बेंगलुरु: कर्नाटक के मांड्या जिले में एक शिक्षक के ग्रेच्युटी संबंधी मामले में हाईकोर्ट ने शिक्षक के पक्ष में फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि ग्रेच्युटी कॉन्ट्रैक्ट और परमानेंट दोनों सेवाओं में लागू होता है. ग्रेच्युटी एक्ट के मुताबिक जो लोग किसी भी संस्थान में काम करते हैं, उन्हें स्टाफ कहा जाता है.
मांड्या जिले के नागमंगला तालुक के सेवानिवृत्त सरकारी स्कूल शिक्षक बसवे गौड़ा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति एम. नागाप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश दिया. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि अगर कर्मचारी की सेवा स्थायी होने के एक दिन पहले वह कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर काम कर रहा है, तो सरकार को उस अवधि के लिए भी ग्रेच्युटी का भुगतान करना चाहिए. ग्रेच्युटी एक्ट में कॉन्ट्रैक्ट और परमानेंट सर्विस जैसी कोई चीज नहीं है.
ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के अनुसार स्थायी सरकारी कर्मचारियों और अनुबंध कर्मचारियों के बीच ग्रेच्युटी के भुगतान में कोई अंतर नहीं है. इसलिए आवेदक जो 75 वर्षीय सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी है, उन्हें चार सप्ताह में बकाया ग्रेच्युटी राशि का भुगतान किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में माना है कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के प्रावधान हमेशा नियुक्ति और सेवा शर्तों के प्रावधानों से असंगत होते हैं.
इसलिए कोर्ट ने कहा कि सरकार को ग्रेच्युटी देनी होगी. आवेदक को चार सप्ताह के भीतर 50,000 रुपये की मुकदमेबाजी लागत सहित कुल 2.44 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए. देरी होने पर सरकार को सूचित कर प्रतिदिन एक हजार रुपये अतिरिक्त भुगतान करने का आदेश दिया गया है.
क्या है मामला?: याचिकाकर्ता दैनिक अनुबंध के आधार पर मांड्या जिले के जी.मल्लीगेरे सरकारी हाई स्कूल में ग्रेड डी कर्मचारी के रूप में कार्यरत था. सरकार ने 1990 में उनकी सेवा नियमित कर उन्हें शिक्षक का पद दिया था और 2013 में वे सेवा से सेवानिवृत्त हो गए. इस बीच सरकार ने उनकी सेवा की तारीख से 1990 से 2013 तक की अवधि के लिए केवल 1.92 लाख रुपये ग्रेच्युटी का भुगतान किया था और 19 साल तक दैनिक अनुबंध के आधार पर काम करने के लिए ग्रेच्युटी का भुगतान करने से इनकार कर दिया था. इस पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ता ने सीएजी (CAG) से शिकायत की. सीएजी (CAG) ने 2015 में उस अवधि सहित कुल 2.44 लाख रुपये का ग्रेच्युटी भुगतान का आदेश दिया. हालांकि जब सरकार द्वारा भुगतान नहीं किया गया तो उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.