नई दिल्ली: भारत आत्मनिर्भर होने की ओर एक और कदम बढ़ा रहा है. अगले 18 महीनों में यानि 2024 के अंत तक भारत माइक्रोचिप्स का निर्माण शुरू कर देगा. देश की पहली सेमीकंडक्टर चिप निर्माण इकाई अगले महीने की शुरुआत में शुरू होगी. पहला प्लांट गुजरात के साणंद में लग रहा है.
भारत में माइक्रोचिप्स का उत्पादन कौन करेगा? : अमेरिकी सेमीकंडक्टर कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी इंक एक चिप असेंबली सुविधा स्थापित करने की प्रक्रिया में है जिसका निर्माण इस साल अगस्त में शुरू होगा.
पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा के दौरान इसे मंजूरी मिली. पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान, माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने भारत में 22500 करोड़ रुपये का निवेश करने का फैसला किया.
भारत सरकार समग्र परियोजना लागत के लिए माइक्रोन टेक्नोलॉजी को 50 प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, जबकि सौदे के तहत गुजरात सरकार से कुल परियोजना लागत का 20 प्रतिशत प्रोत्साहन मिलेगा.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हवाले से कहा गया है कि माइक्रोन टेक्नोलॉजी गुजरात में चिप असेंबली और परीक्षण सुविधा स्थापित कर रही है और अगस्त में इसका निर्माण शुरू हो जाएगा. वैष्णव ने कहा, 'अठारह महीने बाद हमने इस कारखाने से पहला उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य रखा है - यानि दिसंबर 2024.'
गुजरात सरकार और माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने 28 जून को अश्विनी वैष्णव और मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल की मौजूदगी में 2.75 अरब डॉलर की डील पर हस्ताक्षर किए थे. माइक्रोन के प्लांट को पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की 'संशोधित असेंबली, परीक्षण, मार्किंग और पैकेजिंग (एटीएमपी) योजना' के तहत मंजूरी दी गई है.
20 हजार नौकरियां : पिछले महीने आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा था कि इस परियोजना से कम से कम 20,000 नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है. एक सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत अब तक सेमीकंडक्टर चिप्स के आयात पर निर्भर रहा है और देश में विनिर्माण क्षेत्र बढ़ने के साथ इसकी मांग बढ़ने की उम्मीद है.
टूट रहा चीन का दबदबा : दरअसल सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में चीन का दबदबा खत्म करने के लिए अमेरिका पश्चिम के देशों के साथ मिलकर प्रयास कर रहा है. सेमीकंडक्टर चिप्स आज का 'नया तेल' हैं, जिनका उपयोग लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में किया जाता है, विनिर्माण और आपूर्ति नेटवर्क में हिस्सेदारी के लिए देश एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.
बीजिंग ने सेमीकंडक्टर बनाने की तकनीक के निर्माण में अरबों डॉलर खर्च किए हैं. कोविड 19 के दौरान आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के कारण अमेरिका को नुकसान हुआ. ऐसे में दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच 'चिप युद्ध' ने दुनिया की भू-राजनीति में बदलाव ला दिए हैं.
चीन का चिप आयात गिरा : अमेरिका और भारत के स्थानीय सेमीकंडक्टर निर्माण को बढ़ावा देने के बाद चीन का चिप आयात करीब 23 फीसदी गिर गया है. जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ कस्टम्स के आंकड़ों के मुताबिक, चीन ने इस साल जनवरी से मार्च के बीच 108.2 अरब इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी) का आयात किया, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 22.9 फीसदी कम है.
चीन ने लगाया प्रतिबंध : चीन ने 3 जुलाई को सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण में उपयोग की जाने वाली दो प्रमुख धातुओं जर्मेनियम और गैलियम के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. कुछ दिन पहले, नीदरलैंड ने संयुक्त राज्य अमेरिका के परामर्श से, डच निर्माता एएसएमएल की उन्नत चिप्स मशीनरी के बीजिंग को निर्यात पर नए प्रतिबंध लगाए थे.
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के वाणिज्य मंत्रालय और सीमा शुल्क प्रशासन ने कहा कि 'राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा' के लिए दोनों धातुएं निर्यात प्रतिबंधों के अधीन होंगी. अगले महीने से निर्यातकों को परमिट के लिए मंत्रालय में आवेदन करना होगा.
क्या होता है सेमीकंडक्टर : इसे माइक्रोचिप्स या एकीकृत सर्किट के रूप में भी जाना जाता है, अर्धचालक (सेमीकंडक्टर) सिलिकॉन से बने होते हैं, और इसमें लाखों या अरबों ट्रांजिस्टर होते हैं जो लघु विद्युत स्विच की तरह काम करते हैं जो छवियों, रेडियो तरंगों और ध्वनियों जैसे डेटा को संसाधित करने के लिए चालू और बंद होते हैं. वे व्यावहारिक रूप से आधुनिक दुनिया के हर आवश्यक उत्पाद के अंदर हैं - घरेलू उपकरणों से लेकर परिष्कृत रक्षा प्रणालियों तक, मोबाइल फोन से लेकर कारों तक, खिलौनों से लेकर उच्च-स्तरीय लक्जरी उत्पादों तक में इनका इस्तेमाल होता है.
ताइवान वैश्विक स्तर पर 60 प्रतिशत से अधिक सेमीकंडक्टर का उत्पादन करता है और 90 प्रतिशत से अधिक सबसे उन्नत अर्धचालकों का उत्पादन करता है. बाजार में अमेरिका की हिस्सेदारी केवल 12 प्रतिशत के आसपास है और यूरोपीय देशों की हिस्सेदारी केवल 9 प्रतिशत है.
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(एक्स्ट्रा इनपुट एजेंसी)