नई दिल्ली: आज के दौर में भले ही स्मार्ट फोन हर तरह के मीडिया पर भारी पड़ रहा है, लेकिन रेडियो (Radio) आज भी लोगों का पसंदीदा बना हुआ है. खासकर, FM Radio के आने के बाद से लोग आज भी बड़े शौक से अपने फोन में या गाड़ियों में नए से लेकर पुराने सदाबहार गानों को सुनना पसंद करते हैं. सिर्फ गाड़ियों में ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में तो आज भी रेडियो मनोरंजन (Entertainment) और सूचना का मुख्य साधन है.
देश की आजादी के पहले ब्रिटिश सरकार ने इसके महत्व को समझा था और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी उपयोगिता को समझते हुए लोगों से जुड़ने के लिए चुना. आज देश में सबसे पहले तत्कालीन बॉम्बे में रेडियो के निजी सफर की शुरुआत के मौके पर आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ खास बातें...
एक शताब्दी का सफर पूरा करने वाले भारतीय रेडियो प्रसारण (Indian Radio Broadcasts) की पहली संगठित शुरुआत 23 जुलाई 1927 को Indian Broadcasting Company के बम्बई (अब मुंबई) केंद्र से हुई थी. वर्ष 1930 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस माध्यम के महत्व को समझते हुए इसे अपने नियंत्रण में लेकर इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का नाम दिया, जो 1936 से ऑल इंडिया रेडियो के नाम से हर घर में अपनी आवाज का जादू करने लगा. आजादी के बाद, सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इस एकमात्र सार्वजनिक सरकारी प्रसारण माध्यम का नामकरण आकाशवाणी कर दिया.
विश्वास का दूसरा नाम रेडियो
शुरुआत से ही रेडियो में लोगों की दिलचस्पी का आलम ये था कि लोग इसके कार्यक्रमों के हिसाब से अपनी की दिनचर्या निश्चित किया करते थे. सुबह, दोपहर, शाम के समाचार, गाने, नाटिका, किसान और फौजी भाइयों के लिए, सखियों, युवाओं, बच्चों सबके लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आते थे. वार्ता, साक्षात्कार प्रसारित होते थे. चिट्ठियां पढ़ी जातीं थीं.
प्रादेशिक केन्द्रों के साथ घर-घर में विविध भारती बेहद लोकप्रिय हुआ करता था. सूचनाओं की विश्वसनीयता के लिए बीबीसी पर आंख मूंदकर भरोसा किया जाता था. इंदिरा गाँधी की हत्या के समय किसी को इस दुखद समाचार पर विश्वास ही नहीं हो पा रहा था. जब बीबीसी ने इस बारे में सूचना दी तो देश भर में शोक की लहर दौड़ गई. यही वो समय भी था, जब दूरदर्शन का मध्यम वर्ग के घरों में प्रवेश प्रारंभ हुआ था.
99 प्रतिशत जनता तक पहुंच का प्रभावी माध्यम
बीते नौ दशकों में रेडियो ने महानगरों के ड्रॉइंग रूम से गांव की चौपालों और किसानों के खेतों तक का सफर तय किया है. पिछले ढाई दशक में मनोरंजन और ज्ञानार्जन के संसाधनों के विस्फोटक विस्तार के बावजूद आज भी रेडियो देश की लगभग 99 प्रतिशत जनता तक सीधी पहुंच के चलते प्राथमिक संचार का सबसे प्रभावी माध्यम है. तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात देश की जनता से साझा करने के लिए तमाम दूसरे माध्यम छोड़कर इसका चयन किया.
एक नजर रेडियो के दिलचस्प सफर पर
- रेडियो ट्रांसमिशन के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द 'ब्रॉडकास्टिंग' असल में कृषि से जुड़ा हुआ था जिसका मतलब था 'बीज को बिखेरना'.
- जून 1923 में ब्रिटिश राज के दौरान बॉम्बे प्रेसीडेंसी रेडियो क्लब और अन्य रेडियो क्लबों के कार्यक्रमों के साथ शुरू हुआ.
- 23 जुलाई 1927 को एक समझौते के अनुसार, निजी इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड (IBC) को दो रेडियो स्टेशनों को संचालित करने के लिए अधिकृत किया गया था. बॉम्बे स्टेशन 23 जुलाई 1927 को कलकत्ता स्टेशन 26 अगस्त 1927 को शुरू हुआ.
- 1 मार्च 1930 को ब्रितानी सरकार ने इसको अपने कब्जे में ले लिया और 1 अप्रैल 1930 को दो साल के लिए प्रायोगिक आधार पर भारतीय राज्य प्रसारण सेवा (ISBS) शुरू की गई.
- मई 1932 में स्थायी रूप से यह ऑल इंडिया रेडियो शुरू हो गया.
- 1 अक्टूबर 1939 को पश्तो भाषा में रेडियो प्रसारण के साथ बाह्य सेवा की शुरुआत हुई. इसका उद्देश्य अफगानिस्तान, फारस और अरब देशों में निर्देशित जर्मनी से रेडियो प्रचार का मुकाबला करना था.
- 1939 में पूर्वी भारत के ढाका स्टेशन का उद्घाटन भी हुआ, जो अब बांग्लादेश में है.
- 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो ऑल इंडिया रेडियो ने अपनी पहली महिला न्यूज रीडर, सईदा बानो को नियुक्त किया, जिन्होंने उर्दू में समाचार पढ़ा.
- उस समय AIR नेटवर्क के पास केवल छह स्टेशन (दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, चेन्नई, लखनऊ और तिरुचिरापल्ली). उस समय भारत में रेडियो सेटों की कुल संख्या लगभग 275,000 थी.
- रेडियो सीलोन को टक्कर देने के लिए 3 अक्टूबर 1957 को विविध भारती सेवा शुरू की गई.
- डेक्कन रेडियो (निजाम रेडियो 1932), हैदराबाद राज्य (अब हैदराबाद, तेलंगाना राज्य) का पहला रेडियो स्टेशन 3 फरवरी 1935 को ऑन एयर हुआ. इसे हैदराबाद के 7वें निजाम मीर उस्मान अली खान लॉन्च किया था.
- 1 अप्रैल 1950 को डेक्कन रेडियो को केंद्र सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया और 1956 में इसे ऑल इंडिया रेडियो (AIR) में मिला दिया गया.