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भारतीय वैज्ञानिकों ने 5 साल की शैल्फ-लाइफ वाला N95 मास्क किया विकसित

भारतीय वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके पुन: प्रयोज्य, धोने वाला N95 मास्क बनाया है. यह N-95 मास्क गंधहीन, गैर-एलर्जी और इसमें रोगाणुरोधी है. इसकी चार परतें होती हैं और इसकी बाहरी परत सिलिकॉन से बनी है जिससे इसकी शेल्फ लाइफ उपयोग के आधार पर पांच साल से अधिक होती है.

N95 mask
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Published : Jun 28, 2022, 12:45 PM IST

नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके पुन: प्रयोज्य, धोने वाला N95 मास्क बनाया है. यह N-95 मास्क गंधहीन, गैर-एलर्जी और इसमें रोगाणुरोधी है. इसकी चार परतें हैं और इसकी बाहरी परत सिलिकॉन से बनी है जिससे इसकी शेल्फ लाइफ उपयोग के आधार पर पांच साल से अधिक है. इस N95 मास्क की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें एक नैनो-कण कोटिंग का उपयोग किया गया है जो न केवल अत्यधिक संक्रामक कोरोना वायरस के प्रसार को रोक सकता है, बल्कि इसका औद्योगिक संयंत्रों और ज्यादा प्रदुषण वाले जगहों पर भी उपयोगी होगा. इसके इस्तेमाल करके अत्यधिक प्रदूषण वाले जगहों पर काम करने वाले श्रमिक फेफड़ों की समस्या और अस्थमा जैसी बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं.

विज्ञान विभाग ने कहा, COVID 19 जैसे संक्रमणों से रोकथाम के अलावा इसका उपयोग सीमेंट कारखाने, ईंट भट्टों, कपास कारखानों और पेंट उद्योगों में श्रमिकों द्वारा भी किया जा सकता है. जहां उच्च मात्रा में धूलकण के संपर्क में आने का खतरा रहता है. 3-D प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल से विकसित एन95 मास्क को फिल्टर कॉन्फिगरेशन में बदलाव करके जरूरत के हिसाब से बदला जा सकता है. इसके इस्तेमाल से सिलिकोसिस जैसी गंभीर फेफड़ों की बीमारियों से बचाव किया जा सकता है. भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इसके पेटेंट और ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किया है.

भारत में विकसित किए गये N95 मास्क को नैनो ब्रीथ कहा जाता है क्योंकि इसमें बैक्टीरिया, वायरस और अन्य बारीक कणों के प्रवेश को रोकने के लिए नैनो-पार्टिकल कोटिंग का उपयोग किया गया है. इसमें 4-लेयर फिल्ट्रेशन मैकेनिज्म है, जहां फिल्टर की बाहरी और पहली परत नैनोपार्टिकल्स से कोटेड है. जबकि दूसरी परत एक उच्च दक्षता वाले कण अवशोषित (HEPA) फिल्टर है, तीसरी परत 100 माइक्रोन फिल्टर है और चौथी परत नमी अवशोषक फिल्टर है. एमिटी यूनिवर्सिटी हरियाणा (एयूएच) के भारतीय चार वैज्ञानिक- डॉ. अतुल ठाकुर, डॉ प्रीति ठाकुर, डॉ लकी कृष्णा और प्रो पीबी शर्मा एवं एक रिसर्च स्कॉलर दिनेश कुमार और संयुक्त राज्य अमेरिका में नेब्रास्का विश्वविद्यालय से प्रो राकेश श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से इस एन-95 मास्क को विकसित किया है.

बढ़ते कोविड मामले: पांच साल से अधिक समय तक चलने वाले इस मास्क का विकास ऐसे समय में हुआ है जब देश में नए कोविड मामलों की संख्या बढ़ रही है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस एन -95 मास्क में रोगनिरोधी के रूप में अपार संभावनाएं हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सोमवार सुबह जारी नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले 24 घंटों के दौरान देश में 17, 000 से अधिक नए कोविड के केस मिले हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि दैनिक सकारात्मकता दर बढ़कर 5.62% हो गई जबकि साप्ताहिक सकारात्मकता दर 3.39% थी. पिछले 24 घंटों में देश में 3,00,000 से अधिक परीक्षण किए गए और 21 लोगों की मौत कोरोना वायरस के संक्रमण से हुई, जिससे मरने वालों की कुल संख्या 5,25,020 हो गई.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कोष (FIST) : इस एन-95 मास्क को विकसित करने वाले भारतीय वैज्ञानिकों ने जेटासाइजर नैनो जेडएस सुविधा (Zetasizer Nano ZS facility) का इस्तेमाल किया. जो भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए फंड द्वारा समर्थित है. यह सुविधा सिरेमिक सामग्री और उत्प्रेरण अनुप्रयोगों के लिए उच्च तापमान थर्मल विश्लेषण को सक्षम बनाती है. यह सुविधा कण आकार, जीटा क्षमता, आणविक भार, कण गतिशीलता और सूक्ष्म-रियोलॉजी को मापने के लिए एक उच्च प्रदर्शन, बहुमुखी प्रणाली है.

यह भी पढ़ें-केंद्र की चेतावनी के बाद, डीएसटी अपने एन95 मास्क डिजाइन में करेगा बदलाव

नई दिल्ली : भारतीय वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके पुन: प्रयोज्य, धोने वाला N95 मास्क बनाया है. यह N-95 मास्क गंधहीन, गैर-एलर्जी और इसमें रोगाणुरोधी है. इसकी चार परतें हैं और इसकी बाहरी परत सिलिकॉन से बनी है जिससे इसकी शेल्फ लाइफ उपयोग के आधार पर पांच साल से अधिक है. इस N95 मास्क की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें एक नैनो-कण कोटिंग का उपयोग किया गया है जो न केवल अत्यधिक संक्रामक कोरोना वायरस के प्रसार को रोक सकता है, बल्कि इसका औद्योगिक संयंत्रों और ज्यादा प्रदुषण वाले जगहों पर भी उपयोगी होगा. इसके इस्तेमाल करके अत्यधिक प्रदूषण वाले जगहों पर काम करने वाले श्रमिक फेफड़ों की समस्या और अस्थमा जैसी बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं.

विज्ञान विभाग ने कहा, COVID 19 जैसे संक्रमणों से रोकथाम के अलावा इसका उपयोग सीमेंट कारखाने, ईंट भट्टों, कपास कारखानों और पेंट उद्योगों में श्रमिकों द्वारा भी किया जा सकता है. जहां उच्च मात्रा में धूलकण के संपर्क में आने का खतरा रहता है. 3-D प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल से विकसित एन95 मास्क को फिल्टर कॉन्फिगरेशन में बदलाव करके जरूरत के हिसाब से बदला जा सकता है. इसके इस्तेमाल से सिलिकोसिस जैसी गंभीर फेफड़ों की बीमारियों से बचाव किया जा सकता है. भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इसके पेटेंट और ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किया है.

भारत में विकसित किए गये N95 मास्क को नैनो ब्रीथ कहा जाता है क्योंकि इसमें बैक्टीरिया, वायरस और अन्य बारीक कणों के प्रवेश को रोकने के लिए नैनो-पार्टिकल कोटिंग का उपयोग किया गया है. इसमें 4-लेयर फिल्ट्रेशन मैकेनिज्म है, जहां फिल्टर की बाहरी और पहली परत नैनोपार्टिकल्स से कोटेड है. जबकि दूसरी परत एक उच्च दक्षता वाले कण अवशोषित (HEPA) फिल्टर है, तीसरी परत 100 माइक्रोन फिल्टर है और चौथी परत नमी अवशोषक फिल्टर है. एमिटी यूनिवर्सिटी हरियाणा (एयूएच) के भारतीय चार वैज्ञानिक- डॉ. अतुल ठाकुर, डॉ प्रीति ठाकुर, डॉ लकी कृष्णा और प्रो पीबी शर्मा एवं एक रिसर्च स्कॉलर दिनेश कुमार और संयुक्त राज्य अमेरिका में नेब्रास्का विश्वविद्यालय से प्रो राकेश श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से इस एन-95 मास्क को विकसित किया है.

बढ़ते कोविड मामले: पांच साल से अधिक समय तक चलने वाले इस मास्क का विकास ऐसे समय में हुआ है जब देश में नए कोविड मामलों की संख्या बढ़ रही है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस एन -95 मास्क में रोगनिरोधी के रूप में अपार संभावनाएं हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा सोमवार सुबह जारी नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले 24 घंटों के दौरान देश में 17, 000 से अधिक नए कोविड के केस मिले हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि दैनिक सकारात्मकता दर बढ़कर 5.62% हो गई जबकि साप्ताहिक सकारात्मकता दर 3.39% थी. पिछले 24 घंटों में देश में 3,00,000 से अधिक परीक्षण किए गए और 21 लोगों की मौत कोरोना वायरस के संक्रमण से हुई, जिससे मरने वालों की कुल संख्या 5,25,020 हो गई.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कोष (FIST) : इस एन-95 मास्क को विकसित करने वाले भारतीय वैज्ञानिकों ने जेटासाइजर नैनो जेडएस सुविधा (Zetasizer Nano ZS facility) का इस्तेमाल किया. जो भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए फंड द्वारा समर्थित है. यह सुविधा सिरेमिक सामग्री और उत्प्रेरण अनुप्रयोगों के लिए उच्च तापमान थर्मल विश्लेषण को सक्षम बनाती है. यह सुविधा कण आकार, जीटा क्षमता, आणविक भार, कण गतिशीलता और सूक्ष्म-रियोलॉजी को मापने के लिए एक उच्च प्रदर्शन, बहुमुखी प्रणाली है.

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