हैदराबाद : उत्तर प्रदेश में आचार संहिता के जारी होने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी में एकाएक 'फूट' पड़ने की बात सामने आई. इसमें मुख्य वजह इस बार टिकट के काटे जाने की आशंका बताई गई.
हालांकि राजनीतिक पंडित इसे केवल एक इसी तथ्य से जोड़कर नहीं देख रहे हैं. कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि भाजपा के अंदर यह 'उठापटक' टिकट के अलावा योगी को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर चुनौती देने के लिए भी की जा रही है.
बताया जाता है कि योगी के आसपास के ही कुछ बड़े नेता इस विरोध को हवा भी दे रहे हैं ताकि योगी के नंबर पार्टी आलाकमान की नजर में कम किए जा सकें. साथ ही अगले मुख्यमंत्री के दौर पर 'इन' नेताओं की दावेदारी मजबूत हो जाए.
भाजपा छोड़ने की बात कही पर सपा ज्वाइन नहीं किया
आंतरिक साजिश की बात इस बात को लेकर भी स्पष्ट होती है कि स्वामी प्रसाद जैसे नेता ने भाजपा को छोड़ने की घोषणा तो की लेकिन उन्होंने सपा को ज्वाइन नहीं किया. स्वामी प्रसाद यह भी बयान देते नजर आए कि अभी तक उन्हें मनाने के लिए भाजपा के किसी वरिष्ठ नेता ने फोन नहीं किया.
वहीं, मंगलवार देर रात को ही स्वामी प्रसाद की बेटी संघमित्रा ने सार्वजनिक बयान जारी कर इसे गलतफहमी बता दिया. स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी और बदायूं से बीजेपी सांसद संघमित्रा ने कहा कि उनके पिता किसी पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं.
वह आगामी दो दिनों में अपनी रणनीति के बारे में सभी को जानाकारी देंगे. उन्होंने साफ कहा है कि उनके पिता ने किसी भी पार्टी में शामिल होने की सहमति नहीं दी है.
उधर, इस उठापटक के बीच स्वामी प्रसाद मौर्य के करीब 10 अन्य समर्थक विधायक जिन्होंने भाजपा छोड़कर सपा ज्वाइन करने की बात कही थी, ने भी धीरे से अपने सुर बदलने शुरू कर दिए. फिलहाल सभी को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी ज्वाइन की है या नहीं.
केवल टिकट का नहीं, राजनीतिक नंबरिंग का खेल
पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी में जारी वर्तमान उठापटक यह बताने की कोशिश है कि पार्टी में योगी की पकड़ ढीली हो गई है. उन्हें पता ही नहीं होता कि पार्टी का कौन सा मंत्री क्या सोच रहा है, क्या करने वाला है और अधिकतर लोग उनसे नाराज हैं.
वहीं, इस घटनाक्रम के बीच पार्टी के ही कुछ आला नेता सामने आए और उन्होंने डैमेज कंट्रोल के नाम पर पार्टी आलाकमान को यह दिखाना शुरू कर दिया कि पार्टी में उनका रसूख योगी आदित्यनाथ से भी ज्यादा है.
यह एक ऐसी बात है जो स्पष्ट करती है भारतीय जनता पार्टी में परिस्थितियां योगी आदित्यनाथ के पक्ष में नहीं हैं. उन्हें आगामी चुनाव में विरोधी दलों से ही नहीं 'अपनों' से भी दो-दो हाथ करना पड़ेगा.
भाजपा नेता खुलेआम 'शर्माजी' को बता रहे अगला मुख्यंमत्री
योगी की छवि को आलाकमान के नजरों में डैमेज करने का क्रम भारतीय जनता पार्टी में नए साल के शुरू होने के साथ ही जोर पड़ने लगा है. सूत्रों की मानें तो भाजपा शासन में अलग-थलग पड़े श्रीकांत शर्मा, दिनेश शर्मा, एके शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य समेत कई अन्य नेता भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत करने में लगे हैं. भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में इस बात की घोषणा भी सरेआम की जाने लगी है.
दरअसल, पिछले दिनों मऊ से बीजेपी के पूर्व सांसद हरिनारायण राजभर ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए सरेआम कह दिया कि यूपी के अगले मुख्यंत्री शर्माजी ही होंगे. बीजेपी के पूर्व सांसद ने दावा किया है कि पीएम मोदी के करीबी और उत्तर प्रदेश बीजेपी के उपाध्यक्ष ए.के शर्मा भविष्य के मुख्यमंत्री हो सकते हैं. मऊ से बीजेपी पूर्व सांसद हरिनारायण राजभर ने भरी सभा में ये एलान किया. हरिनारायण राजभर का ये वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुआ.
केशव प्रसाद मौर्य की भी बढ़ी सक्रियता
स्वामी प्रसाद मौर्य की उठापटक के बाद जिस तरह केशव प्रसाद मौर्य एकाएक सक्रिय हुए और जिस तरह उन्होंने लगातार पार्टी की छवि के डैमेज कंट्रोल में आगे दिखने की कोशिश की, वह इस बात की पुष्टि करता है कि पार्टी में एक नेता दूसरे नेता से अपना ज्यादा प्रभाव दिखाने की कोशिश में जी जान से जुटा है.
