नई दिल्ली: भारत के अलावा लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों (LAC) को सहयोग की भावना के साथ विश्व स्तर पर एक स्वर में बोलने की जरूरत है. उक्त बातें विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी (Minister of State External Affairs Meenakshi Lekhi) ने 9वें सीआईआई इंडिया-एलएसी कॉन्क्लेव के दूसरे दिन समापन सत्र में शुक्रवार को कहीं. कार्यक्रम का आयोजन विदेश मंत्रालय और वाणिज्य उद्योग मंत्रालय के सहयोग से भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा किया गया था.
इस अवसर पर मंत्री लेखी ने कहा कि भारत की अध्यक्षता में जी20 ने वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को दूर करने पर विशेष रूप से ध्यान दिया है. उन्होंने कहा कि ऐसे में सभी की मिलकर निकली आवाज दुनिया काफी अहम होगी. इसमें जलवायु परिवर्तन के अलावा व्यापार बाधाओं को खत्म करने सहित अन्य मुद्दों पर बातचीत भी शामिल है. उन्होंने कहा कि इस कॉन्क्लेव को दोनों क्षेत्रों के बीच और अधिक जुड़ाव लाने के लिए आह्वान के रूप में देखना चाहिए.
मीनाक्षी लेखी ने कहा कि भारत ने 2047 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है. इसे देश की आजादी के 100 साल पूरा होने पर हासिल किया जा सकेगा. लेखी ने कहा कि जब भारत अच्छा करता है तो दुनिया अच्छा करती है. उन्होंने एलएसी देशों से भारत के साथ मिलकर काम करने का अनुरोध किया.
वहीं वेनेजुएला की वित्त और विदेश व्यापार के लिए पीपुल्स पावर मंत्री डेल्सी एलोइना रोड्रिग्ज गोमेज़ ने कहा कि दोनों क्षेत्रों को स्थानीय मुद्रा में व्यापार करने पर विचार करने की जरूरत है. इसी क्रम में भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने कहा कि यह देखते हुए कि भारत से आयात एलएसी के कुल आयात का 2 प्रतिशत से कम है. इससे भारत-एलएसी द्विपक्षीय व्यापार के विस्तार की पूरी संभावना है. उन्होंने कहा कि जबकि द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने के प्रयास चल रहे हैं. इसके लिए व्यापार आदान-प्रदान को व्यापक आधार देने के लिए एक नए दृष्टिकोण की भी आवश्यकता होगी.
बर्थवाल ने ऊर्जा परिवर्तन के क्षेत्र में भारत-एलएसी सहयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि नवीनीकरण, बैटरी निर्माण, ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकी, रासायनिक उद्योग प्रभाव आदि क्षेत्रों में नई सोच की आवश्यकता है. बर्थवाल ने भारत और एलएसी के बीच सहयोग के लिए एक संयुक्त आर्थिक और व्यापार सहयोग मॉडल का सुझाव दिया. कॉन्क्लेव में 26 एलएसी देशों और 10 गैर-एलएसी देशों के 300 से अधिक प्रतिनिधियों के साथ-साथ भारत के 500 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
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