नई दिल्ली: अगर तस्वीरें बोल सकती तो मंगलवार को चर्चा में शामिल भारत और सऊदी अरब के सेना प्रमुखों की बैठक की तस्वीर से कोई सुखद संगीत छनकर निकल रहा होता. यह पश्चिम एशिया में बदलते समीकरणों (Changing Equations in West Asia) के बीज मजबूत प्रतिबिंब के साथ और बेहतर सुनाई देता. पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी के साथ 16 दिसंबर 1971 की बड़े आकार की तस्वीर, जिसमें भारत के पूर्वी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने वे अपनी सेना के आत्मसमर्पण पर हस्ताक्षर कर रहे है. इसके ठीक नीचे बैठे जनरल मनोज मुकुंद नरवणे और उनके सऊदी समकक्ष लेफ्टिनेंट जनरल फहद बिन अब्दुल्ला मोहम्मद अल-मुतैर बहुत ही स्पष्ट संदेश पेश कर रहे हैं.
संयोग से यह किसी सेवारत सेना प्रमुख की भारत की पहली यात्रा है, जबकि जनरल नरवणे ने दिसंबर 2020 में सऊदी अरब का पहला दौरा कर चुके हैं. संबंधों की इस गर्माहट का असर दोनों देशों की सेनाओं द्वारा अभ्यास की तारीखों को और मजबूत करती है. जिसके लिए भारतीय सेना का एक दल कुछ महीनों में सऊदी अरब जा सकता है. सेना का यह अभ्यास पहले नौसैनिक द्विपक्षीय अभ्यास अल मोहम्मद-अल हिंदी का पालन करेगा जो अगस्त 2021 में किंगडम के पूर्वी तट के जुबैल में दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच था.
दरअसल, थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने मंगलवार को रॉयल सऊदी लैंड फोर्सेज के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल फहद बिन अब्दुल्ला मोहम्मद अल-मुतैर से द्विपक्षीय रक्षा एवं सैन्य संबंधों को प्रगाढ़ करने को लेकर वार्ता की. लेफ्टिनेंट जनरल अल मुतैर को वार्ता से पहले साउथ ब्लॉक मैदान में गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. थलसेना ने ट्वीट किया कि सऊदी अरब की रॉयल सऊदी लैंड फोर्सेज के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल फहद बिन अब्दुल्ला मोहम्मद अल-मुतैर ने जनरल एम एम नरवणे से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग और बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की. भारत और सऊदी अरब के बीच रक्षा संबंध पिछले कुछ वर्षों में तेजी से मजबूत हुए हैं. थल सेना प्रमुख ने दिसंबर 2020 में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस खाड़ी देश की यात्रा की थी, जो भारतीय सेना के किसी प्रमुख की सऊदी अरब की पहली यात्रा थी.
सामरिक संबंध
परंपरागत रूप से पाकिस्तान के करीब सऊदी अरब के पाकिस्तान के साथ संबंध पिछले कुछ वर्षों में ठंडे रहे हैं. दूसरी ओर ईरान के साथ भारत के संबंध, जो पहले मुस्लिम दुनिया में भारतीय हितों का रक्षक था, कठिन दौर में प्रवेश कर गया है. पाकिस्तान और ईरान ने समान हितों की पहचान कर ली है और ईरान अब सऊदी और यूएई के ठिकानों पर अपने प्रॉक्सी-यमन स्थित हौथी विद्रोहियों के माध्यम से ड्रोन हमलों को प्रभावित करके आगे बढ़ रहा है.
यह भी पढ़ें- जयशंकर ने फिलीपींस में आतंकवाद, रक्षा और समुद्री सुरक्षा पर की चर्चा
कश्मीर मुद्दे पर समीकरण बदलेंगे
कश्मीर में धारा 370 के निरस्तीकरण पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने भारत सरकार को कश्मीर के कुलीन लोगों के प्रति न्यायपूर्ण नीति अपनाने और मुसलमानों के उत्पीड़न को रोकने की चेतावनी दी थी. दूसरी ओर सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर तटस्थता का रुख घोषित कर दिया, जिससे पाकिस्तान बहुत परेशान है. नतीजतन सऊदी अरब और इजराइल-अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंध जो इस्लामी दुनिया में अच्छा नहीं माना जाता. ओआईसी के बाहर एक नए अमेरिका विरोधी समूह का सामना करना पड़ता है जिसमें ईरान, तुर्की, कतर और मलेशिया शामिल हैं.