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Narendra Modi At Lal Chowk : कभी नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे लाल चौक

साल 1992 में भाजपा की 'एकता यात्रा' के प्रमुख सूत्रधार मुरली मनोहर जोशी जरूर थे, लेकिन उनकी यात्रा की असल कमान थी नरेंद्र मोदी के पास. तब जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था और लाल चौक पर तिरंगा फहराना इतना आसान नहीं था. क्या हुआ पढ़ें पूरी खबर...

Narendra Modi Stroy Of Lal Chawk
1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की तैयारी करते नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी.
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Published : Jan 29, 2023, 1:53 PM IST

Updated : Jan 29, 2023, 2:14 PM IST

नई दिल्ली : आजाद भारत के इतिहास में श्रीनगर में लालचौक पर तिरंगा फहरा कर सबसे ज्यादा सुर्खियां यदि किसी दो नेता ने बटोरी उनमें पहले थे मुरली महनोहर जोशी और दूसरे थे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. वह साल था 1992 का और कश्मीर में आतंकवाद चरम की ओर बढ़ रहा था. यहां झंडा फहराने से पहले मुरली मनोहर जोशी ने 1991 में कन्याकुमारी से भारत एकता की शुरुआत की थी. इस यात्रा के व्यवस्थापक थे नरेंद्र मोदी. यानी यात्रा के रूट से लेकर ठहराव और कार्यक्रम सबकुछ तय करना उनकी जिम्मेदारी थी.

Narendra Modi Stroy Of Lal Chawk
1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के बाद नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी.

उस यात्रा में नरेंद्र मोदी की भूमिका को याद करते हुए मुरली मनोहर जोशी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी यात्रा सफल हो सके, इसका प्रबंधन मोदी के हाथों में था. उनके अनुसार, 'यात्रा लंबी थी. अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग प्रभारी थे और उनका को-ऑर्डिनेशन नरेंद्र मोदी करते थे. यात्रा सुगमता से चलती रहे, लोगों और गाड़ियों का प्रवाह बना रहे, सबकुछ समय पर हो, यह सारा काम नरेंद्र मोदी ने बहुत कुशलता के साथ किया और जहां आवश्यकता होती थी, वहां वो भाषण भी देते थे.'

Narendra Modi Stroy Of Lal Chawk
1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने से पहले नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी.

एक मीडिया चैनल से बात करते हुए मुरली मनोहर जोशी ने कहा था कि उनकी यात्रा का उद्देश्य बहुत स्पष्ट था. उन्होंने कहा, 'जम्मू-कश्मीर में पिछले कई सालों से जो हालात थे वो लोगों को परेशान कर रहे थे. बहुत सारी सूचनाएं आती थीं इस बारे में. मैं उस समय पार्टी का महासचिव था. यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर का ग्राउंड सर्वे किया जाए. वो किया भी गया. केदारनाथ साहनी, आरिफ बेग और मैं, तीन लोगों की कमेटी बनी और हम 10-12 दिन तक जम्मू-कश्मीर में दूर-दूर तक गए.'

Narendra Modi Stroy Of Lal Chawk
1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की तैयारी करते नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी.

जोशी ने कहा था, 'आतंकवादियों' को प्रशिक्षण दिया जा रहा था, उसे भी देखने गए. जो कश्मीरी पंडित वहां से निकाले गए थे और जिन कैंपों में वो रह रहे थे, वहां भी गए, उनसे भी मिले और घाटी में जो कुछ भी भारत विरोधी गतिविधियां हो रही थीं, उसे भी देखा.' जोशी ने आगे कहा कि यही वह दौर था जब नेशनल कॉन्फ्रेंस में दो गुट हो गये थे. जोशी के शब्दों में दोनों यह साबित करने में लगे थे कि कौन ज्यादा भारत विरोधी है.

सोच विचार के बाद इसका नाम एकता यात्रा रखा गया, क्योंकि कन्याकुमारी से कश्मीर तक यह देश को एक रखने के मकसद से किया गया था. यह एक बड़ी यात्रा थी. यह लगभग सभी राज्यों के होकर गुजरी. मकसद यह था कि तिरंगे को सम्मान मिले और कश्मीर को भारत से अलग नहीं होने दिया जाएगा. मीडिया चैनल को दिये इंटरव्यू में जोशी जी ने तब के दौर को याद करते हुए कहा था कि हमारे तिरंगा फहराने के पहले वहां तिरंगा नहीं फहराया गया था.

एकता यात्रा की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि वे वहां 26 जनवरी को झंडा फहराना चाहते थे क्योंकि ठंड में राजधानी बदल जाती थी. लोगों के पास वहां तिरंगे भी नहीं थे. मैंने लोगों से पूछा कि तिरंगा कैसे फहराते हैं तो उन्होंने बताया कि तिरंगा वहां मिलता ही नहीं है. 15 अगस्त को भी झंडा वहां नहीं मिलता था बाजारों में. ऐसी स्थिति थी वहां. यात्रा के बाद बदलाव आया.

