नई दिल्ली : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को अपने फ्रांसीसी समकक्ष जीन यवेस ली द्रियान के साथ बातचीत की. जिसमें द्विपक्षीय संबंधों सहित कोविड-19 के बाद के साझा एजेंडे पर सहयोग के साथ काम करने को लेकर विचार विमर्श किया गया. भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर आए फ्रांस के विदेश मंत्री ने जयशंकर के साथ शिष्टमंडल स्तर की बातचीत की.
बैठक के बाद जयशंकर ने ट्वीट किया कि फ्रांस के विदेश मंत्री जे वाई द्रियान के साथ सहज, व्यापक और सार्थक वार्ता हुई. भारत और फ्रांस कोविड-19 के बाद के साझा एजेंडे पर करीबी सहयोग के साथ काम करेंगे. इससे पहले सोमवार को विदेश मंत्रालय ने कहा था कि फ्रांस के विदेश मंत्री की यात्रा के दौरान कोविड-19 परिदृश्य के बाद व्यापार, रक्षा, जलवायु, शिक्षा और स्वास्थ्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय भागीदारी को और मजबूत करने के बारे में चर्चा होगी. वहीं फ्रांसीसी दूतावास ने एक बयान में कहा था कि द्रियान हिन्द-प्रशांत क्षेत्र, क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सहयोग जैसे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करेंगे.
फ्रांस के विदेश मंत्री ने बताया लक्ष्य
बैठक के बाद फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां यवेस ला द्रिआन ने कहा कि उनके देश की सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2025 तक 20,000 भारतीय छात्र फ्रांस में पढ़ाई करें. फ्रांस के दूतावास के अधिकारियों के अनुसार 2019 में फ्रांस में 10,000 भारतीय छात्र पढ़ रहे थे. मंत्री ने कहा कि हमने एक लक्ष्य रखा है कि 2025 तक फ्रांस में 20,000 भारतीय छात्र पढ़ाई करें और हम इसे हासिल करेंगे.
हम फ्रांसीसी और भारतीय युवाओं को नजदीक लाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि फ्रांस में रहने के दौरान हम भारतीय छात्रों की सहायता करेंगे. मंत्री ने कहा कि उन्हें दूतावास में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचने में देर हो गई क्योंकि उन्हें भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से बहुत से मुद्दों पर चर्चा करनी थी.
कहा कि हमारा संबंध इतना मजबूत है कि मुझे देर हो गई. अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दौरान 13 से 15 अप्रैल तक फ्रांस के विदेश मंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात कर सकते हैं.
फ्रांस की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण
यात्रा की बाबत ORF के निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि यूरोपीय संघ खुद को एक भू-राजनीतिक अभिनेता के रूप में सोचने लगा है और यह भारत के लिए अच्छी खबर है. लंबे समय से भारत ने शिकायत थी कि यूरोपीय संघ अपनी शक्ति के बावजूद कोई भी राजनीतिक इच्छा नहीं रखता.
भारत के दृष्टिकोण से आर्थिक और व्यापार के मुद्दों से ऊपर उठने के लिए यूरोपीय संघ की अक्षमता को भारत के साथ मजबूत संबंधों के लिए एक बाधा के रूप में देखा गया था. भारत-प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक प्रवाह और क्षेत्रीय अस्थिरता के समय यूरोपीय संघ-भारत संबंधों के भविष्य के बारे में बहुत महत्वाकांक्षी हैं.
भारत-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, यह पूछे जाने पर प्रो हर्ष ने कहा कि इंडो-पैसिफिक महासागर की पहल में फ्रांस की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होने जा रही है क्योंकि फ्रांस इंडो-पैसिफिक में एक बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार के रूप में उभर रहा है.