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Elephant Terror in Jharkhand: वाह रे झारखंड! एक हाथी के सामने नतमस्तक हुआ सिस्टम, आखिरकार दिया गया ट्रेंकुलाइज करने का आदेश

झारखंड इन दिनों हाथी के आतंक से परेशान है. परेशानी इस कदर बढ़ गई है कि हाथी को ट्रेंकुलाइज करने का आदेश दिया गया है. जिसके लिए बिहार से दवाई मंगाई जा रही है. इस हाथी की वजह से राज्य के तीन जिलों में धारा 144 लगानी पड़ी है. 14 लोगों की मौत भी हो चुकी है.

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Published : Feb 23, 2023, 8:01 PM IST

Updated : Feb 24, 2023, 8:33 AM IST

रांची: झारखंड में एक जंगली हाथी ने उत्पात मचा रखा है. दो सप्ताह के भीतर 14 लोगों को कुचल कर मार चुका है. ऐसा नहीं है कि इस राज्य में यह पहली घटना है. फर्क बस इतना है कि झारखंड में आज तक 14 दिन के भीतर इतने लोगों की जान कभी नहीं गई थी. इस घटना ने वन विभाग के साथ-साथ पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है. हाथी को बस इधर से उधर खदेड़ा जा रहा है. वन विभाग की कोशिश है कि उसे उसके झुंड से मिला दिया जाए. लेकिन घने जंगल में हाथियों के झुंड को तलाशना घास में सूई खोजने के बराबर है. एहतियात के तौर पर प्रशासन ने झारखंड के तीन जिलों रांची, रामगढ़ और लोहरदगा के प्रभावित इलाकों में धारा 144 लागू कर दी है. उधर, धनबाद जिले में गुरुवार को 40 हाथियों के झुंड के पहुंचने के बाद धनबाद जिला प्रशासन भी अलर्ट मोड में है. लिहाजा खतरा बरकरार है. चुनौतियां असीम हैं लेकिन संसाधन के मामले में वन विभाग शून्य की मुद्रा में है.

ये भी पढ़ेंः Elephant Terror in Jharkhand: झारखंड के पांच जिलों में गजराज का आतंक, 14 लोगों की ले चुका है जान, रांची के इटकी में निषेधाज्ञा लागू

ट्रेंकुलाइज करने के आदेशः चीफ वार्डन ने तबाही मचा रहे हाथी को ट्रेंकुलाइज करने के आदेश जारी कर दिए हैं. झारखंड के पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ शशिकर सामंता ने इस बाबत जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि सरकार ने पांच सदस्यीय टीम का गठन किया था. जिसने तमाम परिस्थितियों को देखते हुए हाथी को ट्रेंकुलाइज करने का अनुमोदन किया. उन्होंने यह भी कहा कि पशुपालन विभाग में कार्यरत एक डॉक्टर हाथी को ट्रेंकुलाइज करेंगे. ट्रेंकुलाइज करने के लिए दवाई बिहार से मंगाई गई है.

सैंकड़ों लोग गंवा चुके हैं जान: केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 से 2022 के बीच झारखंड में 462 लोग हाथियों की वजह से जान गंवा चुके हैं. हाथियों के आतंक की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. पिछले साल रिकॉर्ड 133 लोगों की जान गई थी. हाथी की वजह से सबसे ज्यादा ओडिशा में पांच वर्षों में 499 लोगों ने जान गंवाई हैं. दूसरे स्थान पर झारखंड है. इसके बाद असम में 385 और पश्चिम बंगाल में 358 लोगों ने पांच साल में जान गंवाई है. चिंता की बात है कि झारखंड में हाथियों के हमले की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है. आश्चर्य इस बात को लेकर भी है कि पिछले पांच वर्षों में झारखंड में जंगल क्षेत्र बढ़ा है फिर भी हाथी गांवों में आ रहे हैं.

ट्रेंकुलाइज एक्सपर्ट तक नहीं: जिस राज्य की पहचान जंगल की वजह से होती हो, जहां का राजकीय पशु हाथी हो, उसी राज्य में बेलगाम हो चुके हाथी को कंट्रोल में करने का कोई मुकम्मल सिस्टम नहीं है. विभागीय सूत्रों के मुताबिक ट्रेंकुलाइज करने वाले एक्सपर्ट नहीं हैं. वन विभाग के पास वेटनरी डॉक्टरों का अपने पैनल नहीं है. खास बात है कि इस हाथी को अगर ट्रेंकुलाइज करने की जरूरत होगी तो ऐसा कोई एक्सपर्ट नहीं है जो 25 मीटर के फासले से डार्ट दाग सके.

