया है वो कागजात और कानून के अनुकूल नहीं हुआ है. इस लिए उनके पक्ष के द्वारा इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही जा रही है. जबकि 108 सालों के बाद रिस्पांडेड पक्ष में फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी के वंशजों में काफी खुशी देखी जा रही है. फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी सिंह के पोते अरविंद सिंह का कहना है कि हम लोगों को काफी खुशी महसूस हो रही है.

'न्याय से खुशी तो है लेकिन अफसोस ये है कि हमारे देश की न्याय प्रणाली इतनी जटिल है कि उसके फैसले का इंतजार वर्षों वर्षों तक करना पड़ता है. काश हमारे दादा जी के समय ही ये फैसला आ जाता तो कितना अच्छा रहता. हमारी चार पिढ़ी के बाद ये फैसला आया है. खैर देर से ही सही इस फैसले का हम लोग आदर करते हैं'- अरविंद सिंह, दरबारी सिंह के पोते

केस में मुवक्किल की 4 पीढ़ी और अधिवक्ता की तीसरी पीढ़ी रही शामिल : इधर रिस्पांडेड पक्ष के अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह ने कहा कि इस केस को हमारे तीन पीढ़ी द्वारा बतौर अधिवक्ता के रूप में लड़ा गया है. जिसके बाद यह फैसला आया है. हम लोग इस फैसले का सम्मान करते हैं. बहरहाल कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से ना केवल जिनके पक्ष में फैसला आया है वह लोग चर्चा कर रहे हैं, बल्कि इस फैसले को लेकर अधिवक्ता सहित आम लोगों के बीच भी काफी तेजी से चर्चा हो रही है.

ये भी पढ़ेंः हथकड़ी से हाथ छुड़ाकर कोर्ट से फरार हुआ कुख्यात अपराधी, देखती रह गई पुलिस

पाकिस्तान में हैं जमीन के मालिक के वंशजः दरअसल विवाद की जड़ में नौ एकड़ जमीन है, जो मूल रूप से भोजपुर जिले के कोइलवार के अजहर खान के कब्जे में है. अजहर खान के वारिसों से अधिग्रहित इस जमीन की तीन एकड़ जमीन पर दो राजपूत परिवारों के बीच झगड़ा है. 108 साल तक केस लड़ने के बाद भी एक पक्ष निराश है. क्योंकि उसका मानना है कि फैसला सही नहीं हुआ है. इस फैसले के बाद भी विवाद जारी है, हालांकि मामले के मुख्य नायक मर चुके हैं और अजहर खान के वंशज पाकिस्तान चले गए हैं. अपीलार्थी पक्ष का कहना है कि उसके पास उच्च न्यायालय जाने का विकल्प अभी बाकी है.

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भोजपुरः बिहार के आरा सिविल कोर्ट में ब्रिटिश शासन काल (Case Filed During British Time) में दायर एक संपत्ति विवाद के मामले में 108 साल बाद अहम फैसला सुनाया गया. कोर्ट के एडीजे 7 श्वेता कुमारी सिंह ने 108 साल (Justice After 108 Years In property Dispute) से चल रहे टाइटल सूट का अपना निर्णय सुनाया. जज ने इस मामले में जब्त जमीन को मुक्त करने का फैसला भी दिया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मामले में रिस्पांडेड पक्ष की चौथी पीढ़ी को न्याय मिला है. जिसके बाद उनके परिवार में काफी खुशी है. हालांकि परिवार के एक बुजुर्ग ने निराशा भरे लहजे में कहा कि फैसले से खुशी तो है, लेकिन हमारे देश की न्याय प्रणाली इतनी जटिल है कि जिन्होंने इस केस के लिए न्याय की आस लगाई थी, वो आज इस दुनिया में नहीं हैं.

ये भी पढ़ेंः आरा कोर्ट बम ब्लास्ट मामले में सजा का ऐलान, 1 को फांसी और 7 को उम्रकैद

जमीन के मालिक की 1911 में हुई मौतः मिली जानकारी के अनुसार कोईलवर निवासी नथुनी खान की साल 1911 में मृत्यु हुई थी, जो नौ एकड़ जमीन के मालिक थे. उसके बाद उनकी बीवी जैतुन, बहन बीबी बदलन और बेटी बीबी सलमा के बीच संपत्ति बंटवारे को लेकर झगड़ा शुरू हो गया था. स्थिति ये हुई कि सन 1914 में मामला कोर्ट तक जा पहुंचा था. तब 14 फरवरी 1931 को तत्कालीन कार्यपालक दंडाधिकारी द्वारा 146 के तहत संपत्ति जब्त कर ली गयी. उसके बाद कोर्ट में टाइटल शूट किया गया. उसमें फैसला आने के बाद अपील दायर का दौर शुरू हो गया.

