नई दिल्ली : केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने मंगलवार को कृषि नेता राकेश टिकैत के इस आरोप का खंडन किया कि ऑस्ट्रेलिया से दूध आयात करने का कोई प्रस्ताव है. रूपाला ने टिकैत के आरोपों के जवाब में ट्वीट किया, 'कुछ संगठन ऐसे हैं जो केवल विरोध-आधारित राजनीति के आधार पर काम कर रहे हैं और गलत सूचना फैला रहे हैं. उनका एकमात्र उद्देश्य किसानों को विचलित करना है. पशुपालन में विचाराधीन डेयरी उत्पादों के लिए आयात शुल्क पर किसी भी प्रकार की रियायत का कोई प्रस्ताव नहीं है.'
दो दिन पहले टिकैत ने ट्वीट किया था, 'सरकार अगले महीने ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने जा रही है, जिसमें उसे 20-22 रुपये प्रति लीटर दूध बेचने की अनुमति है. दूध आयात करने के सरकार के इस फैसले से अस्तित्व पर सवालिया निशान लग जाएगा. देश के पशुपालकों को लेकर किसान इस कदम का विरोध करेंगे.' रूपाला ने अपने जवाब में एक अतिरिक्त ट्वीट भी किया था जिसमें कहा गया था, 'आपको यह जानकर खुशी होगी कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है.'
पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'आयात को भूल जाइए. हम दूध अधिशेष हैं, हमें दूध आयात करने की आवश्यकता नहीं है, ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, बल्कि कहीं से भी नहीं. इसके बजाय, हम जो आक्रामक रूप से देख रहे हैं वह दूध की कमी वाले देशों को निर्यात करना है.'
अधिकारी ने कहा कि सरकार सहकारी समितियों को कार्यशील पूंजी ब्याज सबवेंशन भी प्रदान करती है ताकि वे जरूरत पड़ने पर मिल्क पाउडर बना सकें और स्टोर कर सकें क्योंकि यह एक चक्रीय बाजार है और इसका सर्दियों में अतिरिक्त उत्पादन होता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जैसा कि मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21 में बताया गया है, कुल वार्षिक उत्पादन 198.40 टन (2019-2020) है. भारत में प्रति व्यक्ति प्रति दिन दूध की उपलब्धता 406 ग्राम है.
एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन के दौरान टिकैत एक प्रमुख कृषि नेता के रूप में उभरे हैं, जिसने विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में सरकार को उन्हें निरस्त करने के लिए मजबूर किया. मंत्री के सार्वजनिक इनकार के बारे में पूछे जाने पर, टिकैत ने बताया, 'यह कम से कम एक साल से लंबित प्रस्ताव है. मंत्री को खुद इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके मंत्रालय में क्या होता है क्योंकि ये चीजें सीधे पीएमओ द्वारा तय की जाती हैं. कोरोना महामारी के कारण यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में जारी रहा. लेकिन अब, सरकार फरवरी में इस समझौते के साथ आगे बढ़ रही है.'
टिकैत ने कहा, 'रूपाला ने भले ही कुछ भी ट्वीट किया हो, लेकिन हम जानते हैं कि यह फरवरी में हो रहा है. यह कंपनी गांवों में 22 रुपये प्रति लीटर दूध बेचेगी. जिससे भूमिहीन किसान, गांवों में छोटे जोत वाले किसान मरेंगे. ये लोग उनके पशुओं से निकलने वाले दूध पर निर्भर करते हैं. यह कंपनियां उनसे दूध नहीं खरीदेगी, बल्कि वे बाहर से दूध पाउडर लाएंगे. इससे उपभोक्ताओं को फायदा हो सकता है लेकिन किसान मर जाएंगे.'
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