जोधपुर : पारिवारिक न्यायालय ने साल 2013 में हुए एक बाल विवाह को निरस्त कर बालिका वधू बनी युवती को आजादी दी है. सात साल पहले हुए इस बाल विवाह के खिलाफ बालिग हो चुकी युवती छोटा देवी ने केस दायर किया था. न्याय मित्र के रूप में राजेंद्र कुमार सोनी ने जहां निशुल्क रूप से केस लड़ा, तो वहीं सामाजिक कार्यकर्ता रूपमति देवड़ा के प्रयासों से बाल विवाह शून्य हो पाया है.
छोटा, पुलिस में नौकरी करना चाहती हैं
जोधपुर जिले के पीपाड़ तहसील के सिलारी गांव में साल 1999 में जन्मी छोटा देवी की शादी साल 2013 में खेजड़ला के महेन्द्र सियाग के साथ हुई थी. उस समय छोटा नौवीं कक्षा में पढ़ती थी. साल 2016 में जबरन उसका गौना भी कर दिया गया, लेकिन छोटा केवल एक दिन ससुराल में रहकर वापस अपने पीहर लौट आई. उसका कहना है कि उसका पति नशेड़ी है. ऐसे में उसके साथ पूरा जीवन बिताना बेहद मुश्किल है. इसके अलावा वह पढ़ाई पूरी कर पुलिस में नौकरी करना चाहती है.
लड़कियां बाल विवाह का विरोध करें
बाल विवाह निरस्त होने से खुश छोटा ने कहा, मैं सभी लड़कियों से अपील करती हूं कि वे इस प्रथा का विरोध करें. वे अपने जीवन के लिए जो सपने देख रखे हैं उन्हें बाल विवाह की बेड़ियों में टूटने न दे. छोटा ने बताया कि उसे बाल विवाह निरस्त करने की कहीं से जानकारी मिली, ऐसे में उसने कुछ लोगों के सहयोग से केस दायर किया.
छोटा ने बताया कि कोर्ट में केस दायर करने के बाद उसे ससुराल पक्ष से रोजाना धमकियां मिलने लगीं. धमकियों से परेशान घरवालों ने भी उस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि इस दौरान उसे न्यायमित्र राजेन्द्र कुमार सोनी का साथ मिला. उन्होंने उसकी हिम्मत बंधाई.
पढ़ें :- बाल विवाह के बाद दिया बच्चे को जन्म, पति पर लगा पॉक्सो एक्ट
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता रूपमति देवड़ा ने भी छोटा का साथ दिया और अब अपने संस्थान में ही छोटा देवी को जॉब ऑफर किया है. पारिवारिक न्यायालय में ससुराल पक्ष की तरफ से छोटा को बालिग बताने का भरसक प्रयास किया गया. साल 2013 में बाल विवाह होने के कारण किसी प्रकार की फोटोग्राफी भी नहीं की गई. आखिरकार पीठासीन अधिकारी रूपचंद सुथार ने साल 2013 में विवाह के समय छोटा को नाबालिग मानते हुए उसके विवाह को शून्य यानी कैंसिल घोषित कर दिया.
लड़कियों को अपने सपने पूरे करने का पूरा हक है
छोटा ने बाल विवाह से पीड़ित सभी लड़कियों से अपील की है कि वे इस प्रथा के खिलाफ खुलकर सामने आएं. उन्हें अपने सपने पूरे करने का पूरा हक है. बाल विवाह की बेड़ियों में जकड़कर अपने सपनों को टूटने ना दें. छोटा ने बताया कि विवाह के समय उसकी उम्र महज 14 वर्ष की थी. बाल विवाह निरस्त करवाने के लिए कोर्ट में वाद दायर करने पर मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. ससुराल पक्ष की धमकियों और परिजनों के साथ छोड़ देने के बावजूद मैं अडिग रही और आखिरकार मुझे सफलता मिली.