नई दिल्ली : भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में कॉविड-19 महामारी के बाद कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियां देखी गई हैं. हालांकि, कोरोना के प्रकोप ने इस बात पर भी जोर दिया है कि देश के स्वास्थ्य क्षेत्र को सभी प्रकार की अवांछित स्वास्थ्य आपदाओं से निपटने के लिए और प्रयास करने की आवश्यकता है.
एशियन सोसाइटी ऑफ इमरजेंसी मेडिसिन के अध्यक्ष डॉ. तमोरिश कोल ने कहा कि कोरोना ने दुनिया को बताया कि इस समय कोई भी स्वास्थ्य प्रणाली किसी भी तरह की महामारी से निपटने के लिए तैयार नहीं है. भारत की विशाल जनसंख्या और उपलब्ध स्वास्थ्य सेवा को ध्यान में रखते हुए हमें ऐसी नीतियों और प्रक्रियाओं को शुरू करना चाहिए, जो भविष्य में प्रभावी रूप से काम कर सके.
इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की कुशलता को बहुआयामी बनाया जाना चाहिए, जिससे वे अधिक मरीजों, बीमारी के प्रकोप का सामना कर सकें. डॉ. कोल ने कहा, प्रौद्योगिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में महत्वपूर्ण होने जा रही है और एक देश के रूप में हमें अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिए और सभी हितधारकों को इस ओर प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
2020 की स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट में बताया गया कि कोरोना से लड़ने में मंत्रालय ने आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी), नेशनल टोबैको कंट्रोल प्रोग्राम (एनटीसीपी), प्रधानमंत्री स्वास्थ्य योजना (पीएमएसएसवाय), चिकित्सा शिक्षा, राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी) के साथ ही अन्य कार्यक्रम चलाए.
मंत्रालय ने कहा कि कोरोना के प्रबंधन के लिए भारत सरकार के प्रयासों के साथ-साथ समाज के दृष्टिकोण के अनुसार, भारत में कोरोना के मामलों और इससे हुई मौतों का आंकड़ा कम हुआ है. 29 दिसंबर तक, भारत में कुल 1,02,24,303 मामले सामने आए थे, जिसमें से 2,68,571 सक्रिय मामले थे, जो कुल मामलों का 2.62 प्रतिशत था.
रिपोर्ट के अनुसार, 98,07,569 (95 प्रतिशत) लोग स्वस्थ हुए. वहीं वैश्विक स्तर पर भारत में सबसे कम (1.45 प्रतिशत) मौतें हुई. कोरोना से लड़ने और संक्रमण को रोकने के प्रयासों को लेकर मंत्रियों के एक समूह ने 3 फरवरी से अब तक 22 बार बैठक की. केंद्र ने कोविड-19 प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को देखने के लिए मार्च में 11 सशक्त समूहों की भी स्थापना की.
कोरोना के प्रकोप से बनी आपातकालीन स्थिति ने भारत को कार्मिक सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किटों, वेंटिलेटर के प्रमुख उत्पादकों में से एक बना दिया. कोरोना जांच के लिए अब तक 2,288 प्रयोगशालाएं स्थापित की जा चुकी हैं.
मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के माध्यम से एक व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली बनी है. सरकार ने देश भर में 1,04,860 से अधिक आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र बनाने की मंजूरी दी है. रिपोर्ट के अनुसार 50,927 ऐसे केंद्र 1 दिसंबर तक चालू हो चुके हैं.
सरकार ने, विशेष रूप से, चिकित्सा के सभी रूपों को एक साथ जोड़कर भारत में चिकित्सा प्रणाली को एकीकृत करने का निर्णय लिया. आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ आयुष को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार के इस कदम का इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) विरोध कर रहा है.
राष्ट्रीय एम्बुलेंस सेवा (एनएएस), राष्ट्रीय मोबाइल मेडिकल यूनिट (एनएमएमयू), नि: शुल्क दवा सेवा पहल जैसी अन्य पहल के अलावा, मंत्रालय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देशभर में 10.61 लाख आशा कार्यकर्ताओं को मान्यता देने में सक्षम था, जो समुदाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य कर रही थीं.
2025 तक ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) को खत्म करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को देखते हुए, राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) का नाम और लोगो बदल कर राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम रख दिया गया.
इस कार्यक्रम के तहत जनवरी से अक्टूबर 2020 तक कुल 14.75 लाख टीबी रोगियों को अधिसूचित किया गया था, जो 2019 में इसी अवधि की तुलना में 27 प्रतिशत कम थे. गौरतलब है कि इसका उद्देश्य ई-सिगरेट के कारण नशे के प्रसार को रोकना है. सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट्स पर प्रतिबंध (उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, स्टोरेज और विज्ञापन) अधिनियम, 2019 लागू किया.
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पहले चरण के तहत भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश में सरकार के छह एम्स शुरू हुए. इसके लिए इस वर्ष 100 पीजी सीटें और 150 एमबीबीएस सीटें बढ़ाई गईं. सरकार ने विभिन्न चरणों के तहत कई और एम्स शुरू करने की मंजूरी दी है.
चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को खत्म करके ऐतिहासिक राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) का गठन किया गया है. सरकार का मानना है कि एनएमसी देश की चिकित्सा शिक्षा में सुधार लाएगा. केंद्र सरकार के कॉलेजों और अस्पतालों को बहुत प्रोत्साहन दिया गया है.
नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) को बढ़ावा दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप मलेरिया, काला अजार आदि के मामलों में कमी आई है. सरकार ने राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवा, ई-संजीवनी, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन जैसे ई-हेल्थ कार्यक्रमों को भी बढ़ावा दिया है.