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यूक्रेन से भारत लौटे छात्रों ने सुनाई आपबीती, परिवारों के चेहरे पर लौटी खुशी

यूक्रेन से लौटी एमबीबीएस छात्रा फाल्गुनी ने बताया कि दो देशों की लड़ाई के बीच इंडिया के छात्र स्ट्रगल कर रहे हैं. हालांकि यूक्रेन के हालात को लेकर भारतीय दूतावास से 20-25 दिन पहले एडवाइजरी आई थी. वहीं जनपद मथुरा के निवासी ओम अग्रवाल भी सरकार की मदद से यूक्रेन से अपने घर लौट आए हैं. ओम वहां एमबीबीएस की पांचवीं वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन इस बीच वहां रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में फंस गए थे, लेकिन सरकार की मदद से वो अब अपने घर लौट आए हैं.

Russia Ukraine Crisis
यूक्रेन में युद्ध का मंजर देख लौटी छात्रा
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Published : Mar 1, 2022, 11:47 AM IST

Updated : Mar 1, 2022, 2:01 PM IST

अलीगढ़: रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत लौटी एमबीबीएस छात्रा फाल्गुनी ने वहां की स्थिति के बारे में बताया कि दोनों देशों के युद्ध के बीच में भारतीय छात्र संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि यूक्रेन के हालात को लेकर भारतीय दूतावास से 20-25 दिन पहले ही एडवाइजरी आई थी लेकिन हमारी यूनिवर्सिटी ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया था. वहीं, जब राजधानी कीव पर हमले होने लगे तो हमारे पास भारत लौटने का कोई विकल्प ही नहीं था. उन्होंने बताया कि भारतीय दूतावास ने उस समय तीन फ्लाइट अरेंज की थी, जो पूरी तरह से फुल थी. फाल्गुनी ने इसे एक बुरा सपना करार देते हुए कहा कि अभी भी जो छात्र यूक्रेन में रह गए हैं उनके लिए यह बहुत मुश्किल भरा समय है.

अलीगढ़ की रहने वाली फाल्गुनी यूक्रेन में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं. फाल्गुनी ने बताया कि, 'मेरे साथ करीब ढाई हजार भारतीय छात्र यूक्रेन में फंसे थे और यूक्रेन से रोमानिया आने तक ही मेरे पैसे खर्च हुए. लेकिन रोमानिया से इंडिया आने में कोई पैसा खर्च नहीं हुआ. भारत सरकार ने फूड और ट्रांसपोर्ट का पूरा प्रबंध कराया. फाल्गुनी ने बताया कि भारत सरकार जितना कर सकती थी, कर रही है. लेकिन यूक्रेन की सरकार अगर पहले ही भारतीयों को खतरे का आगाह कर देती तो ऐसी स्थिति नहीं होती. उन्होंने यह भी बताया कि अब परिस्थितियां बहुत कठिन है. इसलिए भारत सरकार ने अपने मिनिस्टर को रोमानिया और पौलेंड भेजा है.

यूक्रेन में युद्ध का मंजर देख लौटी छात्रा

फाल्गुनी बताती हैं कि, 'हमारी क्लासेस ऑफलाइन चल रही थी और छात्रों को क्लास में उपस्थित नहीं होने पर भारी फाइन देना पड़ता है. यूक्रेन की सरकार ने रूस के हमले को हल्के में लिया. अगर यूक्रेन की सरकार ने समय पर यूक्रेन से निकलने का नोटिस दे दिया होता तो आज ऐसी स्थिति नहीं बनती. फाल्गुनी ने यूक्रेन में फंसे होने का एक-एक पल बयां किया. उन्होंने बताया कि एक अलार्म बजते ही हम लोगों को बंकरों में भागना पड़ता था. उन्होंने यह भी बताया कि बंकर्स में पहले यूक्रेन के लोगों को वरीयता दी जाती थी और भारतीयों के लिए अलग से सेंटर भी नहीं बनाये गए थे.