वैसे भी केशव प्रसाद मौर्ट 2017 के चुनावों के बाद भी मुख्यमंत्री पद के लिए लालायित दिखे थे. पार्टी सूत्रों के अनुसार योगी को एकाएक मुख्यमंत्री बना दिए जाने से वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कई महीनों तक नाराज भी दिखाई दिए थे. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बाद के दिनों में उनके संबंध दोबारा प्रगाढ़ होते दिखाई दिए. सूत्र मानते हैं कि अब अंदरखाने मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी 'कोशिशें' एक बार फिर तेज हो गईं हैं.
गौरतलब है कि पिछले दिनों 'अब मथुरा की बारी है' जैसे बयान देकर भले ही उनकी चौतरफा आलोचना हुई हो मगर उन्होंने अपनी ओर चलाए गए तीरों का मुंह विपक्ष की तरफ ही मोड़ दिया.उन्होंने सवाल किया कि क्या अखिलेश नहीं चाहते हैं कि मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर भगवान श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर हो? इससे यह संकेत भी मिल रहा है कि केशव प्रसाद खुद की छवि को दल के ‘फायर ब्रांड हिंदू नेता’ के रूप में स्थापित करने और पार्टी में अपनी पकड़ को मजबूत बनाने में लग गए हैं.
केशव और योगी के बीच चल रही 'अहम' की रस्साकसी
केशव और योगी के बीच 'अहम' की रस्साकसी लगातार चल रही है. कई मौकों पर यह सिद्ध भी हुआ है. इसमें पहली घटना में गोरखपुर सदर से चार बार के बीजेपी विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल एक इंजीनियर का ट्रांसफर कराने के लिए लखनऊ तक चले आए. योगी के विश्वासपात्र और गोरखपुर से सांसद रवि किशन के विरोध के बावजूद इंजीनियर के.के सिंह का ट्रांसफर कराने के बाद उन्होंने केशव प्रसाद मौर्या का धन्यवाद किया.
सरकार के खिलाफ बयानबाजी को लेकर बीजेपी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. लेकिन इसके ठीक बाद राधामोहन दास अग्रवाल के घर जाकर केशव प्रसाद गलबहियां करते देखे गए. उन्होंने मुलाकात के साथ भोजन भी किया और सियासी मैसेज भी दिया. वहीं दूसरी घटना उस समय सामने आई जब सीडीएस जनरल बिपिन रावत के क्रैश हुए हेलिकॉप्टर में मौजूद आगरा के विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान का भी हादसे में देहांत हो गया.
केशव प्रसाद ने शहीद के घर जाकर उनके पिता सुरेंद्र सिंह चौहान को सांत्वना दी. इसके दूसरे दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विंग कमांडर के घर पहुंच पाए. उन्होंने भी परिवार को सांत्वना दी और आर्थिक मदद की घोषणा की. तब पार्टी के लोगों ने ही यह सवाल उठा दिया कि क्या केशव प्रसाद को मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की जानकारी नहीं थी. यदि जानकारी थी तो मुख्यमंत्री से आगे निकलने की उनके अंदर ऐसी कौन सी जल्दी थी.
पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह भी रेस में
मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा में वर्तमान पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह भी सक्रिय रहे हैं. मुख्यमंत्री के लिए 2017 में उनका नाम भी उछला था. हालांकि 2019 में डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय की जगह उन्हें प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया. उन्हें यह पद योगी आदित्यनाथ की बदौलत मिला था क्योंकि तब योगी ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर इसकी स्वीकृति ले ली थी.
हालांकि अब स्वतंत्रदेव सिंह भी भाजपा में अपनी पकड़ बढ़ाने और मुख्यमंत्री के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. पार्टी सूत्रों के अनुसार वे लगातार केंद्रीय नेतृत्व से अपने संबंधों को बेहतर और प्रभावी करने में जुटे हुए हैं. पार्टी सूत्रों का कहना है कि स्वतंत्र देव के योगी अपने विकल्प के रूप में रखे हुए हैं. उनका मानना है कि यदि कभी योगी को हटाने की बात आई तो योगी स्वतंत्र देव का नाम ही आगे करेंगे.
श्रीकांत शर्मा भी रहे हैं मुख्यमंत्री की रेस में
उधर, 2017 में श्रीकांत शर्मा भी मुख्यमंत्री की रेस में आगे रहे हैं. मोदी और अमित शाह की नजदीकी और उनका पार्टी में सक्रिय रहना उन्हें इस बार भी एक आप्शन के रूप में सामने ला रहा है. ऐसे में इस बात के कयास भी लगाए जा रहे हैं कि यदि पार्टी की वर्तमान उठापटक जारी रही तो आखिरकार एके शर्मा और श्रीकांत शर्मा मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे दिखाई देंगे. फिर चाहे सियासी नंबरिंग के खेल में कोई कितना ही आगे क्यों न दिखाई दे. हालांकि पार्टी सूत्रों की राय से अलग इस बात को अभी मानना कठिन होगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा.