उत्तर भारत और दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने पर विचार करने का यह सबसे उत्तम समय है. साल-दर-साल पानी की समस्या गंभीर होती जा रही है. खासकर गर्मियों के मौसम में. आज देश की एक तिहाई आबादी सूखे का सामना कर रही है. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, केरल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब और पश्चिम बंगाल बुरी तरह प्रभावित है. एक आम अनुमान के मुताबिक इन 10 राज्यों के 254 जिले सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं. वैज्ञानिकों ने भूजल स्तर के और भी नीचे जाने की पहले ही चेतावनी दे दी है. तेज धूप की वजह से जल को संग्रहित करने वाली बॉडियां सूख रहीं हैं. सिंचाई के लिए पंप का अंधाधुन प्रयोग और पानी को रिचार्ज करने की व्यवस्था की अनदेखी ने कई राज्यों में स्थिति और खराब कर दी है. ग्राउंड वाटर की कमी की वजह से नदियों में पानी का ज्यादा बहाव नहीं हो पा रहा है.
एक अध्ययन में दावा किया गया है कि 2050 तक करीब 79 फीसदी वाटरशेड पानी खो चुके होंगे. ऐसी स्थिति जलीय इको सिस्टम के लिए बहुत ही भयावह होगी. केंद्रीय जल मंत्रालय के रिकॉर्ड के मुताबिक 91 प्रमुख जलाशयों के 157.799 बिलियन क्यूबिक मीटर की कुल क्षमता में से 35.839 बिलियन क्यूबिक मीटर स्टॉक उपलब्ध था. ये आंकड़े 13 अप्रैल तक के हैं. पिछले साल के इसके मुकाबले ये आंकड़े कम हैं. एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि 40 फीसदी कुओं में पानी बहुत कम हो चुका है. अब इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है कि हिमालय के ग्लेशियर से पानी को सूखे क्षेत्र में ले जाने पर विचार किया जाए. इसके लिए नदियों से जोड़ा जाना जरूरी है.
बाढ़ से निपटने के लिए नदियों का आपस में जोड़ा जाना एक प्रभावी कदम होगा. इससे ग्राउंड वाटर भी रिचार्ज हो सकेगा. सूखा ग्रस्त इलाके में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था विकसित हो सकेगी. जल मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने हिमालय क्षेत्र में 14 छोटे इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की थी. इसे आगे बढ़ाया जाना था. दूसरे और तीसरे फेज में 50 इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट पर काम होना था. लेकिन इस पर आगे कुछ काम नहीं हो सका.
विशेषज्ञों ने इंटरलिंकिंग प्रोजेक्ट के सामाजिक और आर्थिक लाभ के बारे में विस्तार से बताया है. यह न सिर्फ बाढ़ पर नियंत्रण लगाने में प्रभावी कदम होगा, बल्कि सिंचाई और पानी को वांछित इलाके तक ले जाने में भी मदद मिलेगी. आंतरिक जल परिवहन में भी इसका फायदा उठाया जा सकेगा.
उत्तर का पानी दक्षिण तक ले जाने की सोच नई नहीं है. 1970 में तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री केएल राव ने सबसे पहले यह विचार दिया था. 19वीं सदी में ब्रिटिश इंजीनियर आर्थर कॉटन ने उत्तर से विंध्याचल के दक्षिण में पानी ले जाने की बात कही थी. उत्तर का इलाका बाढ़ से ग्रसित रहता था और दक्षिण में पानी की समस्या रहती थी. पानी की समस्या से सिर्फ भारत ही नहीं जूझ रहा है, बल्कि दूसरे देश भी ऐसी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भारत समेत करीब 54 देश 2050 तक अगर उचित उपाय नहीं किए, तो उन्हें पानी की गंभीर समस्या से निपटना होगा.
(लेखक- आर पी नैलवाल)