फाल्गुनी ने यह भी बताया कि, 'रोमानिया बॉर्डर पर भी पहुंचना आसान नहीं था. बहुत खतरनाक स्थिति थी. हमें एमबीबीएस की किताब तक नहीं लाने दिया गया. हमें सिर्फ दो जोड़ी कपड़े, थोड़ा खाना और पानी की बोतल ही अपने साथ ले जाना था. वहां का तापमान माइनस 5 डिग्री था. उन्होंने बताया कि भारतीय लोगों के लिए शेल्टर की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी. हम लोगों ने गत्ते को फाड़कर और उसे बिछाकर छह से सात घंटे भीषण ठंड में बिताए.

उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय दूतावास की तरफ से मैसेज आया था कि अगर बसों पर भारतीय झंडे लगाए जाएं तो रशियन आर्मी भारतीयों को कुछ नहीं कहेंगे. फाल्गुनी ने बताया कि अगर आप झंडा नहीं लगाएंगे तो हो सकता है हमला हो सकता है. हमारा तिरंगा झंडा ही पासपोर्ट था और किसी ने कुछ नहीं कहा. वहीं, फाल्गुनी के पिता पंकज ने बताया कि यूक्रेन की हालत से अभिभावक परेशान हैं. अलीगढ़ के 23 बच्चे अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं.

यह भी पढ़ें-Russia-Ukraine Update: यूक्रेन से भारतीयों की वापसी, जानें अब तक क्या-क्या हुआ?

इसी कड़ी में जनपद मथुरा के निवासी ओम अग्रवाल भी सरकार की मदद से यूक्रेन से अपने घर लौट आए हैं. ओम वहां एमबीबीएस की पांचवीं वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन इस बीच वहां रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में फंस गए. सरकार की मदद से वो अब अपने घर लौट आए हैं. वहीं, घर वापसी और यूक्रेन के हालात पर उन्होंने कहा कि वहां माहौल इतना खराब हो चुका है कि कब क्या हो जाए कुछ भी कहा नहीं जा सकता. हम काफी तनाव में थे. लेकिन जब हमें पता चला कि भारत सरकार हमें वहां से वापस लाने के प्रयास कर रही है तो हमारा आत्मबल बढ़ा और अब घर वापसी के बाद हमें शांति मिली है.

वहीं उन्होंने सही सलामत घर वापसी के लिए सरकार को धन्यवाद भी दिया और कहा कि हम उम्मीद करेंगे कि हमारे जो भी साथी वहां अब भी फंसे हैं, उनकी भी जल्द ही वतन वापसी हो. ओम ने आगे बताया कि यूक्रेन में मेरी बहन भी थी और वो बहुत ज्यादा डरी हुई थी जिसकी वजह से मुझे भी डर लग रहा था, लेकिन वह भी अब सुरक्षित घर लौट चुकी है. हमारी घर वापसी में सरकार का अहम योगदान रहा है. हमें बिल्कुल निःशुल्क और सुविधा के साथ बहुत कम समय में घर तक वापस लाया गया है.

यह भी पढ़ें-रूस-यूक्रेन संघर्ष, आठवीं और नौवीं ऑपरेशन गंगा उड़ान बुडापेस्ट से नई दिल्ली के लिए हुई रवाना

ओम के जैसे मथुरा के बरसाना की रहने वाली राधिका गोयल भी यूक्रेन से वापस आई हैं. उन्होंने बताया कि 22 फरवरी की रात 3 बजे आचनक धमाकों की आवाज सुनाई दी, जिसे सुनकर हॉस्टल में मौजूद सभी छात्र डर गए. सायरन बजने लगे और वहां आफरा-तफरी मच गई. तुरंत सभी लोगों ने बाजार से खाने पीने का सामान स्टॉक कर लिया और हमने एटीएम से पैसे निकाल लिए. इस दौरान हमें वहां के प्रशासन ने किसी अप्रिय घटना से बचने को बंकर में रहने के लिए भेज दिया. इवानो के प्रशासन ने हमें बताया कि लगातार सायरल बजे तो तुरंत बंकर में जाकर छिपना है.