आपको जानकर हैरानी होगी पिछले साल जुलाई में कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के छह पशु चिकित्सकों और दो सहायक प्राध्यापकों को वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड की तरफ से भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून में Integrated Wildlife Health Management Programme के तहत 20 दिन का प्रशिक्षण दिया गया था. प्रशिक्षण लेने वालों में डॉ राम प्रवेश राम, डॉ अनसार अहमद, डॉ अखिलेश मुर्मू, डॉ राकेश जोजो, डॉ मयूर कुमार, डॉ बबलू सुढ़ी और डॉ सिंहरे सलीब कुल्लू के नाम शामिल हैं. इसमें एक व्यक्ति पर करीब चार लाख रुपए खर्च हुए थे. इसका मकसद था कि वन विभाग को जरूरत पड़ने पर ये लोग रिसोर्स पर्सन की तरह काम करेंगे. लेकिन यहां तो जोखिम वाली बात है. इसलिए कोई आगे आने को तैयार नहीं है.

न बेड़ी है न महावत: हाथी को ट्रेंकुलाइज कर लिया जाता है तो उसे एलीफेंट कंट्रोल कराल में डेढ़ से दो माह तक ट्रेंड महावत की देखरेख में रखना पड़ता है. लेकिन आपको हैरानी होगी कि जंगल और वन्य जीवों के लिए पहचाने जाने वाले राज्य में ऐसे हाथियों को बांधने के लिए बेड़ी तक नहीं है. पड़ोसी राज्य बिहार के सिवान में कई परिवार परंपरागत रूप से महावत का काम करते आ रहे हैं. कर्नाटक और गुवाहाटी में भी कई परिवारों का यह खानदानी पेशा है. उनकी सेवा कई दूसरे राज्य ले रहे हैं. लेकिन झारखंड में सब कुछ भगवान भरोसे है. अगर तत्काल बेड़ी की जरूरत पड़ी तो कोलकाता या विशाखापत्तनम से मंगवानी पड़ेगी. कर्नाटक और तमिलनाडु में भी यह सुविधा उपलब्ध है.

वन विभाग के पास नहीं हैं शूटर: जिस राज्य में जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है, उस राज्य के वन विभाग के पास एक ट्रेंड शूटर नहीं है. पिछले दिनों एक तेंदुए ने गढ़वा में उत्पात मचाया तो हैदराबाद से शूटर नवाब सफत अली को आग्रह के साथ बुलाना पड़ा. साल 2017 में बेलगाम हाथी को मारने के लिए भी नवाब शफत को बुलाना पड़ा था. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस पड़ोसी राज्य बिहार में जंगल न के बराबर है, वहां के वाइल्ड लाइफ बोर्ड में बतौर एक्सपर्ट नवाब शफत अली को रखा गया है. जबकि झारखंड के बोर्ड में जमशेदपुर जू के बटरफ्लाई एक्सपर्ट को शामिल किया गया है.

मुख्यमंत्री की किरकिरी: ऐसा नहीं है कि विभाग के पास काबिल अफसरों की कमी है. अफसर खतरा मोल लेने में कभी पीछे नहीं रहे हैं. लेकिन उनको नजरअंदाज किया जा रहा है. अहम बात है कि वन विभाग में ट्रांसपेरेंसी की कमी की वजह से आम लोग खासकर आदिवासी समाज के लोग जान गंवा रहे हैं. इसकी वजह से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की किरकिरी हो रही है.

2017 में हाथी को मारने का जारी हुआ था आदेश: साल 2017 में भी इसी तरह एक हाथी ने उत्पात मचाया था. बिहार के भागलपुर में तीन सप्ताह के भीतर चार लोगों को कुचलकर मार चुका था. इसके बाद झारखंड के साहिबगंज में अगस्त 2017 तक 11 लोगों की जान ले चुका था. यानी उस हाथी ने पांच माह में 15 लोगों की जान ली थी. जान गंवाने वाले ज्यादातर आदिम जनजाति पहाड़िया समाज के लोग थे. कई माह के इंतजार के बाद हाथी को गोली मारने का आदेश जारी हुआ था. उसको मार गिराने के लिए हैदराबाद से शूटर नवाब शफत अली आए थे. उन्होंने अपनी पुस्तक में इस ऑपरेशन का जिक्र किया था. लेकिन यहां तो मामला बिल्कुल अलग है. सिस्टम लाचार है. इनिशिएटिव लेने वालों की संख्या नहीं के बराबर है. अब सवाल है कि इस समस्या का फाइनल हल क्या होना चाहिए. क्यों नहीं लिया जा रहा है बोल्ड डिसीजन.

