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जलवायु परिवर्तन से निपटने संबंधी प्रौद्योगिकी पर भारत-अमेरिका मिलकर कर सकते हैं काम

रायसीना संवाद के छठे संस्करण में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के विशेष जलवायु दूत जॉन केरी ने कहा जलवायु कार्य योजना और इससे संबंधित प्रौद्योगिकियां ढूंढ़ने भारत और अमेरिका साथ में काम कर सकते हैं.

John Kerry
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Published : Apr 15, 2021, 10:28 PM IST

नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के विशेष जलवायु दूत जॉन केरी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के वास्ते नए ईंधन और नई प्रौद्योगिकियां ढूंढ़ने के लिए भारत और अमेरिका मिलकर काम कर सकते हैं.

उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि समूचे भारत में 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की मौजूदगी की गति तेज करने के लिए दोनों देश एक भागीदारी करेंगे.

रायसीना संवाद के छठे संस्करण में केरी ने कहा कि पेरिस समझौते से जुड़ी जिम्मेदारियों और इससे भी अधिक दायित्व निभाने के वास्ते काम करने के लिए भारत में एक जोश है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

केरी ने कहा, मुझे लगता है कि नए ईंधन, नई प्रौद्योगिकयां... ढूंढ़ने के लिए हमारी कुछ पहलों को अंजाम देने के लिए दो महान लोकतंत्रों के पास मिलकर काम करने का अवसर है.

बैठक में वर्चुअल रूप से शामिल हुए केरी ने कहा कि यदि भारत और अमेरिका मिलकर काम करते हैं तो यह आगे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.

उन्होंने कहा कि 22 और 23 अप्रैल को राष्ट्रपति जो बाइडन का आगामी वर्चुअल जलवायु सम्मेलन अमेरिका द्वारा कुछ साबित करने का प्रयास नहीं है.

केरी ने कहा, यह जानते हुए कि हम सात महीने बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी वार्ता करने जा रहे हैं, राष्ट्रपति विश्वभर में देशों की उठती महत्वाकांक्षाओं की प्रक्रिया में मदद करना चाहते हैं और इस शिखर सम्मेलन का यही कारण है.

पढ़ें :- विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी से मुलाकात की

बाइडन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विश्व के 40 नेताओं को 22-23 अप्रैल को होने जा रहे वर्चुअल शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया है.

भारत 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तथा 2030 तक 450 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य हासिल करने के उद्देश्य के साथ सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों में से एक पर काम कर रहा है.

इस महीने के शुरू में अपनी भारत यात्रा के दौरान केरी ने कहा था कि 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की भारत की योजना के क्रियान्वयन के साथ यह उन कुछ देशों में से एक होगा जो पूर्व-उद्योग काल के स्तर की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में मदद करेंगे.

नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के विशेष जलवायु दूत जॉन केरी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के वास्ते नए ईंधन और नई प्रौद्योगिकियां ढूंढ़ने के लिए भारत और अमेरिका मिलकर काम कर सकते हैं.

उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि समूचे भारत में 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की मौजूदगी की गति तेज करने के लिए दोनों देश एक भागीदारी करेंगे.

रायसीना संवाद के छठे संस्करण में केरी ने कहा कि पेरिस समझौते से जुड़ी जिम्मेदारियों और इससे भी अधिक दायित्व निभाने के वास्ते काम करने के लिए भारत में एक जोश है तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

केरी ने कहा, मुझे लगता है कि नए ईंधन, नई प्रौद्योगिकयां... ढूंढ़ने के लिए हमारी कुछ पहलों को अंजाम देने के लिए दो महान लोकतंत्रों के पास मिलकर काम करने का अवसर है.

बैठक में वर्चुअल रूप से शामिल हुए केरी ने कहा कि यदि भारत और अमेरिका मिलकर काम करते हैं तो यह आगे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.

उन्होंने कहा कि 22 और 23 अप्रैल को राष्ट्रपति जो बाइडन का आगामी वर्चुअल जलवायु सम्मेलन अमेरिका द्वारा कुछ साबित करने का प्रयास नहीं है.

केरी ने कहा, यह जानते हुए कि हम सात महीने बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी वार्ता करने जा रहे हैं, राष्ट्रपति विश्वभर में देशों की उठती महत्वाकांक्षाओं की प्रक्रिया में मदद करना चाहते हैं और इस शिखर सम्मेलन का यही कारण है.

पढ़ें :- विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी से मुलाकात की

बाइडन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विश्व के 40 नेताओं को 22-23 अप्रैल को होने जा रहे वर्चुअल शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया है.

भारत 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तथा 2030 तक 450 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य हासिल करने के उद्देश्य के साथ सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों में से एक पर काम कर रहा है.

इस महीने के शुरू में अपनी भारत यात्रा के दौरान केरी ने कहा था कि 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता की भारत की योजना के क्रियान्वयन के साथ यह उन कुछ देशों में से एक होगा जो पूर्व-उद्योग काल के स्तर की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में मदद करेंगे.

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