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International Women's Day: भारत में गिरती प्रजनन दर चिंता का विषय - पुरुष बांझपन

देश में प्रजनन दर (टीएफआर) तेजी से घटी है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में सामने आया है कि प्रति महिला बच्चों की कुल प्रजनन दर 2019-21 में 2.0 तक पहुंच गई है, जबकि 2015-16 में यह 2.2 थी. इस पर एम्स के डॉक्टरों ने चिंता जताई है.

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Published : Mar 8, 2022, 3:43 PM IST

नई दिल्ली : देश में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घटी है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में ये बात सामने आई है. सर्वे के मुताबिक देश में प्रति महिला बच्चों की कुल प्रजनन दर 2019-21 में 2.0 तक पहुंच गई है, जबकि 2015-16 में यह 2.2 थी. इसका मतलब है कि महिलाएं अपने प्रजनन काल में कम संख्या में बच्चों को जन्म दे रही हैं. देश में कुल प्रजनन दर क्षमता प्रतिस्थापन स्तर तक पहुंच गई है.

प्रतिस्थापन स्तर से जनसंख्या नीचे गिरने लगती है. औसतन प्रति महिला 2.1 बच्चे हैं. इस संख्या से कम प्रजनन दर वाले देश एक निश्चित समय के बाद जनसंख्या की कमी का अनुभव कर सकते हैं. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2019 में वैश्विक प्रजनन दर प्रति महिला 2.4 बच्चे थी.

यह दर 1950 (4.7) की तुलना में लगभग आधी है. अधिक आर्थिक रूप से विकसित देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, अधिकांश यूरोप और दक्षिण कोरिया में कम विकसित या कम आय वाले देशों की तुलना में कम दरें हैं.

एम्स की प्रोफेसर ने जताई चिंता
एम्स में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. नीता सिंह (Department of Obst & Gynae AIIMS Professor Dr Neeta Singh ) का कहना है कि शहरी प्रजनन दर 1.6 के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है जो कि चिंता का विषय है, हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में ये दर 2.0 है. उनका मानना है कि विकासशील राष्ट्र के लिए मृत्यु अनुपात और नई जनसंख्या के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए हमें 2.3 प्रजनन दर की आवश्यकता है. डॉ. सिंह का मानना है कि शहरी क्षेत्रों में देर से विवाह होते हैं जो प्रजनन क्षमता गिरने की मुख्य वजह है.

डॉ. नीता सिंह का कहना है कि आम तौर पर एक महिला की शादी 27-28 की उम्र के बाद होती है, फिर उसे जीवन में बसने के लिए समय चाहिए. फिर बच्चे के लिए कोशिश करती है और एक या दो साल बाद गर्भधारण नहीं होने पर डॉक्टर के पास जाती है. प्रजनन की चरम अवधि 20 से 25 वर्ष है. उनका तर्क है कि इस अवधि के बाद, प्रजनन क्षमता 30 साल तक तो रहती है और उसके बाद घटने लगती है. 35 साल के बाद प्रजनन क्षमता तेजी से घटती है.

बांझपन एक बीमारी है. 12 महीने या उससे अधिक समय तक नियमित असुरक्षित संभोग के बाद भी ​​​​गर्भावस्था को प्राप्त न करना इसमें आता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक बांझपन दो प्रकार का होता है - प्राथमिक और माध्यमिक. प्राथमिक बांझपन का अर्थ है कि कभी गर्भधारण नहीं किया है. माध्यमिक बांझपन का अर्थ है कि गर्भ तो धारण किया लेकिन एक निश्चित समय के बाद वह नहीं बढ़ा.

डॉ. नीता सिंह का कहना है कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्तर पर अधिकांश जोड़े प्राथमिक बांझपन से पीड़ित हैं. पुरुष में भी 40 साल बाद प्रजनन क्षमता कम होने लगती है. यह सिर्फ एक मिथक है कि पुरुष 60 साल तक पिता बन सकता है. डॉ. सिंह का कहना है कि ज्यादातर दंपत्ति डॉक्टरों के पास तब जाते हैं जब उनकी प्रजनन दर पहले से ही कम होने लगती है.