यूक्रेन में युद्ध का मंजर देख लौटी छात्रा

उन्होंने आगे बताया कि 25 फरवरी तक लगातार इवानो शहर पर हमले हो रहे थे. एयरपोर्ट पर भी धमके शुरू हो गए थे. ऐसे में हम किसी तरह से 25 की रात को टैक्सी से रोमानिया बॉर्डर पर पहुंच गए. इस दौरान करीब तीन किलोमीटर हम पैदल भी चले. वहीं, हमारी भारतीय दूतावास ने भी काफी मदद की. टैक्सी पर तिरंगा लगा होने के कारण न तो रूसी सेना ने और न ही यूक्रेन की सेना ने हमारी गाड़ी को रोका. सरकार की वजह आज हम लोग अपने वतन सुरक्षित लौटे हैं.

कन्नौज की बेटियां लौटीं

रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. अभी यूक्रेन में पढ़ाई करने गए छात्र-छात्राएं फंसे हुए हैं. वहीं, भारत सरकार यूक्रेन में फंसे छात्रों को वापस लाने की कवायद में जुटी है. यूक्रेन में फंसी कन्नौज के छिबरामऊ कोतवाली क्षेत्र के बरुआ सबलपुर ग्राम निवासी स्टाफ नर्स सुधारानी की दोनों जुड़वा बेटियां सोमवार को सकुशल लौट आई. बेटियों को सकुश देख परिजनों की आंखें नम हो गई. परिजनों ने दोनों बहनों को माला पहनाकर व मिठाई खिलाकर स्वागत किया. वहीं, इन दोनों बहनों ने बताया कि युद्ध के पहले दिन हम हम कॉलेज गए थे. जिसके बाद हम लोगों के पास नोटिस आया कि सायरन बजने पर सबको बंकर में जाना है और सायरन एक मिनट तक बजेगा. इस दौरान सभी लाइटें बंद रखने के लिए भी कहा गया था, यहां तक कि फोन की लाइट भी बंद रखने के आदेश दिए गए थे.

छिबरामऊ कोतवाली क्षेत्र के बरुआ सबलपुर ग्राम निवासी सुधारानी पत्नी ब्रजपाल शाक्य कस्बा के राजकीय महिला चिकित्सालय में स्टाफ नर्स के पद पर तैनात हैं. उनकी जुड़वा बेटियां कामना और करिश्मा यूक्रेन के टार्नोपिल नेशनल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी और दोनों चौथे वर्ष की छात्रा हैं. लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद परिजन लगातार उनकी सकुशल वापसी के लिए प्रार्थना कर रहे थे. आखिरकार काफी जद्दोजहद के बाद दोनों बहनें रोमानिया बॉर्डर क्रॉस कर लौट आई. बेटियों को सही सलामत देख माता-पिता व अन्य परिजन भावुक हो गए. परिजनों ने माला पहनाकर व मुंह मीठा कराकर दोनों बहनों का स्वागत किया.

इसे भी पढ़ें - यूक्रेन से लौटी जालौन की छाया ने सुनाई खौफनाक दास्तां

कॉलेज से मिला था ये आश्वासन...

यूक्रेन से लौटी जुडवां बहनों ने बताया कि जहां पर वह लोग पढ़ाई कर रहे थे वहां सब कुछ ठीक था. पढ़ाई भी सही से हो रही थी. वहां अचानक शांति हो गई थी. क्योंकि एक दिन पहले मेल आया कि सब कुछ ठीक हैं. बताया कि अगर उनको युद्ध का आभास होता तो हम पहले ही वापस आ जाते. यूनिवर्सिटी के लोग कह रहे थे कि सब ठीक हैं. डरने की जरूरत नहीं हैं. जिस दिन युद्ध की तारीख आई थी, उस दिन भी हम लोग कॉलेज गए थे. इसके बाद हम लोगों के पास एक नोटिस आया कि उसमें लिखा था कि सायरन बजे तो आप सबको बंकर में जाना हैं. अगर सायरन एक मिनट तक बजता है तो सारी लाइट को बंद रखना है. यहां तक की फोन लाइट भी.

