कुल्लू : विश्व का सबसे बड़ा देव महाकुंभ सात दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव संपन्न हो गया है. रावण की लंका जलाई गई और बुराई का अंत करके अच्छाई पर जीत पाई. दोपहर बाद ढालपुर मैदान से रथ यात्रा लंका बेकर की और प्रस्थान कर गई. उसके बाद जय श्री राम के जय घोष के साथ रथ यात्रा वापिस ढालपुर मैदान पहुंची. वहीं, भगवान रघुनाथ पालकी में सवार होकर वापिस अपने मंदिर पहुंचे.
ढालपुर मैदान सैकड़ों देवी-देवताओं के आगमन से सराबोर रहा और देवताओं के इस महाकुंभ में हजारों लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई. विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ में अनूठी परंपराओं के संगम के साथ कुल्लू दशहरा पर्व विधिवत रूप से संपन्न हो गया और लंका दहन के हजारों लोग गवाह बने. अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के अंतिम दिन सुबह से ही श्रद्धालु भगवान रघुनाथ के दर्शन को पहुंचे. वहीं, कुछ देवी-देवताओं ने वीरवार सुबह ही अपने देवालयों की ओर प्रस्थान कर गए था. दोपहर के समय भगवान रघुनाथ के शिविर में देव परंपरा के अनुसार लंका चढ़ाई से पहले देवी देवताओं का भी पूजन किया गया.
कुल्लू के दशहरे में खास बात यह है कि यहां पर रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता, बल्कि गोबर से रावण, मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतले बनाए जाते हैं और फिर तीर भेदने के बाद आग लगाई जाती है. इससे पहले दिन के समय कुल्लू के राजा सुखपाल में बैठकर ढालपुर के कलाकेंद्र मैदान में पहुंचे और महाराजा के जमलू, पुंडीर देवता नारायण व वीर देवता की दराग और रघुनाथ जी की छड़ व नरसिंह भगवान की घोड़ी भी राजा के साथ कला केंद्र मैदान पहुंची, जहां खड़की जाच का आयोजन हुआ. देवी हिडिंबा के आने के बाद ढालपुर मैदान में रथयात्रा का शुभारंभ किया गया और लंका बेकर में भी पुरातन परंपराओं का निर्वहन किया गया. इस दौरान पुलिस के जवान भी मुस्तैद नजर आए. लंका बेकर में पुरातन परंपराओं का निर्वहन करने के बाद रथ को वापिस मैदान में लाया गया जहां से भगवान रघुनाथ पालकी में सवार होकर वापस अपने मंदिर की ओर प्रस्थान कर गए.
अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व के अंतिम दिन देवी-देवताओं का मिलन देख श्रद्धालुओं की भी आंखें भर आईं. दशहरा उत्सव में देवी-देवता अपनी रिश्तेदारी को भी निभाते हैं और बिछुड़ने की घड़ी को देख सभी भाव विभोर हो गए. उपमंडल बंजार के देवी-देवता वापसी में जगह-जगह रुकेंगे और श्रद्धालुओं को भी अपना आशीर्वाद देंगे. देवी-देवता करीब 5 दिनों के बाद वापिस अपने देवालयों में पहुंचेंगे. सोने चांदी व अन्य आभूषणों से लदे इन देव रथों का श्रद्धालुओं के द्वारा जगह-जगह विशेष रूप से स्वागत भी किया जाएगा.
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गौर रहे कि पिछले 1 सप्ताह से अस्थाई शिविरों में देवी देवता ठहरे हुए थे और साथ में आए देवता के कारकून भी देव परंपराओं को निभाने में जुटे हुए थे. 7 दिनों तक लगातार कारकूनों ने ढालपुर मैदान में तपस्वी की तरह जीवन व्यतीत किया. वहीं, दशहरा उत्सव के समापन के बाद घाटी के देवी-देवता के मंदिरों में एक बार फिर से रौनक आ जाएगी. वहीं, अपने अपने ईष्ट देवी-देवताओं के दर्शनों के लिए भी विशेष रूप से लोग मंदिरों में जुटेंगे और देवता के वापिस आने पर भंडारे का भी आयोजन किया जाएगा.