हैदराबाद : देश में कोरोना महामारी कहर बरपा रही है. केंद्र और राज्य सरकारें इससे निपटने में फेल होती नजर आ रही हैं. हर दिन देश में ऑक्सीजन की कमी से कोरोना संक्रमित समेत अन्य मरीजों की भी मौत हो रही है. एक देश, समाज और व्यक्ति को रूप में हम कोरोना महामारी को रोकने में कहां चूक गए ?
यह सवाल, भले ही यह अनुत्तरित हो, या कहें कि इस पर पर्दा पड़ा हो, ऐसे समय में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा लगभग ध्वस्त हो चुका है.
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जो लोग कोरोना की पहली लहर के बाद तथाकथित सफलता का जश्न मना रहे थे, वे चिकित्सा पेशे से संबंधित नहीं थे.
इस महामारी के बीच कई देशों में चुनाव भी हुए हैं. कोरोना महामारी के बीच श्रीलंका में देश और दुनिया का पहला चुनाव आयोजित हुआ. श्रीलंका की जनसंख्या लगभग 21 करोड़ है, लेकिन श्रीलंका का यह चुनाव 1.3 बिलियन से अधिक आबादी वाले राष्ट्र (भारत) के लिए प्रेरणा नहीं होनी चाहिए.
कोरोना महामारी के दरम्यान बिहार में पहली बार विधानसभा चुनाव कराए गए. हालांकि, तब स्थितियां आज की तहर विकट नहीं थी, क्योंकि अधिकांश विधानसभा चुनाव प्रचार वर्चुअल माध्यम से किए गए.
बाद के सभी चुनावों में अक्सर मुफ्त कोरोना टीके के वादे किए गए. लेकिन सरकार द्वारा तब उठाया एक कदम अब अनर्थकारी लगता है कि 'वैक्सीन मैत्री' पहल के तहत दूसरे देशों को कोरोना वैक्सीन फ्री में दी गई. जबकि भारत के एक भी हिस्से का टीकाकरण पूरा नहीं हुआ है. इस परोपकार की भारी कीमत देश की आम जनता को चुकानी पड़ रही है.
देश में पिछले कुछ दिनों से तीन लाख से अधिक लोग कोरोना संक्रमित पाए जा रहे हैं. कब्रिस्तान और श्मशान शवों से भरे पड़े हैं.
विकट परिस्थिति में तीन ऐसी चीजें हैं जो हमें इस संकट से बाहर निकाल सकती हैं. मास्क, शारीरिक दूरी (सोशल डिस्टेन्सिंग) और टीकाकरण. हालांकि, इस समय बड़े पैमाने पर लोग मास्क पहनने लगे हैं, लेकिन जहां तक टीकाकरण का सवाल है, इसके लिए विभिन्न क्वाटर्स में युद्धस्तर पर तैयारी करनी होगी. जब तक आबादी के अधिकांश हिस्से का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक यह प्रतीत होता है कि लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.
देश में हर दिन कोरोना वायरस (कोविड-19) से भारी संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं, जो भयावह स्थिति है. विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति आने वाले समय में और भी विकट हो सकती है, क्योंकि कोरोना संक्रमण का ग्राफ अपने सर्वोच्च स्तर (peak) पर नहीं पहुंचा है.
ऐसी गंभीर स्थिति के बावजूद हम उम्मीद करते हैं कि सरकार स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, विशेष रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति का इंतजाम ठीक कर लेगी.
देशभर में श्मशान घाटों पर लंबी कतारें देखने को मिल रही है. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के अलावा दिल्ली में. ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां पर लोगों ने कोरोना संबंधी दिशानिर्देशों का पालन करना बंद कर दिया था. अधिकारी भी शिथिल पड़ गए थे. अब जबकि देश में त्राहि-त्राहि मची हुई तब, इस महत्वपूर्ण मोड़ पर लोगों को आशा होती है कि न्यायपालिका इन चीजों पर संज्ञान लेगी.
यह देखना सुखद रहा कि मद्रास उच्च न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग को कोरोना की दूसरी लहर के लिए 'अकेले' जिम्मेदार ठहराया है. सख्ती दिखाते हुए हाई कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि चुनाव आयोग के अधिकारियों पर हत्या के लिए मामला दर्ज किया जाना चाहिए.
अदालत में जब चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि उनकी ओर से कोविड गाइडलाइन्स का पालन किया गया, वोटिंग डे पर नियमों का पालन किया गया था. आयोग की इस दलील पर अदालत ने सख्त तेवर दिखाए. चुनावी राज्यों में हुई जनसभाओं के संदर्भ में कोर्ट ने सवाल किया कि जब प्रचार हो रहा था, तब क्या चुनाव आयोग दूसरे प्लैनेट पर था ?
वास्तव में एक ऐसे समय में जब कब्रिस्तान और श्मशान शवों से भरे पड़े हैं, तो कोरोना वायरस से जुड़ी सूचनाओं के बजाय चुनावी राज्यों में होने वाली सभाओं के फोटो-वीडियो टीवी चैनलों पर अधिक दिखाए जा रहे हैं.
बड़ी चुनावी रैलियों के लिए यह प्रतियोगिता इससे पहले नहीं देखी गई. पश्चिम बंगाल में आक्रामक प्रचार हो रहा है, और सभी पार्टियां अपना पूरा दमखम लगा रही हैं. यहां सात चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं.
रैलियों में गए राजनेताओं के भाषणों में शायद ही उस जनता को आगाह करने जैसे कोई शब्द थे, जो उन्हें सुनने आए थे. ऐसे में यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के प्रत्येक दूसरे निवासी को पिछले कुछ दिनों में हुए कोरोना जांच में पॉजिटिव पाया गया है.
ऐसे हालात में उत्तराखंड में आयोजित कुंभ मेला-2021 का जिक्र बेमानी लगता है. यहां पर लाखों लोग एक सप्ताह में एकत्रित हुए, लेकिन दलील दी गई कि, खुले आसमान के नीचे आयोजित होने के नाते उचित था. कुंभ मेले के आयोजन से हमें विश्वास दिलाया गया कि यह जोखिम से मुक्त है.
अब जबकि कोरोना भंयकर रूप ले चुका है, तो वही धार्मिक नेता कोविड-19 आए जुड़े दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए कह रहे है. हालांकि, इनमें से ही कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने कुंभ के आयोजन के समय कोविड से जुड़े दिशा निर्देशों का मखौल उड़ाया था.
(बिलाल भट)