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ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के लिए जल्द ही तकनीक हस्तांतरित करेगा इसरो - कोरोना वायरस

कुछ दिन पहले, इसरो ने वीएसएससी द्वारा विकसित पोर्टेबल मेडिकल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने के अपने निर्णय की घोषणा की थी.

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Published : May 23, 2021, 7:31 PM IST

चेन्नई : भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा जल्द ही उद्योगों को लगभग 60,000 रुपये की लागत से विकसित श्वास नामक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बनाने की तकनीक हस्तांतरित करेगा. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी.

वीएसएससी के अधिकारियों ने शुक्रवार को इच्छुक कंपनियों की एक वर्चुअल बैठक की और श्वास और इसकी प्रणालियों के बारे में बताया. वीएसएससी के निदेशक एस. सोमनाथ ने बताया, यह पहले दौर की बैठक थी और इसमें लगभग 50 उद्योगों ने भाग लिया.

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मैंने उनसे बातचीत की. मैंने और मेरी टीम ने उनके सवालों का जवाब दिया. सोमनाथ ने कहा, हम उनमें से प्रत्येक के साथ एक समझौता कर रहे हैं, जो तकनीकी क्षमता के मानदंडों को पूरा कर रहे हैं. प्रौद्योगिकी साझाकरण व हस्तांतरण अगले दो दिनों में होगा. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण मुफ्त होगा.

उनके अनुसार, चिकित्सा उपकरण, अंतरिक्ष उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स और उत्पाद निर्माण कंपनियों को अभी चुना गया है और उनकी साख के आधार पर और भी बहुत कुछ हो सकता है.

सोमनाथ ने कहा कि वीएसएससी ने अपने प्रोटोटाइप के निर्माण के लिए लगभग 60,000 रुपये खर्च किए हैं.

सोमनाथ ने कहा, यदि उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है, तो लागत 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है. सभी कंपोनेंट्स (घटक) वर्तमान में भारत में उपलब्ध हैं. कुछ वस्तुओं का आयात भारतीय कंपनियों द्वारा किया जाता है, लेकिन उन्हें यहां भी बनाया जा सकता है.

कुछ दिन पहले, इसरो ने वीएसएससी द्वारा विकसित पोर्टेबल मेडिकल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने के अपने निर्णय की घोषणा की थी.

श्वास नामक चिकित्सा ऑक्सीजन कंसंट्रेटर सांस की बीमारी वाले रोगियों या जो ऑक्सीजन थेरेपी पर हैं, उनका समर्थन करने के लिए हवा की तुलना में ऑक्सीजन का एक समृद्ध स्तर (95 प्रतिशत से अधिक) प्रदान कर सकता है.

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इसरो ने कहा कि यह उपकरण प्रेसर स्विंग एडसॉर्बशन (पीएसए) के माध्यम से परिवेशी वायु से नाइट्रोजन गैस को चुनिंदा रूप से अलग करके ऑक्सीजन गैस की मात्रा को बढ़ाता है.

श्वास एक बार में दो मरीजों के लिए पर्याप्त 10 लीटर प्रति मिनट (एलपीएम) पर लगातार समृद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में सक्षम है.

(आईएएनएस)

चेन्नई : भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा जल्द ही उद्योगों को लगभग 60,000 रुपये की लागत से विकसित श्वास नामक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बनाने की तकनीक हस्तांतरित करेगा. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी.

वीएसएससी के अधिकारियों ने शुक्रवार को इच्छुक कंपनियों की एक वर्चुअल बैठक की और श्वास और इसकी प्रणालियों के बारे में बताया. वीएसएससी के निदेशक एस. सोमनाथ ने बताया, यह पहले दौर की बैठक थी और इसमें लगभग 50 उद्योगों ने भाग लिया.

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मैंने उनसे बातचीत की. मैंने और मेरी टीम ने उनके सवालों का जवाब दिया. सोमनाथ ने कहा, हम उनमें से प्रत्येक के साथ एक समझौता कर रहे हैं, जो तकनीकी क्षमता के मानदंडों को पूरा कर रहे हैं. प्रौद्योगिकी साझाकरण व हस्तांतरण अगले दो दिनों में होगा. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण मुफ्त होगा.

उनके अनुसार, चिकित्सा उपकरण, अंतरिक्ष उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स और उत्पाद निर्माण कंपनियों को अभी चुना गया है और उनकी साख के आधार पर और भी बहुत कुछ हो सकता है.

सोमनाथ ने कहा कि वीएसएससी ने अपने प्रोटोटाइप के निर्माण के लिए लगभग 60,000 रुपये खर्च किए हैं.

सोमनाथ ने कहा, यदि उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है, तो लागत 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है. सभी कंपोनेंट्स (घटक) वर्तमान में भारत में उपलब्ध हैं. कुछ वस्तुओं का आयात भारतीय कंपनियों द्वारा किया जाता है, लेकिन उन्हें यहां भी बनाया जा सकता है.

कुछ दिन पहले, इसरो ने वीएसएससी द्वारा विकसित पोर्टेबल मेडिकल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने के अपने निर्णय की घोषणा की थी.

श्वास नामक चिकित्सा ऑक्सीजन कंसंट्रेटर सांस की बीमारी वाले रोगियों या जो ऑक्सीजन थेरेपी पर हैं, उनका समर्थन करने के लिए हवा की तुलना में ऑक्सीजन का एक समृद्ध स्तर (95 प्रतिशत से अधिक) प्रदान कर सकता है.

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इसरो ने कहा कि यह उपकरण प्रेसर स्विंग एडसॉर्बशन (पीएसए) के माध्यम से परिवेशी वायु से नाइट्रोजन गैस को चुनिंदा रूप से अलग करके ऑक्सीजन गैस की मात्रा को बढ़ाता है.

श्वास एक बार में दो मरीजों के लिए पर्याप्त 10 लीटर प्रति मिनट (एलपीएम) पर लगातार समृद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में सक्षम है.

(आईएएनएस)

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