वीडियो

बंकर में था माइनस डिग्री तापमान

छात्राओं ने बताया कि कई बार एक मिनट का सायरन बजा. हम लोगों को बंकर में ही रहना पड़ा था. बंकर में माइनस डिग्री तापमान था और बंकर में खाने का इंतजाम नहीं था. बताया कि 24 फरवरी को कोई ब्लॉस्ट नहीं हुआ था. लेकिन उस दिन करीब पांच बार सायरन बजे थे. 25 फरवरी को भी कोई ब्लॉस्ट नहीं हुआ. उस इलाके में रूस के ड्रोन्स देखे गए थे. 26 फरवरी को ब्लॉस्ट शुरू हो गए थे. इसके बाद भी यूनिवर्सिटी की ओर से छात्रों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई. खुद से बस की टिकट बुक की तब रोमानिया बॉर्डर पहुंचे.

अलीगढ़: रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत लौटी एमबीबीएस छात्रा फाल्गुनी ने वहां की स्थिति के बारे में बताया कि दोनों देशों के युद्ध के बीच में भारतीय छात्र संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि यूक्रेन के हालात को लेकर भारतीय दूतावास से 20-25 दिन पहले ही एडवाइजरी आई थी लेकिन हमारी यूनिवर्सिटी ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया था. वहीं, जब राजधानी कीव पर हमले होने लगे तो हमारे पास भारत लौटने का कोई विकल्प ही नहीं था. उन्होंने बताया कि भारतीय दूतावास ने उस समय तीन फ्लाइट अरेंज की थी, जो पूरी तरह से फुल थी. फाल्गुनी ने इसे एक बुरा सपना करार देते हुए कहा कि अभी भी जो छात्र यूक्रेन में रह गए हैं उनके लिए यह बहुत मुश्किल भरा समय है.

अलीगढ़ की रहने वाली फाल्गुनी यूक्रेन में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं. फाल्गुनी ने बताया कि, 'मेरे साथ करीब ढाई हजार भारतीय छात्र यूक्रेन में फंसे थे और यूक्रेन से रोमानिया आने तक ही मेरे पैसे खर्च हुए. लेकिन रोमानिया से इंडिया आने में कोई पैसा खर्च नहीं हुआ. भारत सरकार ने फूड और ट्रांसपोर्ट का पूरा प्रबंध कराया. फाल्गुनी ने बताया कि भारत सरकार जितना कर सकती थी, कर रही है. लेकिन यूक्रेन की सरकार अगर पहले ही भारतीयों को खतरे का आगाह कर देती तो ऐसी स्थिति नहीं होती. उन्होंने यह भी बताया कि अब परिस्थितियां बहुत कठिन है. इसलिए भारत सरकार ने अपने मिनिस्टर को रोमानिया और पौलेंड भेजा है.

यूक्रेन में युद्ध का मंजर देख लौटी छात्रा

फाल्गुनी बताती हैं कि, 'हमारी क्लासेस ऑफलाइन चल रही थी और छात्रों को क्लास में उपस्थित नहीं होने पर भारी फाइन देना पड़ता है. यूक्रेन की सरकार ने रूस के हमले को हल्के में लिया. अगर यूक्रेन की सरकार ने समय पर यूक्रेन से निकलने का नोटिस दे दिया होता तो आज ऐसी स्थिति नहीं बनती. फाल्गुनी ने यूक्रेन में फंसे होने का एक-एक पल बयां किया. उन्होंने बताया कि एक अलार्म बजते ही हम लोगों को बंकरों में भागना पड़ता था. उन्होंने यह भी बताया कि बंकर्स में पहले यूक्रेन के लोगों को वरीयता दी जाती थी और भारतीयों के लिए अलग से सेंटर भी नहीं बनाये गए थे.

फाल्गुनी ने यह भी बताया कि, 'रोमानिया बॉर्डर पर भी पहुंचना आसान नहीं था. बहुत खतरनाक स्थिति थी. हमें एमबीबीएस की किताब तक नहीं लाने दिया गया. हमें सिर्फ दो जोड़ी कपड़े, थोड़ा खाना और पानी की बोतल ही अपने साथ ले जाना था. वहां का तापमान माइनस 5 डिग्री था. उन्होंने बताया कि भारतीय लोगों के लिए शेल्टर की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी. हम लोगों ने गत्ते को फाड़कर और उसे बिछाकर छह से सात घंटे भीषण ठंड में बिताए.

उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय दूतावास की तरफ से मैसेज आया था कि अगर बसों पर भारतीय झंडे लगाए जाएं तो रशियन आर्मी भारतीयों को कुछ नहीं कहेंगे. फाल्गुनी ने बताया कि अगर आप झंडा नहीं लगाएंगे तो हो सकता है हमला हो सकता है. हमारा तिरंगा झंडा ही पासपोर्ट था और किसी ने कुछ नहीं कहा. वहीं, फाल्गुनी के पिता पंकज ने बताया कि यूक्रेन की हालत से अभिभावक परेशान हैं. अलीगढ़ के 23 बच्चे अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं.

यह भी पढ़ें-Russia-Ukraine Update: यूक्रेन से भारतीयों की वापसी, जानें अब तक क्या-क्या हुआ?

इसी कड़ी में जनपद मथुरा के निवासी ओम अग्रवाल भी सरकार की मदद से यूक्रेन से अपने घर लौट आए हैं. ओम वहां एमबीबीएस की पांचवीं वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन इस बीच वहां रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में फंस गए. सरकार की मदद से वो अब अपने घर लौट आए हैं. वहीं, घर वापसी और यूक्रेन के हालात पर उन्होंने कहा कि वहां माहौल इतना खराब हो चुका है कि कब क्या हो जाए कुछ भी कहा नहीं जा सकता. हम काफी तनाव में थे. लेकिन जब हमें पता चला कि भारत सरकार हमें वहां से वापस लाने के प्रयास कर रही है तो हमारा आत्मबल बढ़ा और अब घर वापसी के बाद हमें शांति मिली है.

वहीं उन्होंने सही सलामत घर वापसी के लिए सरकार को धन्यवाद भी दिया और कहा कि हम उम्मीद करेंगे कि हमारे जो भी साथी वहां अब भी फंसे हैं, उनकी भी जल्द ही वतन वापसी हो. ओम ने आगे बताया कि यूक्रेन में मेरी बहन भी थी और वो बहुत ज्यादा डरी हुई थी जिसकी वजह से मुझे भी डर लग रहा था, लेकिन वह भी अब सुरक्षित घर लौट चुकी है. हमारी घर वापसी में सरकार का अहम योगदान रहा है. हमें बिल्कुल निःशुल्क और सुविधा के साथ बहुत कम समय में घर तक वापस लाया गया है.

यह भी पढ़ें-रूस-यूक्रेन संघर्ष, आठवीं और नौवीं ऑपरेशन गंगा उड़ान बुडापेस्ट से नई दिल्ली के लिए हुई रवाना

ओम के जैसे मथुरा के बरसाना की रहने वाली राधिका गोयल भी यूक्रेन से वापस आई हैं. उन्होंने बताया कि 22 फरवरी की रात 3 बजे आचनक धमाकों की आवाज सुनाई दी, जिसे सुनकर हॉस्टल में मौजूद सभी छात्र डर गए. सायरन बजने लगे और वहां आफरा-तफरी मच गई. तुरंत सभी लोगों ने बाजार से खाने पीने का सामान स्टॉक कर लिया और हमने एटीएम से पैसे निकाल लिए. इस दौरान हमें वहां के प्रशासन ने किसी अप्रिय घटना से बचने को बंकर में रहने के लिए भेज दिया. इवानो के प्रशासन ने हमें बताया कि लगातार सायरल बजे तो तुरंत बंकर में जाकर छिपना है.

यूक्रेन में युद्ध का मंजर देख लौटी छात्रा

उन्होंने आगे बताया कि 25 फरवरी तक लगातार इवानो शहर पर हमले हो रहे थे. एयरपोर्ट पर भी धमके शुरू हो गए थे. ऐसे में हम किसी तरह से 25 की रात को टैक्सी से रोमानिया बॉर्डर पर पहुंच गए. इस दौरान करीब तीन किलोमीटर हम पैदल भी चले. वहीं, हमारी भारतीय दूतावास ने भी काफी मदद की. टैक्सी पर तिरंगा लगा होने के कारण न तो रूसी सेना ने और न ही यूक्रेन की सेना ने हमारी गाड़ी को रोका. सरकार की वजह आज हम लोग अपने वतन सुरक्षित लौटे हैं.