उनके मुताबिक शोध में पाया गया है कि भारतीय महिलाओं की डिम्बग्रंथि उम्र अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में लगभग 5 साल कम है जो एक प्रमुख चिंता का विषय है. इसका मतलब है कि अमेरिका और यूके की महिला 40 साल की उम्र में बच्चा पैदा कर सकती है तो भारत में यह उम्र केवल 35 वर्ष है. हालांकि, इसके लिए जनसांख्यिकीय स्थिति या जलवायु या नस्ल जिम्मेदार है या नहीं, यह अभी तक पता नहीं चल सका है.

पुरुष बांझपन को लेकर ये कहा
पुरुष बांझपन के बारे में बात करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि बढ़ते तनाव, भोजन में बदलाव, अनिश्चित जीवन शैली, अनियमित कार्यशैली और अन्य कारण से यह तेजी से बढ़ रहा है. भारत में हर दूसरा या तीसरा पुरुष बांझ या उप-जननक्षम है. हम शायद ही किसी पुरुष में 20 मिलियन शुक्राणुओं की संख्या पाते हैं, जो पहले 50 से 100 मिलियन के आसपास हुआ करता था. आज के समय में अगर हम पुरुष में 15 मिलियन स्पर्म काउंट भी पाते हैं, तो इसे ठीक मानते हैं. शुक्राणु मरना पुरुष बांझपन का मुख्य कारण है.

यह पूछे जाने पर कि क्या आईवीएफ बांझपन का समाधान है, उन्होंने इसे साफ तौर पर खारिज कर दिया और कहा कि अगर अंडे नहीं बन रहे हैं तो आईवीएफ कैसे काम कर सकता है. डॉ. सिंह की राय में उपजाऊ अंडे और स्वस्थ शुक्राणु ही आईवीएफ को सफल बना सकते हैं. हालांकि, दिल्ली स्थित आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. अर्चना धवन बजाज ने कहा कि आईवीएफ के लिए सफलता दर लगभग 45 प्रतिशत ही है. बांझपन के कारणों के बारे में बात करते हुए डॉ. बजाज ने कहा कि लगभग 40 प्रतिशत पुरुष, 40 प्रतिशत महिला और 20 प्रतिशत दोनों जोड़ों में बांझपन के लिए जिम्मेदार हैं.

पढ़ें- लिंगानुपात में सुधार, पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की आबादी : आर्थिक सर्वेक्षण

(IANS)

नई दिल्ली : देश में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घटी है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में ये बात सामने आई है. सर्वे के मुताबिक देश में प्रति महिला बच्चों की कुल प्रजनन दर 2019-21 में 2.0 तक पहुंच गई है, जबकि 2015-16 में यह 2.2 थी. इसका मतलब है कि महिलाएं अपने प्रजनन काल में कम संख्या में बच्चों को जन्म दे रही हैं. देश में कुल प्रजनन दर क्षमता प्रतिस्थापन स्तर तक पहुंच गई है.

प्रतिस्थापन स्तर से जनसंख्या नीचे गिरने लगती है. औसतन प्रति महिला 2.1 बच्चे हैं. इस संख्या से कम प्रजनन दर वाले देश एक निश्चित समय के बाद जनसंख्या की कमी का अनुभव कर सकते हैं. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2019 में वैश्विक प्रजनन दर प्रति महिला 2.4 बच्चे थी.

यह दर 1950 (4.7) की तुलना में लगभग आधी है. अधिक आर्थिक रूप से विकसित देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, अधिकांश यूरोप और दक्षिण कोरिया में कम विकसित या कम आय वाले देशों की तुलना में कम दरें हैं.

एम्स की प्रोफेसर ने जताई चिंता
एम्स में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. नीता सिंह (Department of Obst & Gynae AIIMS Professor Dr Neeta Singh ) का कहना है कि शहरी प्रजनन दर 1.6 के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है जो कि चिंता का विषय है, हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में ये दर 2.0 है. उनका मानना है कि विकासशील राष्ट्र के लिए मृत्यु अनुपात और नई जनसंख्या के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए हमें 2.3 प्रजनन दर की आवश्यकता है. डॉ. सिंह का मानना है कि शहरी क्षेत्रों में देर से विवाह होते हैं जो प्रजनन क्षमता गिरने की मुख्य वजह है.

