नई दिल्ली: देश ही नहीं विश्व की कठिनतम प्रशासनिक सेवा परीक्षाओं में से यूपीएससी (UPSC)पास करने का लाखों युवाओं का सपना सपना होता है. वहीं कई लड़कियां भी हैं, जो इस सपने को देखती भी हैं और पूरा भी करती हैं. आज आपको महिलाओं के गौरवशाली इतिहास वाले देश भारत एक ऐसी महिला की दास्तां बताने जा रहे हैं, जिन्होंने इतिहास रचा. आइए जानते हैं स्वतंत्र भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी (India first Woman IAS Officer) अन्ना राजम मल्होत्रा के जीवन के कई अनछुए पहलुओं के बारे में...
भारत को आजादी मिलने के बाद पहली महिला IAS अधिकारी बनने वाली अन्ना राजम मल्होत्रा का जन्म 17 जुलाई, 1927 को केरल के एर्नाकुलम जिले में हुआ था. उनके माता-पिता का नाम ओट्टावेलिल ओए जॉर्ज और अन्ना पॉल था. उनका पालन-पोषण कालीकट में हुआ और उन्होंने प्रोविडेंस वीमेंस कॉलेज से 12वीं पास की. कालीकट के मालाबार क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक करने के बाद अन्ना मद्रास चली गईं और वहां उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन की.
इंटरव्यू बोर्ड में किया गया हतोत्साहित
आईएएस (IAS) बनने का अन्ना का सफर इतना आसान नहीं था. साल 1950 में अन्ना ने यूपीएससी परीक्षा में भाग लेने का फैसला किया और मेंस परीक्षा पास करके इंटरव्यू के लिए उनका चयन हुआ. दिलचस्प बात ये हैं कि तब तक अन्ना इस बात से बेखबर थीं कि वो जो कर रही हैं उससे भारत में इतिहास रचा जाएगा.
साल 1951 में जब वह इंटरव्यू में शामिल हुईं तो उन्हें इंटरव्यू बोर्ड ने उनके उत्साह को गिराने के लिए हर मुमकिन कोशिश की. बोर्ड ने उन्हें IAS की जगह विदेशी सेवा और केंद्रीय सेवाओं का ऑफर दिया, क्योंकि उनकी नजर में ये सेवाएं महिलाओं लिए ज्यादा 'बेहतर' थीं. लेकिन जब परीक्षा पास करने के बाद उन्हें पता चला कि ऐसा करने वाली वे देश की पहली महिला हैं.
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अन्ना रजम सन 1951 में मद्रास कैडर चुनकर भारतीय सिविल सेवा में शामिल हुईं थी. उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री सी राजगोपालाचारी के नेतृत्व में मद्रास राज्य में काम किया था. उन्हें आधुनिक बंदरगाह जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) की स्थापना में उनके द्वारा किए गए योगदान के लिए भी जाना जाता है. साथ ही वे JNPT की अध्यक्ष भी रही थीं. व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो उन्होंने सन 1985-1990 तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 7वें गवर्नर रहे आरएन मल्होत्रा से शादी की थी. उनके पति भी IAS अधिकारी के पद पर कार्यरत रह चुके थे.
संघर्षों भरा रहा कार्यकाल
अपने कार्यकाल में अन्ना को कई परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। उन्हें उन लोगों द्वारा किया गया अपमान भी सहना पड़ा, जिनको उनकी क्षमता पर संदेह था. इतना ही नहीं कई बार महिला सहकर्मियों ने उनका मजाक भी उड़ाया, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता ने उन्हें मुड़कर पीछे नहीं देखने दिया और वो लगातार आगे बढ़ती रहीं. अपमान के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार अपना काम करती रहीं. अन्ना रजम ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एशियाई सम्मेलन में असिस्ट किया था। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भी काम किया था. उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 1989 में उन्हें देश के प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक पद्म भूषण से नवाजा गया. 17 सितंबर, 2018 को उनका निधन हो गया.
देश में महिलाओं को IAS-IPS बनने की नहीं थी इजाजत, जानिए क्यों था ऐसा ?
देश की सामाजिक ही नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था में भी महिलाओं को दूसरा दर्जा दिया गया था. ये जानकर आश्चर्य होगा कि महिलाओं को भारतीय प्रशासनिक सेवा एवं भारतीय पुलिस सेवा जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के लिए अयोग्य माना जाता था. तत्कालीन भारत सरकार का तर्क था कि इतने महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं को नहीं बैठाया जा सकता, क्योंकि उनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती. सोच ये थी कि महिला हमेशा किसी ना किसी पुरुष पर निर्भर होती हैं.
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लड़नी पड़ी लंबी लड़ाई
साल 2021 में कोई भी शख्स ये सोच भी नहीं सकता कि देश में एक दिन ऐसा भी था जब महिलाओं को संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए पात्र नहीं माना जाता था. पास या फेल तो उनकी योग्यता पर निर्भर करता है, लेकिन नियम ये था कि महिलाएं परीक्षा के लिए फॉर्म तक नहीं भर सकतीं. यह सब कुछ उस देश में हो रहा था जिसके इतिहास में महिलाओं ने न केवल राजपाट संभाला, बल्कि पुरुषों के समान और कई बार उनसे बेहतर शासन व्यवस्था चलाई. भारत की आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने बिना पुरुषों की मदद के अपने स्तर पर अंग्रेजों से संघर्ष किया और इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया.
लेकिन वो कहते हैं न कि समय के साथ ही सब बदलता है और देश की आजादी के बाद इस निर्णय के खिलाफ लंबी बहस चली. कांग्रेस पार्टी और भारत की संसद में ऐसे कई नेता थे जो महिलाओं को न केवल महत्व देते थे, बल्कि उन्हें पुरुषों से अलग इंडिपेंडेंट मानते थे. आखिरकार वो दिन यानी दिनांक 17 जुलाई 1948 की तारीख भी आ गई, जब महिलाओं को संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में भाग लेने की पात्रता घोषित की गई.