रांची: झारखंड में एक जंगली हाथी ने उत्पात मचा रखा है. दो सप्ताह के भीतर 14 लोगों को कुचल कर मार चुका है. ऐसा नहीं है कि इस राज्य में यह पहली घटना है. फर्क बस इतना है कि झारखंड में आज तक 14 दिन के भीतर इतने लोगों की जान कभी नहीं गई थी. इस घटना ने वन विभाग के साथ-साथ पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है. हाथी को बस इधर से उधर खदेड़ा जा रहा है. वन विभाग की कोशिश है कि उसे उसके झुंड से मिला दिया जाए. लेकिन घने जंगल में हाथियों के झुंड को तलाशना घास में सूई खोजने के बराबर है. एहतियात के तौर पर प्रशासन ने झारखंड के तीन जिलों रांची, रामगढ़ और लोहरदगा के प्रभावित इलाकों में धारा 144 लागू कर दी है. उधर, धनबाद जिले में गुरुवार को 40 हाथियों के झुंड के पहुंचने के बाद धनबाद जिला प्रशासन भी अलर्ट मोड में है. लिहाजा खतरा बरकरार है. चुनौतियां असीम हैं लेकिन संसाधन के मामले में वन विभाग शून्य की मुद्रा में है.

ये भी पढ़ेंः Elephant Terror in Jharkhand: झारखंड के पांच जिलों में गजराज का आतंक, 14 लोगों की ले चुका है जान, रांची के इटकी में निषेधाज्ञा लागू

ट्रेंकुलाइज करने के आदेशः चीफ वार्डन ने तबाही मचा रहे हाथी को ट्रेंकुलाइज करने के आदेश जारी कर दिए हैं. झारखंड के पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ शशिकर सामंता ने इस बाबत जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि सरकार ने पांच सदस्यीय टीम का गठन किया था. जिसने तमाम परिस्थितियों को देखते हुए हाथी को ट्रेंकुलाइज करने का अनुमोदन किया. उन्होंने यह भी कहा कि पशुपालन विभाग में कार्यरत एक डॉक्टर हाथी को ट्रेंकुलाइज करेंगे. ट्रेंकुलाइज करने के लिए दवाई बिहार से मंगाई गई है.

सैंकड़ों लोग गंवा चुके हैं जान: केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 से 2022 के बीच झारखंड में 462 लोग हाथियों की वजह से जान गंवा चुके हैं. हाथियों के आतंक की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. पिछले साल रिकॉर्ड 133 लोगों की जान गई थी. हाथी की वजह से सबसे ज्यादा ओडिशा में पांच वर्षों में 499 लोगों ने जान गंवाई हैं. दूसरे स्थान पर झारखंड है. इसके बाद असम में 385 और पश्चिम बंगाल में 358 लोगों ने पांच साल में जान गंवाई है. चिंता की बात है कि झारखंड में हाथियों के हमले की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है. आश्चर्य इस बात को लेकर भी है कि पिछले पांच वर्षों में झारखंड में जंगल क्षेत्र बढ़ा है फिर भी हाथी गांवों में आ रहे हैं.

ट्रेंकुलाइज एक्सपर्ट तक नहीं: जिस राज्य की पहचान जंगल की वजह से होती हो, जहां का राजकीय पशु हाथी हो, उसी राज्य में बेलगाम हो चुके हाथी को कंट्रोल में करने का कोई मुकम्मल सिस्टम नहीं है. विभागीय सूत्रों के मुताबिक ट्रेंकुलाइज करने वाले एक्सपर्ट नहीं हैं. वन विभाग के पास वेटनरी डॉक्टरों का अपने पैनल नहीं है. खास बात है कि इस हाथी को अगर ट्रेंकुलाइज करने की जरूरत होगी तो ऐसा कोई एक्सपर्ट नहीं है जो 25 मीटर के फासले से डार्ट दाग सके.