कन्नौज की बेटियां लौटीं

रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है. अभी यूक्रेन में पढ़ाई करने गए छात्र-छात्राएं फंसे हुए हैं. वहीं, भारत सरकार यूक्रेन में फंसे छात्रों को वापस लाने की कवायद में जुटी है. यूक्रेन में फंसी कन्नौज के छिबरामऊ कोतवाली क्षेत्र के बरुआ सबलपुर ग्राम निवासी स्टाफ नर्स सुधारानी की दोनों जुड़वा बेटियां सोमवार को सकुशल लौट आई. बेटियों को सकुश देख परिजनों की आंखें नम हो गई. परिजनों ने दोनों बहनों को माला पहनाकर व मिठाई खिलाकर स्वागत किया. वहीं, इन दोनों बहनों ने बताया कि युद्ध के पहले दिन हम हम कॉलेज गए थे. जिसके बाद हम लोगों के पास नोटिस आया कि सायरन बजने पर सबको बंकर में जाना है और सायरन एक मिनट तक बजेगा. इस दौरान सभी लाइटें बंद रखने के लिए भी कहा गया था, यहां तक कि फोन की लाइट भी बंद रखने के आदेश दिए गए थे.

छिबरामऊ कोतवाली क्षेत्र के बरुआ सबलपुर ग्राम निवासी सुधारानी पत्नी ब्रजपाल शाक्य कस्बा के राजकीय महिला चिकित्सालय में स्टाफ नर्स के पद पर तैनात हैं. उनकी जुड़वा बेटियां कामना और करिश्मा यूक्रेन के टार्नोपिल नेशनल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी और दोनों चौथे वर्ष की छात्रा हैं. लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद परिजन लगातार उनकी सकुशल वापसी के लिए प्रार्थना कर रहे थे. आखिरकार काफी जद्दोजहद के बाद दोनों बहनें रोमानिया बॉर्डर क्रॉस कर लौट आई. बेटियों को सही सलामत देख माता-पिता व अन्य परिजन भावुक हो गए. परिजनों ने माला पहनाकर व मुंह मीठा कराकर दोनों बहनों का स्वागत किया.

इसे भी पढ़ें - यूक्रेन से लौटी जालौन की छाया ने सुनाई खौफनाक दास्तां

कॉलेज से मिला था ये आश्वासन...

यूक्रेन से लौटी जुडवां बहनों ने बताया कि जहां पर वह लोग पढ़ाई कर रहे थे वहां सब कुछ ठीक था. पढ़ाई भी सही से हो रही थी. वहां अचानक शांति हो गई थी. क्योंकि एक दिन पहले मेल आया कि सब कुछ ठीक हैं. बताया कि अगर उनको युद्ध का आभास होता तो हम पहले ही वापस आ जाते. यूनिवर्सिटी के लोग कह रहे थे कि सब ठीक हैं. डरने की जरूरत नहीं हैं. जिस दिन युद्ध की तारीख आई थी, उस दिन भी हम लोग कॉलेज गए थे. इसके बाद हम लोगों के पास एक नोटिस आया कि उसमें लिखा था कि सायरन बजे तो आप सबको बंकर में जाना हैं. अगर सायरन एक मिनट तक बजता है तो सारी लाइट को बंद रखना है. यहां तक की फोन लाइट भी.

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बंकर में था माइनस डिग्री तापमान

छात्राओं ने बताया कि कई बार एक मिनट का सायरन बजा. हम लोगों को बंकर में ही रहना पड़ा था. बंकर में माइनस डिग्री तापमान था और बंकर में खाने का इंतजाम नहीं था. बताया कि 24 फरवरी को कोई ब्लॉस्ट नहीं हुआ था. लेकिन उस दिन करीब पांच बार सायरन बजे थे. 25 फरवरी को भी कोई ब्लॉस्ट नहीं हुआ. उस इलाके में रूस के ड्रोन्स देखे गए थे. 26 फरवरी को ब्लॉस्ट शुरू हो गए थे. इसके बाद भी यूनिवर्सिटी की ओर से छात्रों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई. खुद से बस की टिकट बुक की तब रोमानिया बॉर्डर पहुंचे.

Last Updated : Mar 1, 2022, 2:01 PM IST
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