डॉ. नीता सिंह का कहना है कि आम तौर पर एक महिला की शादी 27-28 की उम्र के बाद होती है, फिर उसे जीवन में बसने के लिए समय चाहिए. फिर बच्चे के लिए कोशिश करती है और एक या दो साल बाद गर्भधारण नहीं होने पर डॉक्टर के पास जाती है. प्रजनन की चरम अवधि 20 से 25 वर्ष है. उनका तर्क है कि इस अवधि के बाद, प्रजनन क्षमता 30 साल तक तो रहती है और उसके बाद घटने लगती है. 35 साल के बाद प्रजनन क्षमता तेजी से घटती है.

बांझपन एक बीमारी है. 12 महीने या उससे अधिक समय तक नियमित असुरक्षित संभोग के बाद भी ​​​​गर्भावस्था को प्राप्त न करना इसमें आता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक बांझपन दो प्रकार का होता है - प्राथमिक और माध्यमिक. प्राथमिक बांझपन का अर्थ है कि कभी गर्भधारण नहीं किया है. माध्यमिक बांझपन का अर्थ है कि गर्भ तो धारण किया लेकिन एक निश्चित समय के बाद वह नहीं बढ़ा.

डॉ. नीता सिंह का कहना है कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्तर पर अधिकांश जोड़े प्राथमिक बांझपन से पीड़ित हैं. पुरुष में भी 40 साल बाद प्रजनन क्षमता कम होने लगती है. यह सिर्फ एक मिथक है कि पुरुष 60 साल तक पिता बन सकता है. डॉ. सिंह का कहना है कि ज्यादातर दंपत्ति डॉक्टरों के पास तब जाते हैं जब उनकी प्रजनन दर पहले से ही कम होने लगती है.

उनके मुताबिक शोध में पाया गया है कि भारतीय महिलाओं की डिम्बग्रंथि उम्र अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में लगभग 5 साल कम है जो एक प्रमुख चिंता का विषय है. इसका मतलब है कि अमेरिका और यूके की महिला 40 साल की उम्र में बच्चा पैदा कर सकती है तो भारत में यह उम्र केवल 35 वर्ष है. हालांकि, इसके लिए जनसांख्यिकीय स्थिति या जलवायु या नस्ल जिम्मेदार है या नहीं, यह अभी तक पता नहीं चल सका है.

पुरुष बांझपन को लेकर ये कहा
पुरुष बांझपन के बारे में बात करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि बढ़ते तनाव, भोजन में बदलाव, अनिश्चित जीवन शैली, अनियमित कार्यशैली और अन्य कारण से यह तेजी से बढ़ रहा है. भारत में हर दूसरा या तीसरा पुरुष बांझ या उप-जननक्षम है. हम शायद ही किसी पुरुष में 20 मिलियन शुक्राणुओं की संख्या पाते हैं, जो पहले 50 से 100 मिलियन के आसपास हुआ करता था. आज के समय में अगर हम पुरुष में 15 मिलियन स्पर्म काउंट भी पाते हैं, तो इसे ठीक मानते हैं. शुक्राणु मरना पुरुष बांझपन का मुख्य कारण है.

यह पूछे जाने पर कि क्या आईवीएफ बांझपन का समाधान है, उन्होंने इसे साफ तौर पर खारिज कर दिया और कहा कि अगर अंडे नहीं बन रहे हैं तो आईवीएफ कैसे काम कर सकता है. डॉ. सिंह की राय में उपजाऊ अंडे और स्वस्थ शुक्राणु ही आईवीएफ को सफल बना सकते हैं. हालांकि, दिल्ली स्थित आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. अर्चना धवन बजाज ने कहा कि आईवीएफ के लिए सफलता दर लगभग 45 प्रतिशत ही है. बांझपन के कारणों के बारे में बात करते हुए डॉ. बजाज ने कहा कि लगभग 40 प्रतिशत पुरुष, 40 प्रतिशत महिला और 20 प्रतिशत दोनों जोड़ों में बांझपन के लिए जिम्मेदार हैं.

पढ़ें- लिंगानुपात में सुधार, पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की आबादी : आर्थिक सर्वेक्षण

(IANS)

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