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लद्दाख में 145 मिलियन साल पुराने सांप की प्रजाति के जीवाश्म मिले - भारतीय उप महाद्वीप में सांपों की प्रजाति

लद्दाख में सांपों की 145 मिलियन साल पुरानी प्रजाति मिलने का दावा किया गया है. भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने एक शोध में इसका दावा किया है. उस शोध में स्लोवाकिया के भी वैज्ञानिक शामिल हैं. इसका नाम मदतसोइदे (Madtsoiidae) सांप है. यह सांपों का एक विलुप्त समूह है.

snake madtsoiidae ladakh
सांपों की प्रजाति के जीवाश्म
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Published : May 13, 2022, 7:51 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह, जो स्लोवाकिया में अन्य वैज्ञानिकों के साथ शामिल हुए, ने हिमालय के लद्दाख क्षेत्र में मदतसोइदे सांप का जीवाश्म ढूंढा है. इसे मोलास के ढेर में ढूंढा गया. यह अध्ययन यह बताता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में सांपों की प्रजाति अब तक की जानकारी से काफी पहले से रही है.

मदतसोइदे (Madtsoiidae) सांप मध्यम आकार से लेकर विशाल आकार का होता है. यह सांपों का एक विलुप्त समूह है. इसे पहली बार क्रेतेसियस अवधि के दौरान देखा गया, जो 145 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ और 66 मिलियन वर्ष पहले समाप्त हुआ. यह 79 मिलियन वर्षों तक मौजूद रहा. लेखकों के अनुसार, सेनोजोइक काल के दौरान इन सांपों का रिकॉर्ड, जो 65 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ था और अभी भी चल रहा है और यह अत्यंत दुर्लभ है.

जीवाश्म रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर अधिकांश गोंडवान महाद्वीपों में मध्य-पीलेओजीन काल (56 मिलियन से 33.9 मिलियन वर्ष पूर्व) में पूरा समूह गायब हो गया. ये सांप अपने अंतिम ज्ञात टैक्सोन वोनंबी के साथ प्लीस्टोसीन काल के अंत तक जीवित रहे. इसका काल 1.64 मिलियन वर्ष पूर्व से 10,000 वर्ष पूर्व माना जाता है.

यह अध्ययन वर्टेब्रेट पेलियोन्टोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसमें डॉ निंगथौजम प्रेमजीत सिंह, डॉ रमेश कुमार सहगल और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के अभिषेक प्रताप सिंह और डॉ राजीव पटनायक शामिल हैं. अन्य विशेषज्ञों में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से वसीम अबास वजीर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ से डॉ नवीन कुमार और पीयूष उनियाल, तथा कॉमेनियस यूनिवर्सिटी स्लोवाकिया के डॉ आंद्रेज शामिल हैं.

snake madtsoiidae ladakh
सांपों की प्रजाति के जीवाश्म

मोलास डिपॉडिट एक प्रकार का मोटा पारालिक सेडिमेंट्री डिपॉजिट होता है. इसमें नरम, अवर्गीकृत बलुआ पत्थर, शेल और मार्ल्स आदि होते हैं. शोधार्थियों ने पहली बार भारत के हिमालयी क्षेत्र में लद्दाख के मोलास डिपॉजिट (लगभग 33.7 से 23.8 मिलियन वर्ष पूर्व तक चला था) के अंत से ओलिगोसीन (लगभग 33.7 से 23.8 मिलियन वर्ष पूर्व तक चला) से मदतसोइदे सांप के जीवाश्म की खोज की है.

जर्नल ऑफ वर्टेब्रेट पेलियोन्टोलॉजी में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि इस समूह के सदस्य इस उपमहाद्वीप में पहले की तुलना में अधिक समय तक सफल रहे. इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन और इओसीन-ओलिगोसीन सीमा (जो यूरोपीय ग्रांडे कूपर से संबंधित है) के प्रमुख जैविक पुनर्गठन भारत में सांपों के इस महत्वपूर्ण समूह के विलुप्त होने का कारण नहीं हैं. इस जीवाश्म नमूने को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, वाडिया संस्थान के भंडार में संग्रहीत किया गया है.

नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह, जो स्लोवाकिया में अन्य वैज्ञानिकों के साथ शामिल हुए, ने हिमालय के लद्दाख क्षेत्र में मदतसोइदे सांप का जीवाश्म ढूंढा है. इसे मोलास के ढेर में ढूंढा गया. यह अध्ययन यह बताता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में सांपों की प्रजाति अब तक की जानकारी से काफी पहले से रही है.

मदतसोइदे (Madtsoiidae) सांप मध्यम आकार से लेकर विशाल आकार का होता है. यह सांपों का एक विलुप्त समूह है. इसे पहली बार क्रेतेसियस अवधि के दौरान देखा गया, जो 145 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ और 66 मिलियन वर्ष पहले समाप्त हुआ. यह 79 मिलियन वर्षों तक मौजूद रहा. लेखकों के अनुसार, सेनोजोइक काल के दौरान इन सांपों का रिकॉर्ड, जो 65 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ था और अभी भी चल रहा है और यह अत्यंत दुर्लभ है.

जीवाश्म रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर अधिकांश गोंडवान महाद्वीपों में मध्य-पीलेओजीन काल (56 मिलियन से 33.9 मिलियन वर्ष पूर्व) में पूरा समूह गायब हो गया. ये सांप अपने अंतिम ज्ञात टैक्सोन वोनंबी के साथ प्लीस्टोसीन काल के अंत तक जीवित रहे. इसका काल 1.64 मिलियन वर्ष पूर्व से 10,000 वर्ष पूर्व माना जाता है.

यह अध्ययन वर्टेब्रेट पेलियोन्टोलॉजी के जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसमें डॉ निंगथौजम प्रेमजीत सिंह, डॉ रमेश कुमार सहगल और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के अभिषेक प्रताप सिंह और डॉ राजीव पटनायक शामिल हैं. अन्य विशेषज्ञों में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से वसीम अबास वजीर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रोपड़ से डॉ नवीन कुमार और पीयूष उनियाल, तथा कॉमेनियस यूनिवर्सिटी स्लोवाकिया के डॉ आंद्रेज शामिल हैं.

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सांपों की प्रजाति के जीवाश्म

मोलास डिपॉडिट एक प्रकार का मोटा पारालिक सेडिमेंट्री डिपॉजिट होता है. इसमें नरम, अवर्गीकृत बलुआ पत्थर, शेल और मार्ल्स आदि होते हैं. शोधार्थियों ने पहली बार भारत के हिमालयी क्षेत्र में लद्दाख के मोलास डिपॉजिट (लगभग 33.7 से 23.8 मिलियन वर्ष पूर्व तक चला था) के अंत से ओलिगोसीन (लगभग 33.7 से 23.8 मिलियन वर्ष पूर्व तक चला) से मदतसोइदे सांप के जीवाश्म की खोज की है.

जर्नल ऑफ वर्टेब्रेट पेलियोन्टोलॉजी में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि इस समूह के सदस्य इस उपमहाद्वीप में पहले की तुलना में अधिक समय तक सफल रहे. इन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन और इओसीन-ओलिगोसीन सीमा (जो यूरोपीय ग्रांडे कूपर से संबंधित है) के प्रमुख जैविक पुनर्गठन भारत में सांपों के इस महत्वपूर्ण समूह के विलुप्त होने का कारण नहीं हैं. इस जीवाश्म नमूने को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, वाडिया संस्थान के भंडार में संग्रहीत किया गया है.

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