1914 में हिस्सेदारी को लेकर वाद दाखिलः केस के रिस्पांडेड पक्ष के अधिवक्ता सतेंद्र कुमार सिंह के मुताबिक पहले 1914 हिस्सेदारी को लेकर वाद दाखिल किया गया था. जिसके बाद जमीन के एक हिस्सेदार से कोईलवर पठानटोला निवासी स्वर्गीय दरबारी सिंह ने 3 एकड़ जमीन खरीद ली. इधर कोईलवर के ही रहने वाले स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह ने भी स्वर्गीय नथुनी खान के वारिसान से कुछ हिस्से की जमीन खरीदी. जिसके बाद दोनों खरिदारों के बीच खरीदी हुई संपत्ति को लेकर मुकदमा शुरू हो गया. फिर 1927 में भी केस फाइल किया गया था. अंतिम केस फाइल 1970 में किया गया था. जिसमें फैसला आने पर 1992 में अपील दायर की गयी थी. उसमें सुनवाई करते हुये एडीजे 7 श्वेता कुमारी सिंह ने मामले इसी साल 11 मार्च को निपटारा कर दिया साथ ही जब्त संपत्ति को भी मुक्त करने का आदेश दे दिया.

108 सालों के बाद रिस्पांडेड पक्ष में खुशीः लंबे कानूनी दांव पेंच के बाद आए इस फैसले से अपीलार्थी पक्ष यानी स्वर्गीय लक्ष्मण सिंह के अधिवक्ता राजनाथ सिंह इस फैसले से नाखुश नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि इतने लंबे समय के बाद जो फैसला दिया गया है वो कागजात और कानून के अनुकूल नहीं हुआ है. इस लिए उनके पक्ष के द्वारा इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती देने की बात कही जा रही है. जबकि 108 सालों के बाद रिस्पांडेड पक्ष में फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी के वंशजों में काफी खुशी देखी जा रही है. फैसला आने के बाद स्वर्गीय दरबारी सिंह के पोते अरविंद सिंह का कहना है कि हम लोगों को काफी खुशी महसूस हो रही है.

'न्याय से खुशी तो है लेकिन अफसोस ये है कि हमारे देश की न्याय प्रणाली इतनी जटिल है कि उसके फैसले का इंतजार वर्षों वर्षों तक करना पड़ता है. काश हमारे दादा जी के समय ही ये फैसला आ जाता तो कितना अच्छा रहता. हमारी चार पिढ़ी के बाद ये फैसला आया है. खैर देर से ही सही इस फैसले का हम लोग आदर करते हैं'- अरविंद सिंह, दरबारी सिंह के पोते

केस में मुवक्किल की 4 पीढ़ी और अधिवक्ता की तीसरी पीढ़ी रही शामिल : इधर रिस्पांडेड पक्ष के अधिवक्ता सत्येंद्र नारायण सिंह ने कहा कि इस केस को हमारे तीन पीढ़ी द्वारा बतौर अधिवक्ता के रूप में लड़ा गया है. जिसके बाद यह फैसला आया है. हम लोग इस फैसले का सम्मान करते हैं. बहरहाल कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले से ना केवल जिनके पक्ष में फैसला आया है वह लोग चर्चा कर रहे हैं, बल्कि इस फैसले को लेकर अधिवक्ता सहित आम लोगों के बीच भी काफी तेजी से चर्चा हो रही है.

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पाकिस्तान में हैं जमीन के मालिक के वंशजः दरअसल विवाद की जड़ में नौ एकड़ जमीन है, जो मूल रूप से भोजपुर जिले के कोइलवार के अजहर खान के कब्जे में है. अजहर खान के वारिसों से अधिग्रहित इस जमीन की तीन एकड़ जमीन पर दो राजपूत परिवारों के बीच झगड़ा है. 108 साल तक केस लड़ने के बाद भी एक पक्ष निराश है. क्योंकि उसका मानना है कि फैसला सही नहीं हुआ है. इस फैसले के बाद भी विवाद जारी है, हालांकि मामले के मुख्य नायक मर चुके हैं और अजहर खान के वंशज पाकिस्तान चले गए हैं. अपीलार्थी पक्ष का कहना है कि उसके पास उच्च न्यायालय जाने का विकल्प अभी बाकी है.

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