आपको जानकर हैरानी होगी पिछले साल जुलाई में कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के छह पशु चिकित्सकों और दो सहायक प्राध्यापकों को वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, झारखंड की तरफ से भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून में Integrated Wildlife Health Management Programme के तहत 20 दिन का प्रशिक्षण दिया गया था. प्रशिक्षण लेने वालों में डॉ राम प्रवेश राम, डॉ अनसार अहमद, डॉ अखिलेश मुर्मू, डॉ राकेश जोजो, डॉ मयूर कुमार, डॉ बबलू सुढ़ी और डॉ सिंहरे सलीब कुल्लू के नाम शामिल हैं. इसमें एक व्यक्ति पर करीब चार लाख रुपए खर्च हुए थे. इसका मकसद था कि वन विभाग को जरूरत पड़ने पर ये लोग रिसोर्स पर्सन की तरह काम करेंगे. लेकिन यहां तो जोखिम वाली बात है. इसलिए कोई आगे आने को तैयार नहीं है.

न बेड़ी है न महावत: हाथी को ट्रेंकुलाइज कर लिया जाता है तो उसे एलीफेंट कंट्रोल कराल में डेढ़ से दो माह तक ट्रेंड महावत की देखरेख में रखना पड़ता है. लेकिन आपको हैरानी होगी कि जंगल और वन्य जीवों के लिए पहचाने जाने वाले राज्य में ऐसे हाथियों को बांधने के लिए बेड़ी तक नहीं है. पड़ोसी राज्य बिहार के सिवान में कई परिवार परंपरागत रूप से महावत का काम करते आ रहे हैं. कर्नाटक और गुवाहाटी में भी कई परिवारों का यह खानदानी पेशा है. उनकी सेवा कई दूसरे राज्य ले रहे हैं. लेकिन झारखंड में सब कुछ भगवान भरोसे है. अगर तत्काल बेड़ी की जरूरत पड़ी तो कोलकाता या विशाखापत्तनम से मंगवानी पड़ेगी. कर्नाटक और तमिलनाडु में भी यह सुविधा उपलब्ध है.

वन विभाग के पास नहीं हैं शूटर: जिस राज्य में जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है, उस राज्य के वन विभाग के पास एक ट्रेंड शूटर नहीं है. पिछले दिनों एक तेंदुए ने गढ़वा में उत्पात मचाया तो हैदराबाद से शूटर नवाब सफत अली को आग्रह के साथ बुलाना पड़ा. साल 2017 में बेलगाम हाथी को मारने के लिए भी नवाब शफत को बुलाना पड़ा था. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस पड़ोसी राज्य बिहार में जंगल न के बराबर है, वहां के वाइल्ड लाइफ बोर्ड में बतौर एक्सपर्ट नवाब शफत अली को रखा गया है. जबकि झारखंड के बोर्ड में जमशेदपुर जू के बटरफ्लाई एक्सपर्ट को शामिल किया गया है.

मुख्यमंत्री की किरकिरी: ऐसा नहीं है कि विभाग के पास काबिल अफसरों की कमी है. अफसर खतरा मोल लेने में कभी पीछे नहीं रहे हैं. लेकिन उनको नजरअंदाज किया जा रहा है. अहम बात है कि वन विभाग में ट्रांसपेरेंसी की कमी की वजह से आम लोग खासकर आदिवासी समाज के लोग जान गंवा रहे हैं. इसकी वजह से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की किरकिरी हो रही है.

2017 में हाथी को मारने का जारी हुआ था आदेश: साल 2017 में भी इसी तरह एक हाथी ने उत्पात मचाया था. बिहार के भागलपुर में तीन सप्ताह के भीतर चार लोगों को कुचलकर मार चुका था. इसके बाद झारखंड के साहिबगंज में अगस्त 2017 तक 11 लोगों की जान ले चुका था. यानी उस हाथी ने पांच माह में 15 लोगों की जान ली थी. जान गंवाने वाले ज्यादातर आदिम जनजाति पहाड़िया समाज के लोग थे. कई माह के इंतजार के बाद हाथी को गोली मारने का आदेश जारी हुआ था. उसको मार गिराने के लिए हैदराबाद से शूटर नवाब शफत अली आए थे. उन्होंने अपनी पुस्तक में इस ऑपरेशन का जिक्र किया था. लेकिन यहां तो मामला बिल्कुल अलग है. सिस्टम लाचार है. इनिशिएटिव लेने वालों की संख्या नहीं के बराबर है. अब सवाल है कि इस समस्या का फाइनल हल क्या होना चाहिए. क्यों नहीं लिया जा रहा है बोल्ड डिसीजन.

Last Updated : Feb 24, 2023, 8:33 AM IST
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