नई दिल्ली: खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमने पहले भी इसी तरह की चीजें होती देखी हैं. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) पीएफआई के सदस्यों और कार्यकर्ताओं की तलाश में पूरे भारत में छापेमारी कर रही है. अधिकारी ने कहा कि इस तरह के तलाशी अभियान का मुख्य उद्देश्य पीएफआई कैडरों और सदस्यों को गिरफ्तार करना है जो अभी तक फरार हैं. ऐसा माना जाता है कि 2001 में केंद्र सरकार द्वारा स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को प्रतिबंधित किए जाने के बाद इसके कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने पीएफआई का गठन गया था.
उन्होंने कहा कि पीएफआई की स्थापना के बाद, संगठन पर सिमी की शाखा होने का आरोप लगाया गया है क्योंकि पीएफआई के कई सह-संस्थापक सिमी नेता थे, जिनमें पीएफआई के उपाध्यक्ष ईएम अब्दुल रहमान शामिल थे, जो 1983 और 1993 के बीच सिमी के महासचिव थे. प्रारंभ में, पीएफआई का प्रभाव केवल केरल में था, लेकिन बाद में इसकी उपस्थिति भारत के विभिन्न राज्यों में देखी गई.
रिपोर्ट के अनुसार, पीएफआई की 23 राज्यों में मौजूदगी है. अधिकारियों ने कहा कि इस बात की पूरी संभावना है कि पीएफआई के सदस्य और कार्यकर्ता एक नया संगठन बनाने के लिए साथ आ सकते हैं. हालांकि, हम पीएफआई मुद्दे से जुड़े हर पहलू पर कड़ी नजर रख रहे हैं.' जम्मू-कश्मीर से ऐसा ही उदाहरण देते हुए, अधिकारी ने कहा कि द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) भी पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की एक भारतीय शाखा है.
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अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियां की नजरों से बचने के लिए पीएफआई का गठन किया गया था. टीआरएफ जिसे पाकिस्तान के समर्थन से बनाया गया था, उसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय निगरानी एजेंसियों की नजरों से बचना था. पीएफआई के खिलाफ चल रहे छापे और तलाशी अभियान के अलावा, भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पीएफआई से जुड़े टेरर फंडिंग एंगल को भी देख रही हैं.
खुफिया रिपोर्ट बताती है कि पीएफआई के सदस्यों ने पहले तुर्की का दौरा किया था, एक ऐसा देश, जहां से भारत में आतंकवाद का समर्थन करने के लिए हवाला चैनलों के माध्यम से पैसा भेजा जा रहा था. अधिकारी ने कहा, 'पीएफआई के सदस्यों ने भारत का दौरा किया. बेशक, हम तुर्की प्राधिकरण और खुफिया एजेंसियों के साथ लगातार संपर्क में हैं ताकि हम मनी लॉन्ड्रिंग रूट का पता लगा सकें.'