पढ़ें: Bharat Jodo Yatra : अंतिम पड़ाव पर भारत जोड़ो यात्रा, राहुल ने लाल चौक पर फहराया तिरंगा

पढ़ें : Lal Chowk Srinagar : जाने क्यों महत्वपूर्ण है लाल चौक पर तिरंगा फहराना

नई दिल्ली : आजाद भारत के इतिहास में श्रीनगर में लालचौक पर तिरंगा फहरा कर सबसे ज्यादा सुर्खियां यदि किसी दो नेता ने बटोरी उनमें पहले थे मुरली महनोहर जोशी और दूसरे थे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. वह साल था 1992 का और कश्मीर में आतंकवाद चरम की ओर बढ़ रहा था. यहां झंडा फहराने से पहले मुरली मनोहर जोशी ने 1991 में कन्याकुमारी से भारत एकता की शुरुआत की थी. इस यात्रा के व्यवस्थापक थे नरेंद्र मोदी. यानी यात्रा के रूट से लेकर ठहराव और कार्यक्रम सबकुछ तय करना उनकी जिम्मेदारी थी.

Narendra Modi Stroy Of Lal Chawk
1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के बाद नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी.

उस यात्रा में नरेंद्र मोदी की भूमिका को याद करते हुए मुरली मनोहर जोशी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी यात्रा सफल हो सके, इसका प्रबंधन मोदी के हाथों में था. उनके अनुसार, 'यात्रा लंबी थी. अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग प्रभारी थे और उनका को-ऑर्डिनेशन नरेंद्र मोदी करते थे. यात्रा सुगमता से चलती रहे, लोगों और गाड़ियों का प्रवाह बना रहे, सबकुछ समय पर हो, यह सारा काम नरेंद्र मोदी ने बहुत कुशलता के साथ किया और जहां आवश्यकता होती थी, वहां वो भाषण भी देते थे.'

Narendra Modi Stroy Of Lal Chawk
1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने से पहले नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी.

एक मीडिया चैनल से बात करते हुए मुरली मनोहर जोशी ने कहा था कि उनकी यात्रा का उद्देश्य बहुत स्पष्ट था. उन्होंने कहा, 'जम्मू-कश्मीर में पिछले कई सालों से जो हालात थे वो लोगों को परेशान कर रहे थे. बहुत सारी सूचनाएं आती थीं इस बारे में. मैं उस समय पार्टी का महासचिव था. यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर का ग्राउंड सर्वे किया जाए. वो किया भी गया. केदारनाथ साहनी, आरिफ बेग और मैं, तीन लोगों की कमेटी बनी और हम 10-12 दिन तक जम्मू-कश्मीर में दूर-दूर तक गए.'

Narendra Modi Stroy Of Lal Chawk
1992 में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की तैयारी करते नरेंद्र मोदी और मुरली मनोहर जोशी.

जोशी ने कहा था, 'आतंकवादियों' को प्रशिक्षण दिया जा रहा था, उसे भी देखने गए. जो कश्मीरी पंडित वहां से निकाले गए थे और जिन कैंपों में वो रह रहे थे, वहां भी गए, उनसे भी मिले और घाटी में जो कुछ भी भारत विरोधी गतिविधियां हो रही थीं, उसे भी देखा.' जोशी ने आगे कहा कि यही वह दौर था जब नेशनल कॉन्फ्रेंस में दो गुट हो गये थे. जोशी के शब्दों में दोनों यह साबित करने में लगे थे कि कौन ज्यादा भारत विरोधी है.

सोच विचार के बाद इसका नाम एकता यात्रा रखा गया, क्योंकि कन्याकुमारी से कश्मीर तक यह देश को एक रखने के मकसद से किया गया था. यह एक बड़ी यात्रा थी. यह लगभग सभी राज्यों के होकर गुजरी. मकसद यह था कि तिरंगे को सम्मान मिले और कश्मीर को भारत से अलग नहीं होने दिया जाएगा. मीडिया चैनल को दिये इंटरव्यू में जोशी जी ने तब के दौर को याद करते हुए कहा था कि हमारे तिरंगा फहराने के पहले वहां तिरंगा नहीं फहराया गया था.

एकता यात्रा की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि वे वहां 26 जनवरी को झंडा फहराना चाहते थे क्योंकि ठंड में राजधानी बदल जाती थी. लोगों के पास वहां तिरंगे भी नहीं थे. मैंने लोगों से पूछा कि तिरंगा कैसे फहराते हैं तो उन्होंने बताया कि तिरंगा वहां मिलता ही नहीं है. 15 अगस्त को भी झंडा वहां नहीं मिलता था बाजारों में. ऐसी स्थिति थी वहां. यात्रा के बाद बदलाव आया.

पढ़ें: Bharat Jodo Yatra : अंतिम पड़ाव पर भारत जोड़ो यात्रा, राहुल ने लाल चौक पर फहराया तिरंगा

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Last Updated : Jan 29, 2023, 2:14 PM IST
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